ट्रायल के दौरान 13 करोड़ का रोप-वे गिरा:रोहतास में न्यू ईयर पर चालू करने की थी तैयारी; ट्रॉली का वजन नहीं उठा पाए दोनों पिलर्स

रोहतास में निर्माणाधीन 13 करोड़ रुपए का एक रोपवे ट्रायल के दौरान धराशाई हो गया। इस घटना में रोपवे का पिलर और ट्रॉली अचानक गिर गए। यह रोपवे रोहतास प्रखंड मुख्यालय से ऐतिहासिक चौरासन मंदिर तक के दुर्गम रास्ते को सुगम बनाने के लिए बनाया जा रहा था। इसे नए साल में पर्यटकों के लिए खोलने की प्लानिंग थी। शुक्रवार को ट्रायल के दौरान रोपवे का पिलर भार सहन नहीं कर सका और ट्रॉली समेत नीचे गिर गया। राहत की बात यह रही कि उस समय ट्रॉली में कोई व्यक्ति सवार नहीं था, जिससे किसी तरह की जनहानि टल गई। मौके से आई 3 तस्वीरें देखिए… गुणवत्ता और सुरक्षा मानकों पर सवाल स्थानीय लोगों ने रोपवे के निर्माण में गुणवत्ता और सुरक्षा मानकों पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने इस घटना के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। ऐतिहासिक रोहतासगढ़ किला और चौरासन मंदिर के दर्शन के लिए हर साल हजारों श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं। इस रोपवे से पर्यटन को बढ़ावा मिलने और स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलने की उम्मीद थी। इस हादसे के बाद रोपवे का काम अधर में लटक गया है, जिससे पर्यटकों को अब और इंतजार करना पड़ेगा। पिलर के निर्माण में गुणवत्ता का ध्यान नहीं रखा गया लोजपा के स्थानीय विधायक मुरारी प्रसाद गौतम ने इस हादसे की निंदा की है। उन्होंने कहा कि विभाग और इंजीनियर की लापरवाही के कारण पिलर के निर्माण में गुणवत्ता का ध्यान नहीं रखा गया, जिससे यह घटना हुई। विधायक ने मामले की जांच कर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। चौरासन मंदिर में 84 सीढ़ियां चढ़कर पहुंचते हैं भक्त चौरासन मंदिर, रोहतास जिले का एक प्राचीन शिव मंदिर है। जहां 84 सीढ़ियां चढ़कर पहुंचा जाता है। राजा हरिश्चंद्र द्वारा यज्ञ के बाद बनवाया गया यह स्थल धार्मिक आस्था और प्राकृतिक सुंदरता का संगम है। चौरासन मंदिर को रोहितेश्वर महादेव मंदिर भी कहा जाता है। इसका नाम “चौरासन” (84) उन 84 सीढ़ियों के कारण पड़ा जिन्हें चढ़कर मंदिर तक पहुंचा जाता है। स्थानीय भाषा में इसे “चौरासना सिद्धि” भी कहा जाता है। ये सीढ़ियां जैसे-जैसे चढ़ते हैं, श्रद्धालुओं को आत्मिक ऊंचाई का अनुभव होने लगता है। माना जाता है कि यह मंदिर 7वीं सदी ईस्वी में राजा हरिश्चंद्र द्वारा बनवाया गया था। पौराणिक मान्यता के अनुसार, उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए यहां 84 बार यज्ञ किया था। आखिर में उन्हें पुत्र रोहिताश्व की प्राप्ति हुई, और उन्होंने यज्ञ की राख पर यह मंदिर बनवाया। यही कहानी इस स्थान की अलौकिकता को दर्शाती है। जब यह मंदिर बादलों की चादर में लिपटा होता है, तो दृश्य इतना मनोरम होता है मानो प्रकृति स्वयं इसका श्रृंगार कर रही हो। श्रद्धालु कहते हैं कि यह स्थान ऐसा प्रतीत होता है जैसे धरती पर स्वर्ग उतर आया हो। यह दृश्य न सिर्फ आस्था से भरा होता है, बल्कि प्रकृति प्रेमियों को भी सम्मोहित कर देता है। रोहतास गढ़ का किला काफी भव्य है। किले का घेराव 28 मील तक फैला हुआ है। इसमें कुल 83 दरवाजे हैं। जिनमें मुख्य घोड़ाघाट, राजघाट, कठौतिया घाट और मेढ़ा घाट है। ये किला रोहतास जिला मुख्यालय सासाराम से लगभग 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कहा जाता है कि सोन नदी के बहाव वाली दिशा में पहाड़ी पर स्थित इस प्राचीन और मजबूत किले का निर्माण त्रेता युग में अयोध्या के सूर्यवंशी राजा त्रिशंकु के पौत्र (बेटे का बेटा) और राजा सत्य हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व ने कराया था। इतिहासकारों की मानें तो किले की चारदीवारी का निर्माण शेरशाह ने सुरक्षा को देखते हुए कराया था ताकि किले पर कोई भी हमला न कर सके। बताया जाता है कि स्वतंत्रता संग्राम की पहली लड़ाई (1857) के समय अमर सिंह ने यहीं से अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का संचालन किया था।

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