2017 से लेकर 2022 तक यूपी की हर सियासी हलचल में प्रियंका गांधी का चेहरा कांग्रेस की पहचान बन गया था। ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ के नारे से उन्होंने प्रदेश की महिलाओं को खास संदेश दिया। लेकिन आज वही प्रियंका यूपी की सियासत से लगभग गायब हैं। आखिरी बार 2024 लोकसभा चुनाव में अमेठी-रायबरेली में पार्टी की जीत के बाद धन्यवाद सभा में दिखी थीं। उसके बाद प्रयागराज महाकुंभ तक में नहीं आईं। कांग्रेस कार्यकर्ता और समर्थक हैरान हैं। आखिर प्रियंका ने यूपी से किनारा क्यों किया? प्रियंका के यूपी में आने से क्या सपा के साथ कांग्रेस के संभावित गठजोड़ पर कोई असर पड़ने का खतरा था? पढ़िए ये रिपोर्ट… 4 पॉइंट में समझें प्रियंका के यूपी से गायब रहने के सियासी मायने राहुल-प्रियंका में किसकी इमेज ज्यादा अपीलिंग
ये सवाल हमने प्रदेश कांग्रेस के 4 नेताओं किए। नाम न छापने की शर्त पर तीन नेताओं ने कहा- प्रियंका इस कसौटी पर अधिक खरी उतरती हैं। एक नेता ने राहुल गांधी का नाम लिया। प्रियंका गांधी के समर्थन में बोलने वाले नेताओं ने कहा-वह तुलनात्मक रूप से कार्यकर्ताओं के लिए आसानी से सर्वसुलभ हैं। जब कभी उनका दौरा होता है, तो वे कार्यकर्ताओं के बीच जाकर बात करती हैं। सुरक्षा और अन्य कारणों से राहुल गांधी तक सीधे कार्यकर्ता नहीं पहुंच पाते। दूसरा प्रियंका सीधे और सरल शब्दों में अपनी बात रखती हैं, जो कार्यकर्ताओं को उनसे जोड़ता है। राहुल गांधी आक्रामक हैं, लेकिन कार्यकर्ताओं के साथ आसानी से घुल-मिल नहीं पाते हैं। प्रियंका को पहली बार 2017 में मिली थी यूपी में अहम जिम्मेदारी
प्रियंका गांधी यूपी में 2017 के विधानसभा चुनाव से ही सक्रिय रही हैं। यूपी से उनका जुड़ाव कुछ अधिक ही रहा है। पहले वो भले ही रायबरेली और अमेठी तक ही सीमित थीं। लेकिन, पिछले 8 साल में पूरे प्रदेश में उनकी सक्रियता से कार्यकर्ता भी उत्साह में थे। 2017 में प्रियंका गांधी वाड्रा को पूर्वी यूपी के प्रचार और रणनीति का प्रभारी बनाया गया था। ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिमी यूपी की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। उस समय कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ गठबंधन किया था। जिसे ‘यूपी के लड़के’ कैंपेन के तहत प्रचारित किया गया। इसमें राहुल गांधी और अखिलेश यादव मुख्य चेहरों के रूप में थे। तब सपा के साथ गठबंधन में कांग्रेस ने 114 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था। कांग्रेस के 7 विधायक जीते थे। उसका वोट शेयर 6.25 था। सपा की सीटों की संख्या सिमट कर 47 रह गई थी। भाजपा 312 सीटों के प्रचंड बहुमत से सत्ता में लौटी थी। प्रियंका की उस चुनाव में भूमिका सीमित थी। उन्होंने मुख्य रूप से अमेठी और रायबरेली में ही सक्रिय प्रचार किया, जो गांधी परिवार के पारंपरिक गढ़ रहे हैं। उन्होंने रोड शो, जनसभाएं और कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें कीं। उनकी रणनीति का फोकस सपा-कांग्रेस गठबंधन को मजबूत करना, युवा और महिला वोटरों को आकर्षित करना था। प्रियंका की प्रचार शैली को कार्यकर्ताओं में उत्साह बढ़ाने वाला माना गया, क्योंकि उनकी भाषण शैली और जनता से जुड़ाव को सबने सराहा था। लेकिन, सपा के खिलाफ एंटी-इनकंबेंसी और प्रदेश में मजबूत संगठन न होने का खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा था। 2019 लोकसभा और 2022 विधानसभा चुनाव में प्रियंका के हाथों में रही कमान
