‘पुलिस की नजर में हमारा पूरा गांव चोर है, जबकि ऐसा है नहीं। गांव में सिर्फ 10% लोग ये काम करते हैं। गांव में सिर्फ कोढ़ा की नहीं, दूसरे राज्यों की पुलिस भी आती है। मकानों पर नंबर नहीं है, इसलिए पुलिसवाले किसी के भी घर में घुस जाते हैं। मारपीट करते हैं।’ कोढ़ा तहसील का गांव जुराबगंज ‘कोढ़ा गांव’ के नाम से मशहूर है। यहां रहने वाले रोनित अपने गांव की खराब इमेज से परेशान हैं। ये इमेज है चोरों, डकैतों, चेन स्नैचर और जेबकतरों के गांव की। ये गांव कटिहार जिले में है। इस जगह का नाम पुलिस के रिकॉर्ड में भी कोढ़ा गैंग की तरह दर्ज है। तीन हजार आबादी वाले कोढ़ा के करीब 300 लोग इस गैंग के मेंबर बताए जाते हैं। यहां के लोगों पर झारखंड, दिल्ली, राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में 8 हजार से ज्यादा केस दर्ज हैं। ऐसी कहानियां हैं कि गांव के बुजुर्ग बच्चों को चोरी करने की ट्रेनिंग देते हैं। इस साल सितंबर तक गांव के लोगों पर चोरी-छिनैती के 60 केस दर्ज हुए हैं। 70 लोग अरेस्ट भी किए गए। बिहार पुलिस ने गांव में क्राइम रोकने के लिए 10 लोगों की स्पेशल टीम बनाई है। दैनिक भास्कर की टीम इस गांव में पहुंची। चोरियों का पता लगाने नहीं, बल्कि चुनावी माहौल समझने। ये गांव कोढ़ा विधानसभा सीट में आता है। BJP की कविता देवी यहां से विधायक हैं। कटिहार से कोढ़ा के रास्ते में हमने पूछा, ‘कोढ़ा गैंग वाला गांव’ कहां है? जवाब मिला-आगे जाइए, पुलिस थाना मिलेगा। उससे 200 मीटर दूर एक गली है। वहां जुराबगंज का बोर्ड लगा होगा। बस वही गांव है। गांव में बाहरियों का घुसना मुश्किल, अंदर जाते ही लोगों ने घेरा
हम कोढ़ा थाने से 200 मीटर दूर उस गली तक पहुंचे। यहां जुराबगंज का बोर्ड भी दिख गया। हमने सुन रखा था कि अब तक कोई जर्नलिस्ट गांव में नहीं जा पाया है। इसके बाद भी हम गली के अंदर चले गए। यहां किसी ने नहीं रोका। गांव के लोग हमें देखते ही जुटने लगे। महसूस हुआ कि वे असहज हैं। वे सवाल पूछने लगते हैं। वापस जाने के लिए कहने लगे। थोड़ा समझाने पर कुछ लड़के बात करने के लिए तैयार हो गए। गांववाले बोले- सब नहीं, सिर्फ 10% लोग गलत काम करते हैं
21 साल के समीर बंजारा गांव में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं। इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी यानी IGNOU में BA में एडमिशन लिया है। खर्च निकालने के लिए केटरिंग का काम करते हैं। गांव की बदनामी के बारे में समीर कहते हैं, ‘हमारा गांव पूरे देश में मशहूर है। यहां के लोग क्राइम करते थे। अब ऐसा नहीं है। ये सब पहले की बात है। अब लोग सुधर रहे हैं। कोशिश कर रहे हैं कि गलत काम करना छोड़ दें।’ ‘ये सब दो-तीन पीढ़ी से चला आ रहा है। 70 के दशक में राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों से लोग यहां आकर बसे थे। उनके पास काम नहीं था, इसलिए वे चोरी करने लगे। इससे कोढ़ा पर चोरों के गांव का टैग लग गया। अब भी लोगों के पास काम नहीं है। इससे लोग गलत काम कर रहे हैं।’ गांव के लोग विदेश गए, आर्मी में हैं, लेकिन चोरी का टैग नहीं हटा
