सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर विवाद पर केंद्र सरकार अब खुलकर मध्यस्थता से पीछे हटती दिखाई दे रही है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद केंद्र ने अपनी अगुआई में पंजाब और हरियाणा के बीच पांच दौर की द्विपक्षीय बैठकें करवाई, लेकिन किसी में भी ठोस नतीजा नहीं निकला। पंजाब में विधानसभा चुनाव करीब होने के कारण भाजपा नेतृत्व वाला केंद्र इस मुद्दे पर राजनीतिक जोखिम लेने से बच रहा है। अब केंद्रीय जल शक्ति मंत्री CR Patil ने पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर कहा है कि दोनों राज्य एसवाईएल नहर पर आपसी बातचीत कर समाधान खोजें। पत्र में यह भी कहा गया है कि जरूरत पड़ने पर केंद्र सरकार दोनों राज्यों को आवश्यक सहयोग देगी। मंत्रालय ने बताया कि 5 अगस्त 2025 को हुई बैठक में दोनों राज्यों ने सकारात्मक भावना से आगे बढ़ने पर सहमति जताई थी, इसलिए अब दोनों को अपनी प्रस्तावित योजनाओं पर बातचीत करनी चाहिए। उत्तरी जोनल काउंसिल की बैठक में नदी पानी के सभी मुद्दे टाले
17 नवंबर को फरीदाबाद में हुई उत्तरी जोनल काउंसिल की बैठक में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नदी पानी से जुड़े सभी मुद्दों को फिलहाल के लिए मुल्तवी कर दिया। इससे पहले चंडीगढ़ को राष्ट्रपति के सीधे नियंत्रण में लाने के प्रस्ताव का पंजाब में तीखा विरोध हो चुका है, जिसके बाद केंद्र को कदम पीछे खींचने पड़े थे। पंजाब पहले ही कह चुका ‘देने को एक बूंद पानी नहीं’
माहिरों का कहना है कि अब जब केंद्र मध्यस्थता से हट गया है, तो पंजाब किसी भी सूरत में खुद बातचीत शुरू नहीं करेगा। मुख्यमंत्री भगवंत मान पहले ही साफ कर चुके हैं कि पंजाब के पास देने के लिए एक बूंद भी अतिरिक्त पानी नहीं है, इसलिए एसवाईएल नहर निर्माण का सवाल ही पैदा नहीं होता। 214 किमी में से 122 किमी पंजाब का हिस्सा अटका
कुल 214 किमी लंबी एसवाईएल नहर में से पंजाब का 122 किमी हिस्सा अभी भी बिना निर्माण के पड़ा है।
जनवरी 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब को पानी समझौते के मुताबिक नहर बनाने के लिए कहा था।
हरियाणा नहर निर्माण के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर चुका है।
8 अगस्त को इस मामले की आखिरी सुनवाई हुई थी। अगली तारीख तय नहीं है। मुख्यमंत्रियों की 5 बैठकें, मगर नहीं निकला कोई भी हल
पहली बैठक: 18 अगस्त 2020
दूसरी बैठक: 14 अक्टूबर 2022 (चंडीगढ़)
तीसरी बैठक: 4 जनवरी 2023 (दिल्ली)
चौथी बैठक: जुलाई 2025
पांचवीं बैठक: 5 अगस्त 2025 1981 समझौता रद्द करने का विवाद भी जुड़ा
2004 में तत्कालीन CM कैप्टन अमरिंदर सिंह ने विधानसभा के जरिए 1981 के पानी समझौते को रद्द कर दिया था।
2016 में सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को अमान्य करार दिया। इसके बाद से मामला लगातार अदालत और केंद्र-राज्य स्तर की बैठकों में अटका हुआ है। जानें क्या है SYL विवाद, कब कब क्या हुआ