2017 के विधानसभा चुनाव में खास सफलता न मिलने के बावजूद प्रियंका यूपी में सक्रिय रहीं। 2019 में प्रियंका पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव बनाई गईं। प्रियंका ने इसके साथ ही यूपी में राजबब्बर की जगह ओबीसी वर्ग से आने वाले पूर्वांचल के अजय कुमार लल्लू को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी। लल्लू को प्रियंका का करीबी माना जाता था। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने अकेले प्रदेश की 80 सीटों पर चुनाव लड़ा था। तब सपा-बसपा गठबंधन में चुनाव में उतरे थे। अमेठी और रायबरेली से गठबंधन ने कोई प्रत्याशी नहीं उतारा था। इसके बावजूद राहुल गांधी अमेठी का चुनाव हार गए थे। सिर्फ सोनिया गांधी ही रायबरेली सीट से जीत पाई थीं। सपा-बसपा गठबंधन को 15 सीटों पर ही सफलता मिल पाई थी। बसपा 10 तो सपा 5 सीटें ही जीत सकी थी। अमेठी की हार से प्रियंका के नेतृत्व को भी झटका लगा था। हालांकि, 2022 के विधानसभा तक प्रियंका यूपी में सक्रिय रहीं। 2022 के विधानसभा चुनाव में प्रियंका की अगुआई में कांग्रेस अकेले 399 सीटों पर मैदान में उतरी थी। तब प्रियंका ने महिलाओं को 40 फीसदी हिस्सेदारी देने के फॉर्मूले के तहत 147 सीटों पर महिलाओं को उतारा था। प्रियंका के नेतृत्व में कांग्रेस के पक्ष में बज क्रिएट हुआ था। ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ के संकल्प के साथ उन्होंने प्रदेश भर में खूब मेहनत की। भाजपा समेत सभी दलों को डिफेंस में तैयारी करनी पड़ी थी। लेकिन, कमजोर संगठन के चलते पार्टी को अपेक्षित सफलताएं नहीं मिली थीं। परिणाम आया तो कांग्रेस की सीटें घटकर 7 से 2 और वोट शेयर 6.25 से घटकर 2.33% रह गया। प्रियंका की रणनीति पर भी सवाल उठे
2022 के विधानसभा चुनाव नतीजों ने साबित कर दिया कि प्रियंका की ये रणनीति सफल नहीं रही। कांग्रेस की 147 महिलाओं में सिर्फ आराधना मोना मिश्रा ही जीत सकीं। जबकि बीजेपी की 43 महिला प्रत्याशियों में 30 और सपा की 47 महिलाओं में 13 विधायक चुनी गईं। प्रियंका गांधी की आक्रामक और स्वतंत्र रणनीति, जैसे ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ अभियान ने यूपी में कांग्रेस को प्रचार में जोश तो दिया, लेकिन सपा के साथ रिश्ते तनावपूर्ण रहे। प्रियंका की रणनीति सपा के लिए असहज हो सकती थी। यही कारण रहा कि 2023 में उनकी यूपी प्रभारी की जिम्मेदारी हटा दिया गया। फिर यूपी की जिम्मेदारी अविनाश पांडेय को दी गई, जो राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं। इसे राहुल गांधी के नेतृत्व को मजबूत करने और यूपी में उनकी रणनीति को प्राथमिकता देने के कदम के रूप में देखा गया। 2024 में विधानसभा की 9 सीटों पर हुए उपचुनावों में राहुल और प्रियंका की प्रचार से दूरी ने सपा को झटका दिया, जिससे गठबंधन में दरार की अटकलें बढ़ीं। कांग्रेस अब यूपी में राहुल के नेतृत्व पर ध्यान दे रही है। प्रियंका को राष्ट्रीय और दक्षिण भारत में सक्रिय करने की रणनीति अपनाई गई है। 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद प्रियंका की भूमिका सीमित होती गई
2022 के विधानसभा चुनाव में अपेक्षित परिणाम न मिलने के बाद यूपी में प्रियंका की भूमिका सीमित होने लगी। 2023 में यूपी की कमान पूरी तरह से राहुल गांधी के हाथों में सौंप दी गई। कांग्रेस ने बृजलाल खाबरी की बजाय पूर्वांचल से आने वाले भूमिहार नेता एवं 5 बार के विधायक अजय राय पर दांव खेला। अजय राय 2014 और 2019 में वाराणसी सीट पर नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ कर चर्चा में आ चुके थे। 