पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति के खिलाफ उसकी पूर्व पत्नी के पिता द्वारा दर्ज करवाई गई एफआईआर को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि तलाक और आपसी समझौते के करीब सात महीने बाद एफआईआर दर्ज करवाना कानून की प्रक्रिया का गलत इस्तेमाल है और इसका कोई कानूनी आधार नहीं बनता। जस्टिस जसगुरप्रीत सिंह पुरी ने फैसले में कहा कि पति-पत्नी के बीच का विवाद आपसी सहमति से सुलझ चुका था और तलाक भी हो गया था, इसलिए अब पति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही चलाना ठीक नहीं है। यह मामला सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर याचिका के दौरान सामने आया था, जिसमें पति ने आईपीसी की धारा 498-A (दहेज उत्पीड़न) और 406 (विश्वासघात) के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी। 2015 में हुआ था विवाह इस मामले में पति-पत्नी का विवाह साल 22 दिसंबर 2015 में हुआ था। 1 फरवरी 2016 को अमेरिका में तलाक की अर्जी दाखिल की गई थी, जिसके बाद अगस्त 2019 में आपसी सहमति से तलाक हो गया। दोनों के बीच संपत्ति, बच्चों, गहनों, बैंक खातों और अन्य वित्तीय मामलों को लेकर लिखित समझौता हुआ था, जिसे तलाक की डिग्री में भी शामिल किया गया। लेकिन इसके बावजूद महिला के पिता ने 14 फरवरी 2020 को भारत में एफआईआर दर्ज करवाई, जिसमें दहेज की मांग और स्त्रीधन की वापसी के आरोप लगाए गए। कोर्ट ने पाया कि एफआईआर में न तो तलाक का कोई जिक्र था और न ही हुए समझौते की कोई जानकारी दी गई, जिससे साफ है कि यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग बताया कोर्ट ने टिप्पणी की कि यह उन मामलों में से एक है जहां अक्सर पति के साथ-साथ उसके माता-पिता और रिश्तेदारों को भी बिना ठोस आधार के मामले में घसीट लिया जाता है, जो कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। जस्टिस पुरी ने कहा कि सभी संबंधित पक्ष- पति, पत्नी और उनके माता-पिता- अमेरिका के नागरिक हैं और वहीं रह रहे हैं। समझौता भी अमेरिका में ही हुआ था और उसे तलाक के आदेश का हिस्सा बनाया गया। अंततः, अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि सभी विवाद सुलझ चुके हैं, और तलाक की डिक्री अंतिम रूप ले चुकी है। ऐसे में आईपीसी की धारा 498-A और 406 के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया गया।