कुरुक्षेत्र संगमेश्वर महादेव मंदिर में जलाभिषेक आज से:2 दिन चलेगा मेला, 24 साल बाद गजकेसरी योग में पूजा; 5 लाख श्रद्धालु आएंगे

कुरुक्षेत्र के ऐतिहासिक संगमेश्वर महादेव मंदिर (अरुणाय) में सावन मास की शिवरात्रि पर लगने वाला 2 दिवसीय मेला आज मंगलवार से शुरू हो गया है। मंदिर प्रबंधन की ओर से मेले में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। मेले में हरियाणा और पंजाब से 5 लाख श्रद्धालुओं के आने की संभावना है। यज्ञदत्त शास्त्री के मुताबिक, इस बार शिवरात्रि पर 24 साल बाद गजकेसरी राजयोग बनने जा रहा है। इस दिन चंद्रमा मिथुन राशि में होंगा, जिससे गजकेसरी राजयोग बनता है। साथ ही, बुद्धादित्य राजयोग और मालव्य राजयोग भी बन रहे हैं। यह अत्यंत दुर्लभ और शक्तिशाली योग माने जाते हैं। रात ढाई बजे से शुरू होगा जलाभिषेक संगमेश्वर सेवा दल के प्रधान पंडित भूषण गौतम के मुताबिक, आज रात ढाई बजे से मंदिर में संगमेश्वर महादेव पर जल चढ़ाना शुरू हो जाएगा। कतार में लगकर श्रद्धालुओं को मंदिर के गर्भगृह तक पहुंचाया जाएगा। श्रद्धालु को गर्मी और बारिश से बचाने के लिए सिर पर शेड लगाया गया है। लाइन में श्रद्धालुओं के लिए पानी और भोजन की व्यवस्था भी की गई है। कांवड़ यात्रियों को लाइन में लगने की जरूर नहीं मंदिर प्रबंधन की ओर से कांवड़ यात्री, दिव्यांग जन और बुजुर्ग लोगों के लिए जल चढ़ाने की अलग से व्यवस्था रहेगी। उनको लाइन में लगने की जरूरत नहीं होगी। उनके लिए गेट नंबर-3 से व्यवस्था बनाई गई है। अगर श्रद्धालुओं की संख्या ज्यादा रही तो जलहरि लगाई जाएगी, ताकि श्रद्धालु मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश किए बगैर बाहर से जल चढ़ा सकें। दीमक की बांबी की मिट्टी से बने शिवलिंग की पूजा मंदिर में पूरे सावन मास में पार्थेश्वर शिवलिंग का रुद्राभिषेक किया जाता है। पूरे उत्तर भारत से श्रद्धालु पार्थेश्वर शिवलिंग की पूजा करने के लिए आते हैं। इस पार्थेश्वर शिवलिंग को दीमक की बांबी की मिट्टी से बनाया जाता है। पूजा-अर्चना के बाद शिवलिंग को मंदिर परिसर में बने सरोवर में विसर्जित किया जाता है। कालसर्प दोष से मिलती है मुक्ति कहा जाता है कि विश्व में सबसे पहले भगवान राम ने त्रेतायुग में पार्थेश्वर शिवलिंग की पूजा की थी। रावण से युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए श्रीराम ने बालू की मिट्टी से पार्थेश्वर शिवलिंग का निर्माण किया था। यह शिवलिंग संगमेश्वर के नाम से जाना जाता है। संगमेश्वर मंदिर में कालसर्प दोष से प्रभावित श्रद्धालु पार्थेश्वर शिवलिंग की पूजा करते हैं। इससे उनको कालसर्प दोष से मुक्ति मिल जाती है। स्वयंभू हैं संगमेश्वर महादेव यज्ञदत्त शास्त्री के मुताबिक, संगमेश्वर महादेव स्वयंभू हैं। पुराने समय में महात्मा गणेश गिरि को घास के बीच एक दीमक का ढेर दिखाई दिया। उन्होंने अपने चिमटे से इस ढेर को कुरेदा तो उनका चिमटा किसी ठोस चीज से टकराया। उन्होंने मिट्टी को हटाकर देखा तो उन्हें यहां बड़ा सुंदर और तेजस्वी शिवलिंग दिखाई दिया। उन्होंने शिवलिंग को किसी साफ स्थान पर स्थापित करने के लिए उखाड़ना चाहा , मगर शिवलिंग का अंतिम छोर नहीं मिला। दूध से नहीं निकलता मक्खन मंदिर में एक और चमत्कार देखने को मिलता है। यहां दूध को बिलो कर उससे मक्खन नहीं निकाला जाता है। अगर कोई कोशिश करता है तो दूध खराब हो जाता है। साथ ही मंदिर परिसर में चारपाई या खाट का भी इस्तेमाल नहीं किया जाता है। मान्यता है कि किसी का बुखार ठीक नहीं हो रहा हो, तो 2 दिन मंदिर के भंडारे में भोजन करने से उसका बुखार उतर जाता है। 3 नदियों के संगम से बना संगमेश्वर संगमेश्वर धाम अरुणा, वरुणा और सरस्वती नदी के संगम से बना है। महाभारत, वामन, गरुड़, स्कंद और पद्म पुराण में वर्णित कथाओं में इसका प्रमाण मिलता है। भगवान शंकर से प्रेरित होकर 88 हजार ऋषियों ने यज्ञ के जरिए अरुणा, वरुणा और सरस्वती नदी का संगम कराया था। इन नदियों के संगम से भोलेनाथ संगमेश्वर महादेव के नाम से विश्वविख्यात हुए। 7 को निकाली जाएगी शोभायात्रा हर साल सावन मास में मंदिर की ओर से भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। इसमें संगमेश्वर महादेव को नगर का भ्रमण कराया जाता है। साथ ही पार्थेश्वर शिवलिंग की पूजा और रुद्राभिषेक करके उसे पिहोवा के सरस्वती तीर्थ में विसर्जित करते हैं। इस बार शोभायात्रा 7 अगस्त को निकाली जाएगी। उसके बाद सावन समाप्ति का भंडारा होगा। श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी संभाल रहा व्यवस्था संगमेश्वर महादेव मंदिर की पूरी व्यवस्था श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी संभाल रहा है। अखाड़े के सचिव महंत रविंद्र पुरी और मंदिर के सचिव विश्वनाथ गिरी मंदिर के व्यवस्थापक हैं। सावन मास के हर सोमवार को संगमेश्वर महादेव का विशेष श्रृंगार किया जाता है। इसमें फल, फूल, अनाज, ड्राई फ्रूट, रंग-गुलाल और सब्जियों से श्रृंगार किया जाता है।

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