2024 में राहुल की पहल पर यूपी में सपा के साथ मिलकर कांग्रेस ने महागठबंधन बनाया। इस महागठबंधन को इस बार बड़ी सफलता मिली। विधानसभा चुनाव में 2 सीटों तक सिमट गई कांग्रेस अप्रत्याशित रूप से लोकसभा की 6 सीटें जीतने में सफल रही। कांग्रेस अमेठी भी छीनने में सफल रही। रायबरेली से राहुल गांधी भी बड़ी जीत दर्ज कर लोकसभा पहुंचे। इसके अलावा कांग्रेस ने गठबंधन में मिली 11 अन्य सीटों पर भी तगड़ी चुनौती पेश की थी। इस गठबंधन को मिली सफलता से तय हो गया कि अब यूपी की कमान राहुल के हाथों में ही रहेगी। प्रियंका की भूमिका यहां से और सीमित हो गई। बाद में राहुल गांधी के इस्तीफा देने पर प्रियंका वायनाड से उपचुनाव लड़ीं और जीत कर सांसद बन गईं। इस तरह से उनकी भूमिका उत्तर से दक्षिण भारत की ओर शिफ्ट कर दी गई। प्रियंका की यूपी से दूरी को लेकर चर्चा क्यों
वायनाड से सांसद चुने जाने के बाद से प्रियंका फिर यूपी में लौट कर नहीं आईं। प्रयागराज महाकुंभ में कार्यकर्ताओं में जोरों की चर्चा थी कि प्रियंका आ सकती हैं, लेकिन गांधी परिवार से कोई नहीं आया। अब एक साल बीत चुका है। हालांकि प्रियंका के यूपी से दूरी के सवाल को कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता पुनीत पाठक साफ नकारते हैं। कहते हैं- वो शारीरिक रूप से भले ही न आ पा रही हों, लेकिन यहां के विषयों पर अब भी मुखर हैं। प्रियंका गांधी की जिस आखिरी सभा की आप बात कर रहे हैं, उसके बाद से काफी पानी बह चुका है। पुनीत पाठक कहते हैं- प्रियंका पहली बार सांसद बनी हैं। वायनाड में, जहां से वो सांसद हैं, वहां वे काफी सक्रिय हैं। संसद में उनके पास कई जिम्मेदारियां हैं। कई प्रमुख मुद्दों पर वो पार्टी का पक्ष रखती हैं। संगठन में भी वो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर बहुत सारी जिम्मेदारियां संभालती हैं। मुझे कांग्रेस कार्यकर्ता के तौर पर इस बात का भरोसा है कि उनको यूपी से बहुत लगाव है। जब भी यहां के लोग यूपी की किसी प्रमुख समस्या को लेकर जाते हैं, तो प्रियंका उसे प्रमुखता से उठाती हैं। यूपी के ज्वलंत मुद्दों पर वे अब भी मुखर रहती हैं। प्रियंका को रणनीतिक तौर पर वायनाड भेजकर यूपी से दूर किया गया
वरिष्ठ पत्रकार सुरेश बहादुर सिंह कहते हैं- प्रियंका जब तक यूपी में सक्रिय थीं, तो एक समूह को लेकर आगे बढ़ रही थीं। इसमें वरिष्ठ नेताओं को नजरअंदाज किया जा रहा था। आलम ये हो गया था कि यूपी कांग्रेस, प्रियंका और राहुल कांग्रेस में बंट चुकी थी। प्रियंका की 2019 से 2022 दो चुनावों में यूपी में प्रमुख भूमिका रही। 2019 में खुद राहुल गांधी अमेठी हार गए और 2022 में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या घटकर 2 रह गई। 2024 में सपा के साथ गठबंधन में राहुल की अधिक महत्वपूर्ण भूमिका थी। इसके परिणाम भी सार्थक रहे और भाजपा पूर्ण बहुमत नहीं पा सकी। आज की तारीख में कांग्रेस खुद के बलबूते यूपी में चुनाव लड़ सके, इसके लिए उसका संगठन मजबूत नहीं है। जाहिर सी बात है कि सपा या किसी अन्य दल के सहयोग के साथ ही वे चुनाव में मजबूती दिखा पाएंगे। सपा भी चाहती है कि 2027 का विधानसभा चुनाव वह महागठबंधन में कांग्रेस के साथ मिलकर रहे। ————————— ये खबर भी पढ़ें… किसी ने शादी, किसी ने सांसद बनने को उठाई कांवड़, नौकरी की चाह वाले सबसे ज्यादा; कांवड़ियों की अजब-गजब मन्नत ‘हमारे पड़ोस के 3 लोग कांवड़ लेकर जाते थे, उनकी सरकारी नौकरी लग गई। अब हम भी कांवड़ लेकर जा रहे हैं। 3 दिन से पैदल चल रहे हैं। उम्मीद है, भगवान भोलेनाथ हमारी मन्नत सुनेंगे। हमारी भी सरकारी नौकरी लगेगी।’ ये शब्द शुभम गुप्ता के हैं। भदोही के शुभम गुप्ता प्रयागराज के दशाश्वमेध घाट से जल लेकर काशी विश्वनाथ के लिए निकले हैं। इसी तरह से लाखों युवा कांवड़ लेकर अलग-अलग शिवालयों में जल चढ़ा रहे हैं। भगवान शिव से सबकी ऐसी ही कुछ मन्नत है। पढ़ें पूरी खबर