भारत में पहली बार इतनी बड़ी वैज्ञानिक पहल की शुरुआत हुई है, जिसका उद्देश्य मानव शरीर में मौजूद आंतों के माइक्रोबायोम (Gut Microbiome) यानी पेट में रहने वाले खरबों सूक्ष्म जीवों की भूमिका को समझना है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यही सूक्ष्म जीव पार्किंसन, इंफ्लेमेट्री बॉवेल डिजीज (IBD), एक्ने और गंभीर अल्कोहॉलिक हेपेटाइटिस जैसी बीमारियों के निदान और इलाज की नई दिशा दिखा सकते हैं। इस तीन साल के शोध प्रोजेक्ट का नाम है – “Comprehensive Analysis of Niche-Specific Microbial Dysbiosis in Human Diseases”। यह प्रोजेक्ट चंडीगढ़ स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ माइक्रोबियल टेक्नोलॉजी (IMTECH) के नेतृत्व में शुरू किया गया है। बीमारियों की पहचान अब बिना दर्द वाले टेस्ट से वर्तमान में IBD जैसी बीमारियों की पहचान के लिए एंडोस्कोपी जैसी इनवेसिव (अंदरूनी) प्रक्रियाएं करनी पड़ती हैं। लेकिन यह शोध AI आधारित मॉडल विकसित करने पर केंद्रित है, जो सिर्फ मरीज के मल (stool) सैंपल के विश्लेषण से बीमारी की स्थिति और चरण की पहचान कर सकेगा। यह तकनीक भविष्य में सटीक और बिना दर्द वाला डायग्नोस्टिक टूल साबित हो सकती है। भारतीय डेटा सेट तैयार होगा IMTECH की वैज्ञानिक डॉ. रश्मि कुमार के अनुसार, दुनिया भर में अब तक हुए माइक्रोबायोम शोध ज्यादातर पश्चिमी देशों पर आधारित हैं। उन्होंने कहा, “हमारा खाना, हमारी जीवनशैली और हमारी जलवायु बिल्कुल अलग है। इसलिए हमें अपने देश के लोगों का डेटा बनाना जरूरी है ताकि भारत के हिसाब से इलाज और पहचान की प्रणाली विकसित की जा सके।” शोध का उद्देश्य यह पता लगाना है कि आंतों में बैक्टीरिया का संतुलन (dysbiosis) बिगड़ने पर कौन से बैक्टीरिया किस बीमारी से जुड़े हैं। इस ‘माइक्रोबियल सिग्नेचर’ की पहचान के बाद, लक्षित प्रोबायोटिक दवाओं और विशेष डाइट प्लान्स की मदद से इन बीमारियों का उपचार अधिक सटीक और कम साइड इफेक्ट वाला किया जा सकेगा।