कोढ़ा गांव के रहने वाले 29 साल के रोनित दिल्ली यूनिवर्सिटी से BSc मैथ्स ऑनर्स कर चुके हैं। 6 साल तक अलग-अलग राज्यों में प्राइवेट नौकरी की। फिर गांव लौट आए और सरकारी नौकरी की तैयारी करने लगे। रोनित कहते हैं, ‘गांव की इमेज चोरों वाली बनी हुई है। इस वजह से हम लोगों को काफी झेलना पड़ता है। हम बाहर पढ़ने या किराए पर कमरा लेने जाते हैं, तो गांव का नाम बताने में परेशानी होती है। गांव के लोग कोशिश कर रहे हैं कि ये इमेज बदले।’ ‘अब हालात सुधर रहे हैं। गांव के बहुत से बच्चे नवोदय और सैनिक स्कूल में हैं। यहां के लोग कनाडा-सिंगापुर में हैं। नेवी और एयरफोर्स में भी हैं।’ ‘पुलिस पीछा करती है, पकड़कर पीटती है’
रोनित आरोप लगाते हैं कि पुलिस गांव के लोगों से बुरा बर्ताव करती है। पुलिस आती है, तो डर लगता है। पुलिसवाले पहले थप्पड़ मारते है, फिर नाम पूछते हैं। अगर हम सही हैं, तो थप्पड़ क्यों खाएं। हम रातभर सो नहीं पाते। इसी वजह से लोग भागते हैं।’ ‘एक बार मैं बाइक से पूर्णिया जा रहा था। एक सब इंस्पेक्टर ने 4-5 किमी पीछा किया। उसने सोचा कि मेरी बाइक चोरी की है। मुझे रोका, आधार चेक किया, कोई क्रिमिनल हिस्ट्री नहीं थी, इसलिए छोड़ दिया।’ बाइक के गैराज में काम करने वाले 22 साल के आर्यन तीन साल पुराना किस्सा सुनाते हैं। वे कहते हैं, 2022 की बात है। रात में पुलिस वाले आए। मुझे घर से निकाला और थप्पड़ मारने लगे। मोबाइल लेकर चले गए। पुलिसवाले बड़े क्रिमिनल के यहां रात में आते हैं। औरतों को मारते हैं। पैसे लेकर सबको छोड़ते हैं।’ ‘पुलिस सख्त, इसलिए गलत काम छोड़ रहे लोग’
27 साल के बलराम कुमार कटिहार में एक कंपनी में नौकरी करते हैं। वे मानते हैं कि गांव में लोग चोरी-छिनैती करते हैं। इससे ‘कोढ़ा गैंग’ वाली छवि बन गई है। बलराम कहते हैं, ‘पुलिस की सख्ती की वजह से गांव के लोग सुधर रहे हैं। 5-6 महीने पहले पुलिस 34 लोगों को ले गई थी। इनमें से जो ठीक लोग थे, उन पर कोई केस नहीं हुआ। 20 लोगों को पुलिस ने छोड़ दिया, बाकी पर केस किया।’ लोगों को सुधारने के लिए चर्च अभियान चला रहा
गांव में लगभग 20 परिवार ईसाई समुदाय से हैं। 17 साल की अवंती (बदला हुआ नाम) साल्वेशन आर्मी चर्च संस्था से जुड़ी हैं। अभी 12वीं में पढ़ रही हैं। अवंती बताती हैं- हमारी संस्था गलत काम छोड़ने में लोगों की मदद कर रही है। बहुत लोग इस काम को छोड़ चुके हैं। हम लोगों को बताते हैं कि वे गलत काम न करें। इससे गांव को कुछ नहीं मिला। अब चुनाव की बात
लोग बोले- बैठक करके तय करते हैं, किसे वोट देंगे
