यूपी के हाथरस में निरंकार साकार हरि उर्फ भोले बाबा के सत्संग में हुई भगदड़ को 2 जुलाई को एक साल पूरा हो गया। इसमें 121 लोगों की मौत हुई थी। जिन परिवारों में मौतें हुईं, उनमें ज्यादातर का नजरिया भोले बाबा को लेकर एकदम बदल चुका है। सालभर पहले तक जहां इन परिवारों में साकार हरि की तस्वीर टांगकर भगवान मानकर पूजा-पाठ होता था, अब वैसा कुछ नहीं है। कई परिवारों ने इन तस्वीरों को घर से बाहर फेंक दिया। वे कहते हैं कि अगर बाबा चमत्कारी होते को किसी की जान नहीं जाती। कुछ परिवार ऐसे हैं, जो अपनों की मौत के बाद पूरी तरह टूट गए हैं। उनकी आर्थिक स्थिति भी गड़बड़ा गई है। बीते एक साल से ये परिवार किस दौर से गुजर रहे हैं? क्या वे आज भी निरंकार साकार हरि को उसी तरह मानते हैं? यह सब जानने के लिए दैनिक भास्कर ने ऐसे 15 पीड़ित परिवारों से बात की। पढ़िए इस सीरीज की दूसरी रिपोर्ट… एक परिवार की 3 पीढ़ियां चल बसी
सबसे पहले हम हाथरस-सिकंदराऊ मार्ग पर रेलवे पटरी के किनारे बसे गांव सोखना पहुंचे। बारिश की वजह से शाम 6 बजे ही पूरी तरह अंधेरा छा चुका था। तंग गलियों से होते हुए हम परचून की एक छोटी-सी दुकान पर पहुंचे। यहां विनोद बैठे थे। इन्होंने उस भगदड़ में अपनी मां जयवती, पत्नी राजकुमारी और मासूम बेटी भूमि को खो दिया। अब 3 बच्चे रह गए हैं, जिनके लिए विनोद पिता भी हैं और मां भी। दुकान के अंदर बहुत कम रोशनी की एक छोटी-सी लाइट जल रही थी। घर के अंदर घुप अंधेरा छाया था। बारिश की वजह से पूरे गांव की बत्ती गुल थी। विनोद के घर के सामने ही सरकारी हैंडपंप का चबूतरा बना है, जिस पर कुछ लोग बैठकर बातें कर रहे थे। हमने बताया कि पत्रकार हैं। वो समझ गए कि क्यों और किसलिए आए हैं? विनोद भी पास आकर बैठ गए। ‘बाबा में शक्ति होती, तो वो कुछ करिश्मा दिखाते’
परिवार कैसे चल रहा है? इस सवाल पर विनोद कहते हैं- कुछ नहीं, बस मिट्टी खराब हो रही है। कभी खाना बना लिया, कभी नहीं बनाया। घर में कोई नहीं है। सब अपने आप ही कर रहे हैं और खा रहे हैं। कभी भूखे ही सो जाते हैं। बच्चों की मां चली गई। अब सब खुद करता हूं। बर्तन धोता हूं, कपड़े धोता हूं, खाना भी बनाता हूं। इन बच्चों को तैयार करके स्कूल भी भेजना पड़ता है। उस हादसे के बाद मेरा काम भी छूट गया। मैं काम करने के लिए बाहर जाता था। बच्चों को पढ़ाना–लिखाना था। इसलिए घर की बैठक में ही एक छोटी-सी परचून की दुकान खोल दी। इससे रोजाना 50-100 रुपए की आमदनी हो जाती है। जिन निरंकार साकार बाबा की तस्वीरों को भगवान समझकर पूजते थे, उनका क्या हुआ? इस पर विनोद कहते हैं- हमने वो तस्वीरें फाड़कर फेंक दीं। हम उन्हें कोई भोले बाबा नहीं मानते। कोई शक्ति नहीं है। अगर शक्ति होती, तो वो कुछ करिश्मा दिखाते। भगदड़ में इतने लोग नहीं मारे जाते। जब कोई शक्ति नहीं है, तो हम उनकी पूजा क्यों करें। पहले सास, फिर पति का निधन, जैसे-तैसे परिवार पाल रही रेखा
इसी सोखना गांव में विनोद से थोड़ी दूरी पर एक और घर है। इस घर में रहने वाली 65 साल की सोन देवी की भी सत्संग भगदड़ में मौत हुई थी। वो 10 साल के पोते मयंक के साथ सत्संग सुनने गई थीं। मयंक किसी तरह वहां से बच निकला। दुखद ये रहा कि सोन देवी की मौत के 4 महीने बाद ही उनके बेटे कालीचरण की डेंगू से मौत हो गई। यानी 4 महीने में एक परिवार के 2 सदस्य चले गए। घर में अब सिर्फ सोन देवी की बहू रेखा और उनके दो बच्चे हैं। रेखा बताती हैं- परिवार के दो सदस्यों की मौत के बाद मानो पहाड़ सा टूट पड़ा हो। बस किसी तरह गुजर-बसर कर रही हूं। खेतों में मेहनत-मजदूरी करने जाती हूं। उसके बदले 200-250 रुपए रोज कमा लाती हूं। उसी से परिवार पाल रही हूं। रेखा बताती हैं- हम कभी निरंकार साकार बाबा से जुड़े हुए नहीं थे। सिर्फ हमारी सास ही जाती थीं। वो भी मोहल्ले की बाकी महिलाओं के साथ जुड़ गई थीं। उस दिन अपने साथ मेरे बेटे को भी सत्संग में ले गईं। हमें फोन आया कि भगदड़ मच गई है। जब हम अस्पताल पहुंचे, तो सास की मौत हो चुकी थी। ‘हमने कभी बाबा को नहीं माना, पड़ोसियों संग जाती थी मां’
