चंडीगढ़ सेक्टर 2 में 20 करोड़ की कोठी के फर्जी दस्तावेज बनाकर उसे हड़पने का मामला सामने आया है, जिसमें चंडीगढ़ आर्थिक अपराध शाखा यानी (Economic Offences Wing) ने कार्रवाई करते हुए राजिंदर कौर गिल, परमजीत कौर और कमलदीप कौर के खिलाफ आईपीसी की धारा 420, 467, 468, 471 और 120-बी के तहत एफआईआर दर्ज की है। पुलिस अभी तक इस मामले में किसी की गिरफ्तारी नहीं की है। गिरफ्तारी के बाद और खुलासे होंगे कि फर्जी दस्तावेज बनाने में किस-किस ने इनका साथ दिया था। शिकायतकर्ता सतिंदर सिंह धालीवाल द्वारा पुलिस को दी शिकायत में बताया गया कि इन तीनों महिलाओं ने 20 करोड़ की संपत्ति को हड़पने के लिए फर्जी दस्तावेज बनाए, झूठे हलफनामे दाखिल किए। सतिंदर सिंह धालीवाल ने शिकायत में बताया कि उन्होंने 19 अगस्त 1997 को 15 लाख रुपए में सेक्टर 2, हाउस नंबर 74 की 50% हिस्सेदारी स्व. बचन कौर के कानूनी वारिसों से खरीदी थी। इसके लिए न केवल भुगतान की रसीदें और बैंक ड्राफ्ट के दस्तावेज मौजूद हैं, बल्कि उसी दिन उन्हें मकान के ईस्ट विंग का कब्जा भी सौंप दिया गया था। कानूनी तौर पर पावर ऑफ अटॉर्नी और वसीयतें भी उनके पक्ष में दर्ज हुई थीं। फर्जी दस्तावेजों से लिया एक्स-पार्टी डिक्री शिकायतकर्ता के अनुसार, 06 मई 1999 को सिविल जज की अदालत में एक झूठे इकरारनामे के आधार पर एक्स-पार्टी डिक्री हासिल की गई, जिसमें यह दिखाया गया कि बचन कौर ने 1975 में उक्त संपत्ति के अधिकार दे दिए थे। जबकि असल दस्तावेज न कभी अदालत में दाखिल हुआ, न ही एस्टेट ऑफिस को दिखाया गया। यह डिक्री सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी 2016 को खारिज करते हुए संपत्ति की 50% हिस्सेदारी बचन कौर के वारिसों को वैध मानी। कोर्ट के आदेश के बावजूद राजिंदर कौर गिल, परमजीत कौर और कमलदीप कौर ने जानबूझकर एस्टेट ऑफिस में फर्जी आपत्तियां लगाईं और कब्जा देने से इनकार कर दिया। 2 अप्रैल 2025 को एस्टेट ऑफिस ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करते हुए संपत्ति की हिस्सेदारी को 2 बराबर हिस्सों में विभाजित कर दिया—50% सतिंदर सिंह ढिल्लों के पक्ष में और 50% स्व. साधु सिंह के वारिसों के नाम। पुलिस कंप्लेंट और SDM का स्टेटस-को ऑर्डर जब 2 अप्रैल 2022 को सतिंदर सिंह ढिल्लों प्रॉपर्टी की सफाई करवाने पहुंचे तो विरोध में हंगामा किया गया और उन्हें अंदर घुसने नहीं दिया गया। थाना सेक्टर 3 को दी गई शिकायत के आधार पर SDM सेंट्रल ने BNSS की धारा 164 (पूर्व में CrPC की धारा 145/146) के तहत स्टेटस-को का आदेश जारी किया और एसएचओ को कानून-व्यवस्था बनाए रखने का निर्देश दिया। जिसके बाद इस केस की जांच का जिम्मा आर्थिक अपराध शाखा को सौंप दिया गया। शिकायत में बताया कि इन महिलाओं ने 10 मार्च 1998 को एस्टेट ऑफिस में शपथपत्र देकर खुद को साधु सिंह की कानूनी वारिस बताया, जबकि सिविल कोर्ट में दावा किया कि उनके पिता की वसीयत में उन्हें अधिकार नहीं दिए गए। ऐसे उलझे हुए और अलग-अलग बयान यह दिखाते हैं कि ये लोग जानबूझकर सरकारी दफ्तरों को गुमराह कर रहे हैं।