चंडीगढ़ हाउसिंग बोर्ड योजना पर जल्द करेगा फैसला:सेक्टर-53 सर्वे में मिले 6,300 आवेदन, बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की बैठक में होगा फैसला

​​​​​चंडीगढ़ सेक्टर-53 में लंबे समय से अटकी हुई सेल्फ फाइनेंसिंग हाउसिंग योजना पर चंडीगढ़ हाउसिंग बोर्ड (सीएचबी) अब जल्द अंतिम निर्णय लेने जा रहा है। अधिकारियों के मुताबिक, बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की आगामी बैठक में योजना को शुरू करने या रद्द करने को लेकर अंतिम फैसला लिया जाएगा। 2023 में रोकी गई थी योजना, लेकिन सर्वे में मिला जबरदस्त रिस्पॉन्स इस योजना के लिए 2023 में मांगे गए मांग सर्वेक्षण के दौरान करीब 6,300 आवेदन प्राप्त हुए थे। इसमें से 1,000 आवेदन आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए और शेष HIG (हाई इनकम ग्रुप) और MIG (मिडिल इनकम ग्रुप) कैटेगरी के लिए थे। HIG श्रेणी में सबसे अधिक 70 प्रतिशत आवेदन आए थे। बोर्ड ने योजना को तभी लॉन्च करने की बात कही थी जब पर्याप्त आवेदन और आवश्यक मंजूरी मिल जाए। पर्यावरण स्वीकृति पहले ही नवीनीकृत करवाई जा चुकी है। गौरतलब है कि सीएचबी की आखिरी हाउसिंग योजना 2016 में सेक्टर-51 में 200 दो बेडरूम फ्लैटों के लिए लाई गई थी। रेट पर फिर से होगा विचार हाल ही में चंडीगढ़ में कलेक्टर रेट में हुई बढ़ोतरी के बाद सीएचबी पुरानी कीमतों पर फ्लैट देने के मूड में नहीं है। इसी कारण बोर्ड ने मांग सर्वे के दौरान एकत्र राशि को लौटाने का निर्णय लिया था। अब बोर्ड इस बात पर विचार कर रहा है कि योजना को नई शर्तों के साथ दोबारा शुरू किया जाए या फिर पूरी तरह रद्द कर दिया जाए। मांग सर्वे में भाग लेने के लिए आवेदकों से HIG और MIG यूनिट के लिए 10,000 और EWS यूनिट के लिए 5,000 लिए गए थे। यह राशि योजना शुरू होने पर अर्नेस्ट मनी डिपॉजिट (EMD) में समायोजित की जानी थी। योजना से पीछे हटने पर राशि जब्त करने का प्रावधान था। 2018 और 2023 में योजना रही विवादों में इस योजना के तहत कुल 372 फ्लैट प्रस्तावित थे – जिनमें 192 HIG, 100 MIG और 80 EWS फ्लैट शामिल हैं। 2018 में जब पहली बार यह योजना शुरू की गई थी, तब फ्लैट्स की कीमतें काफी अधिक थीं – तीन बेडरूम के फ्लैट ₹1.80 करोड़, दो बेडरूम ₹1.50 करोड़ और EWS फ्लैट ₹95 लाख में प्रस्तावित थे। तब 492 फ्लैटों के लिए केवल 178 आवेदन ही आए थे, जिसके बाद योजना रद्द कर दी गई थी। 2023 में योजना दोबारा शुरू की गई थी लेकिन उसी साल 2 अगस्त को ₹200 करोड़ के टेंडर जारी करने के बाद तत्कालीन प्रशासक बनवारीलाल पुरोहित ने इसे “अनावश्यक” बताते हुए रोक दिया था।​​​​​​​

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