गांव में लोगों ने 46 साल के नंदू यादव को अपना लीडर चुना है। कोई परेशानी आती है, तो वही लोगों की बात प्रशासन तक पहुंचाते हैं। नंदू बताते हैं, ‘गांव में करीब 1500 वोटर हैं। सब मिलकर फैसला लेते हैं, फिर किसी एक को ही वोट करते हैं। ज्यादातर लोग CM नीतीश कुमार और BJP को वोट करते आए हैं।’ गांव की समस्याएं क्या हैं? नंदू बताते हैं, ‘गांव के ऊपर से 33 हजार वोल्ट के तार निकले हैं। ये नीचे तक लटकते हैं। यही तार सबसे बड़ी समस्या हैं। नेता बोलते हैं कि इन्हें ऊपर करवा देंगे, लेकिन कराया नहीं।’ समीर बंजारा इस बार पहली बार वोट डालेंगे। वे कहते हैं, ‘चुनाव के वक्त तो नेता गांव में आते हैं, लेकिन वोट लेने के बाद कोई हमारी बात नहीं सुनता। जुराबगंज में कुछ अच्छा हो, मैं तभी वोट दूंगा। यहां अच्छे काम हों, ताकि लोग गलत रास्ते पर चल रहे हैं, वह सब दूर हो। हमें यहीं पर अच्छा काम मिले।’ महिलाएं बोलीं- कोई काम नहीं देता, घर में राशन तक नहीं रहता
गांव की महिलाओं को पेंशन और राशन जैसी योजनाओं का फायदा मिल रहा है। हालांकि वे काम न होने से परेशान हैं। 75 साल की सोनी देवी को हार्ट और पेट की बीमारी है। पति की मौत के बाद से झोपड़ी बनाकर रहती हैं। सोनी देवी बताती हैं कि मुझे 1 हजार रुपए वृद्धावस्था पेंशन मिलती है। इससे गुजारा नहीं होता। झोपड़ी टूट रही है, लेकिन मुझे प्रधानमंत्री आवास योजना का फायदा नहीं मिला। नेता आएंगे तो उनसे यही बात कहूंगी।’ 50 साल की लीला देवी पढ़ी-लिखी नहीं हैं। वे नीतीश कुमार को सबसे अच्छा नेता बताती हैं। लीला देवी कहती हैं, ‘नीतीश ही सबसे अच्छा है। लालू यादव का बेटा तेजस्वी यादव भी अच्छा लगता है, मगर वो क्या करेगा।’ पुलिस का दावा- गांव में अब सिर्फ 20% क्राइम बचा
पुलिस पर लगे आरोपों और गांव में क्राइम का डेटा जानने के लिए हम कोढ़ा थाने पहुंचे। यहां किसी अधिकारी ने कैमरे पर बात नहीं की। थाना प्रभारी विवेक विक्रम ने हमें एक अधिकारी से मिलवाया। उन्होंने हमें सारा डेटा बताया। उनके मुताबिक, ‘कोढ़ा गैंग’ पर पुलिस की सख्ती ने असर दिखाया है। अब 80% लोग गलत रास्ते छोड़ चुके हैं। हमने गांव के लिए एक स्पेशल टीम बनाई गई है। 10 लोगों की ये टीम SHO लीड कर रहे हैं। 2024-25 में 90 केस में 1 करोड़ 10 लाख की और 2024 में 30 केस से 40 लाख की रिकवरी की गई। 70 से ज्यादा लोग अरेस्ट किए गए। SP वैभव शर्मा ने जनवरी 2025 में गांव में बैठक बुलाकर स्पेशल सेल बनाई। इसके बाद अपराधियों को सपेार्ट करने वालों में कमी आई है। पुलिस की चुनौतियां- घर सुरंग की तरह, लोग नाम छिपाते हैं
पुलिस अधिकारी बताते हैं, ‘हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती अपराधियों की पहचान करना है। यहां के लोग हमें नाम नहीं बताते। सारे घर सुरंग की तरह आपस में जुड़े हैं। इससे अपराधी पुलिस से बचकर भाग जाते हैं। उनके बारे में पता करना मुश्किल हो जाता है।’ पुलिस पर बदसलूकी के आरोपों पर अधिकारी का कहना है कि ये नया ट्रेंड है। अपराधी पुलिस पर आरोप लगा देते हैं। हालांकि वे मानते हैं कि अब अपराधों में कमी आई है। लोग अपनी पहचान बनाना चाहते हैं। अपने ऊपर लगा टैग हटाना चाहते हैं।