सोखना से होते हुए हम हाथरस शहर के नबीपुर खुर्द इलाके में पहुंचे। 60 साल की मुन्नी देवी उस दिन पड़ोसी महिलाओं के साथ सत्संग में गई थीं और भगदड़ की शिकार हो गईं। मुन्नी के बेटे जुगनू कुमार बताते हैं- हम भोले बाबा को नहीं मानते। हमारी मां भी कुछ खास नहीं मानती थीं। पड़ोसी महिलाएं पहले से उन बाबा से जुड़ी हुई थीं। इसलिए उनके कहने पर हमारी मां भी कभी-कभी सत्संग में चली जाती थीं। वो कभी घर में बाबा की तस्वीर आदि लेकर भी नहीं आईं। आंखों में आंसू लिए जुगनू कहते हैं- एक साल से बस परिवार किसी तरह चल रहा है। जो परिवार पहले था, अब वो नहीं है। किसी तरह दाल-रोटी खा रहे हैं, बस। सरकार ने 4 लाख रुपए आर्थिक मदद के तौर पर दिए थे। वो 4 भाइयों में बंट गए। चारों भाई शादीशुदा हैं। सबका पूरा परिवार है। हर भाई के हिस्से में एक-एक लाख रुपए आए। उससे किसका क्या ही भला होगा? ‘सास उन्हें भगवान मानती थीं, लेकिन हम नहीं’
नबीपुर खुर्द इलाके से ही एक और महिला आशा देवी (58) की मौत इस भगदड़ में हुई थी। हमने आशा देवी के घर पहुंचकर उनके परिवार का हाल-चाल जाना। आशा के बेटे जुगनू एक फैक्ट्री में नौकरी करते हैं। वो कहते हैं- मां स्वास्थ्य विभाग में काम करती थीं। तनख्वाह का जो भी पैसा मिलता था, वो अपने परिवार पर खर्च करती थीं। इसलिए हमारे परिवार के लिए वो एक तरह से आर्थिक सहारा भी थीं। जुगनू की पत्नी नैना देवी कहती हैं- हमने अपनी सास से सत्संग में जाने के लिए मना किया था, लेकिन वो फिर भी मौसी के साथ चली गईं। हमारी सास निरंकार साकार हरि बाबा को बहुत मानती थीं। घर में पूजा वाले कमरे में उनकी तस्वीर टांग रखी थी। वो भगवान मानकर उनकी पूजा भी करती थीं। लेकिन, हमने कभी बाबा को भगवान जैसा कुछ नहीं माना। अपनी सास के निधन के बाद हमने बाबा की तस्वीरों को कचरे में फेंक दिया। हमें वो तस्वीर नहीं रखनी थीं। सास मानती थीं, हम उन्हें नहीं मानते। हम सिर्फ भगवान को भगवान मानते हैं, उन्हीं की पूजा करते हैं। मृतकों में कई परिवार ऐसे, जो बाबा को मानते हैं
हम भगदड़ में मरने वालों के घर-घर जा रहे थे। तभी एक बात यह भी पता चली कि उन्हीं के आसपास रहने वाली महिलाएं आज भी भोले बाबा के सत्संग में जाती हैं। उन्हें उस भगदड़ से कोई फर्क नहीं पड़ा। मरने वाले 121 लोग थे। इनमें से ज्यादातर परिवार अब बाबा से अलग हो चुके हैं। हालांकि कई परिवार ऐसे भी हैं, जो परिजनों की मौत के बावजूद आज भी बाबा को उतना ही मानते हैं। ऐसा हमें सोखना गांव में देखने को मिला। जिस महिला की भगदड़ में मौत हुई, उनके कुनबे के कई लोग आज भी बाबा से पूरी निष्ठा से जुड़े हैं। ———————- ये खबर भी पढ़ें… हाथरस-भोलेबाबा के आदेश पर सेवादारों ने लाठियां चलाई थीं, सब-इंस्पेक्टर के बयान के बावजूद चार्जशीट में बाबा का नाम नहीं 2 जुलाई, 2024…हाथरस जिले के फुलरई मुगलगढ़ी गांव में निरंकार साकार हरि उर्फ भोले बाबा के सत्संग में भगदड़ मची। 121 लोग की जान चली गई। सैकड़ों लोग घायल हुए। इस केस को कल 1 साल पूरा हो जाएगा। जेल गए सभी 11 आरोपी जमानत पर बाहर हैं। दैनिक भास्कर को 3200 पेज की चार्जशीट में एक अहम बयान हाथ लगा है। पढ़ें पूरी खबर