पारिवारिक विवादों पर सुनवाई करते हुए बरेली के पारिवारिक न्यायालय के जज ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने एक अहम टिप्पणी की-“महिला के पिता का ये वाक्य कि अगर घर बसाना है तो दामाद को बेटी के साथ रहना होगा, उनके दूषित संस्कार और सोच को दर्शाता है। वैवाहिक संस्कारों का इससे कोई लेना-देना नहीं।” कोर्ट ने महिला का मुकदमा खारिज करते हुए उस पर 10 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है। शादी के सात साल बाद बिगड़े रिश्ते मामला बरेली की नई बस्ती माधोबाड़ी की रहने वाली एक विवाहिता का है, जिसकी शादी मुरादाबाद के कटघर इलाके में रहने वाले ब्रजेश नामक युवक से 2018 में हुई थी। ब्रजेश पेशे से शिक्षक हैं। शादी के एक साल के भीतर ही दंपती के बीच विवाद शुरू हो गया। 2020 में पत्नी ने ससुराल पक्ष पर उत्पीड़न और 15 लाख रुपये की मांग का आरोप लगाते हुए मुकदमा दर्ज कराया। महिला ने कहा- पति माता-पिता से अलग होकर मायके में रहे कोर्ट में सुनवाई के दौरान महिला ने कहा कि वह कोई काम नहीं जानती, इसलिए उसे खर्चा दिलवाया जाए। साथ ही उसने कहा कि उसका पति अपने माता-पिता का घर बेचकर हिस्सा ले ले और उसके साथ उसके मायके में आकर रहे। दूसरी ओर पति ब्रजेश ने कहा कि उसकी आय सीमित है और पत्नी के खर्चे पूरे नहीं कर पा रहा। पत्नी उच्च शिक्षा प्राप्त है और 25 हजार रुपये महीना तक कमा सकती है। जज ने कहा- ऐसे संस्कार समाज को कमजोर करते हैं चार साल चली सुनवाई के बाद पारिवारिक कोर्ट ने कहा कि महिला ऐसा तब कह रही है जब उसके खुद के तीन भाई हैं। अगर वह अपने पति से यह अपेक्षा रखती है कि वह अपने माता-पिता को छोड़ दे, तो भविष्य में उसकी भाभियां भी यही कहेंगी। यह सोच समाज और परिवार दोनों के लिए हानिकारक है। झूठे आरोपों पर जुर्माना, मुकदमा खारिज कोर्ट ने पाया कि महिला ने अपने बयान में खुद स्वीकार किया कि वह मायके में रहना चाहती है और ससुराल नहीं जाएगी। उसने कहा कि उसे घरेलू कामकाज नहीं आता। महिला के पिता मजदूरी करते हैं और उनके पास साइकिल तक नहीं है। इसके बावजूद उन्होंने दावा किया कि शादी में 11 लाख रुपये खर्च किए और ससुराल वालों ने 15 लाख रुपये दहेज में मांगे-जिसे कोर्ट ने अविश्वसनीय बताया। जज ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने टिप्पणी की कि “वादिनी बिना पर्याप्त कारण के अपने मायके में रह रही है और यह पूरा वाद उसकी व्यक्तिगत जिद और मायके वालों की सलाह से प्रेरित प्रतीत होता है।” कोर्ट ने वाद खारिज कर 10 हजार रुपये का जुर्माना विपक्षी को देने का आदेश दिया। रिश्ते जिम्मेदारी से निभाए जाते हैं इस फैसले ने एक बार फिर उस सोच पर सवाल खड़ा किया है, जिसमें शादी के बाद पति-पत्नी के रिश्ते को मायके-पक्ष के दबाव से तोला जाता है। कोर्ट ने साफ कहा कि विवाह सिर्फ एक समझौता नहीं बल्कि जिम्मेदारी है, जिसे दोनों पक्षों को समान रूप से निभाना चाहिए।