गोरखपुर की सीमा कन्नौजिया ने अमेरिका में गोल्ड मेडल जीतकर देश का नाम रोशन किया। अमेरिका के बर्मिंघम, अलबामा में हुए वर्ल्ड पुलिस फायर गेम्स में उन्होंने गोल्ड जीता। सीमा गोरखपुर में रानीडीहा की रहने वाली हैं। इस कामयाबी और खास अनुभव को उन्होंने दैनिक भास्कर से बातचीत में साझा की। उन्होंने कहा- मेरे पापा मेरे रोल मॉडल हैं। अब पापा नहीं हैं, लेकिन उनकी हर उम्मीद पर खरा उतरना मेरी जिंदगी का सबसे अहम मकसद है। वे हमेशा मेरी प्रेरणा रहेंगे। पढ़िए सवाल-जवाब… सवाल : बहुत–बहुत बधाई आपको सीमा इस बड़ी उपलब्धि के लिए । कैसा लग रहा था जितने के बाद ? जवाब : मुझे बहुत अच्छा लग रहा था जब मैंने तिरंगा लहराया और गोल्ड मेडल जीता। वह पल बेहद गर्व से भरा था। सवाल : अमेरिका कैसा देश है ? आपको कैसा लगा वहां ? कुछ वहां के खास अनुभव बताइए ? जवाब : अमेरिका बहुत ही अच्छा देश है – साफ-सुथरा और वहां के लोग बहुत अच्छे से बात करते हैं। वहाँ पर खिलाड़ी आपस में टी-शर्ट, बैज और की-रिंग तक शेयर कर रहे थे। एक अपनापन लगता था। सवाल : आपकी प्रतियोगिता कहां हुई थी और किसके खिलाफ अपने खेली थी ? जवाब : मेरी प्रतियोगिता बर्मिंघम, अलबामा में इंडोनेशिया के खिलाफ हुई थी। सवाल : जब आपका नाम विजेता के रूप में घोषित हुआ तब आपको कैसा लगा ?जितने के तुरंत बाद का पल कैसा महसूस हुआ? जवाब : जीतने के बाद बहुत ज़्यादा उत्साह था। जब मेडल गले में पहनाया गया तो वो पल बेहद खास था। सवाल : क्या कभी ऐसा समय आया जब आपने हार मानने का मन बना लिया हो? फिर कैसे खुद को मोटिवेट किया?
जवाब : जाने से ठीक एक हफ्ते पहले मुझे एंकल में चोट लग गई थी – दोनों टखनों में मोच आ गई थी। उस समय लगा कि शायद मैं खेल ही न पाऊं। इससे पहले नेशनल गेम्स में भी मैं इसी चोट की वजह से हार गई थी। लेकिन हार के बाद भी मन में कभी हार का भाव नहीं आने दिया। मैंने कभी अपनी ट्रेनिंग में कोई कमी नहीं आने दी। सवाल : ताइक्वांडो की शुरुआत आपने कब और कैसे की? इसके चलते आप कितने खेलों में जीत चुकी हैं? जवाब : जयपाली देवी इंटर कॉलेज में लालदेव यादव सर ताइक्वांडो सिखाया करते थे। जब मैंने देखा तो वहीं से ताइक्वांडो सीखने की शुरुआत की। मेरा चयन जूनियर नेशनल्स में हुआ, फिर सीनियर नेशनल्स और वर्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम्स में भी हुआ । इन सब में मेरे मेडल आए । फिर स्पोर्ट्स कोटे से नौकरी मिली । कुछ समय तक एस.एस.बी में काम करने के बाद मैंने रिजाइन देकर यूपी पुलिस में जॉइन किया। सवाल : आपका रोज़ का रूटीन कैसा होता है? कितनी देर तक प्रैक्टिस करती हैं? जवाब : जब प्रतियोगिता नहीं होती, तब दिन में दो बार प्रैक्टिस करते हैं। लेकिन प्रतियोगिता के समय तीन बार करनी पड़ती है क्योंकि वजन घटाना होता है। सवाल : खेल के दौरान आ रही दिक्कतों से कैसे सामना किया ? जवाब : चोट के समय लगता है कि अब कैसे निकलेंगे प्रतियोगिता से। लेकिन फिर यही सोच आती है कि हम तो इसी के लिए बने हैं – अगर हम नहीं करेंगे तो फिर कौन करेगा? सवाल : कोच या गुरु का रोल आपके सफर में कितना महत्वपूर्ण रहा? जवाब : लाल देव यादव सर को हम हमेशा धन्यवाद देते हैं, क्योंकि शुरुआत में उनसे ही मैं ताइक्वांडो सिखा करती थी।लखनऊ में साध्या भारती मैम और सुजीत बघेल सर ने मेरी आगे की यात्रा में बहुत मदद की है। सवाल : अमेरिका में खेल के बाकी अनुभव भारत से कितना अलग था? जवाब : हमारे यहाँ तो बहुत शोर-गुल रहता है, लेकिन अमेरिका में बहुत शांति है। मगर भारत जैसा खाना वहाँ नहीं मिला। मुझे दाल-चावल बहुत याद आए। वहाँ के लोग बासी खाना खाते हैं, हम तो ताजा बनाकर खाते हैं। वहाँ के लोग अमीर तो हैं, लेकिन बीमार भी बहुत हैं। सवाल : सबसे पहला अंतरराष्ट्रीय खेल कौन सा था और कहां खेलने गईं थीं आप ? जवाब : सबसे पहले मैं कनाडा में जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप के लिए गई थी। वह मेरी पहली फ्लाइट थी। जब मैंने गीता फोगाट और अन्य खिलाड़ियों की इंडिया वाली टी-शर्ट देखी तो बहुत अच्छा लगा। वो पहला अनुभव बहुत ही खास था। पापा बहुत खुश थे जब मैं पहली बार विदेश गई थी। सवाल : आप उन लड़कियों के लिए क्या कहना चाहेंगी जो खेलों में करियर बनाना चाहती हैं, लेकिन समाज या परिवार से सपोर्ट नहीं मिलता? जवाब : मैं युवतियों के माता-पिता से कहना चाहती हूं कि अपने बच्चों को खेलों में जरूर डालें, उनसे पूछें कि वे क्या करना चाहते हैं और उन्हें पूरा समर्थन दें। अगर बच्चा सेकंड भी आता है, तो भी आप उसका मनोबल बढ़ाएं और जो वादा किया है, वो निभाएं। मुझे प्रेरणा मेरे पिताजी से ही मिली और वही मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा हैं। सवाल : अपने पिता से जुड़ी कुछ खास यादों के बारे में बताए ? जवाब : मेरे पापा बिल्कुल “दंगल” फिल्म वाले पापा की तरह थे – सुबह 4 बजे उठा देते थे। जैसे उस फिल्म में दिखाया गया है, वैसे ही सख्त अनुशासन था।मेरे पापा ने कभी मुझे बेटा नहीं कहा – वो हमेशा मुझे बेटी ही मानते थे, लेकिन सारे लड़कों वाले काम करवाते थे। उनका यही मानना था कि “मेरी बेटी बेटों से कम नहीं है।”पापा को रोना पसंद नहीं था। वो कहते थे – “तुम हार जाना, कोई बात नहीं, लेकिन कभी रोना मत, क्योंकि रोने से सारी पॉज़िटिविटी खत्म हो जाती है | सवाल : आगे आपके क्या लक्ष्य हैं? जवाब : मुझे अभी बहुत आगे जाना है और जितना आगे जाना होगा, मैं जाऊंगी। यही लक्ष्य है मेरा।