कांगड़ा जिले में धर्मशाला की प्रसिद्ध डल झील अब घास के मैदान जैसी दिख रही है। जब स्थानीय लोग और पर्यटक यहां पहुंचे, तो उन्हें पानी की जगह मिट्टी और सूखे घास का मैदान देखकर निराशा हुई। कभी यह झील अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जानी जाती थी, लेकिन अब यह सरकारी वादों और अधूरे प्रोजेक्ट्स की कहानी बन गई है। केंद्र सरकार ने झील के पुनरुद्धार और सौंदर्यीकरण के लिए ‘इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ ऑफबीट डेस्टिनेशन’ योजना के तहत 70 लाख रुपए की राशि स्वीकृत की थी। इसके अतिरिक्त, राज्य सरकार और स्थानीय विधायक निधि से भी धनराशि मिली, लेकिन इसके बावजूद झील की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। पानी के रिसाव के कारण बदहाली झील की यह बदहाली सिल्ट के जमाव और पानी के रिसाव के कारण हुई है। पानी का स्तर कम होने से मछलियां और अन्य जलीय जीव मिट्टी में फंसकर मर रहे हैं, जिससे झील का पूरा पारिस्थितिकी तंत्र खतरे में है। डल झील कभी धर्मशाला का एक प्रमुख पर्यटन केंद्र थी। यहां के होटल, होमस्टे, ठेले और टूर एजेंसियां इसी झील पर निर्भर थीं। झील के सूखने से अब यहां पर्यटकों की संख्या में भारी कमी आई है। स्थानीय व्यापारियों का कहना है कि पर्यटक आते हैं, लेकिन झील की स्थिति देखकर निराश होकर लौट जाते हैं। भ्रष्टाचार से झील का अस्तित्व खतरे में झील के लिए 20 करोड़ रुपए की एक नई विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार की गई है, लेकिन यह महीनों से फाइलों में अटकी हुई है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि अधिकारियों की सुस्ती और भ्रष्टाचार के कारण झील का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि वैज्ञानिक योजना के साथ काम किया जाए तो डल झील को अभी भी बचाया जा सकता है। इसके लिए रिसाव को रोकना, सिल्ट पर नियंत्रण करना और स्थायी जल स्रोत सुनिश्चित करना आवश्यक है। स्थानीय निवासियों ने सरकार से मांग की है कि आवंटित धन का ऑडिट कराया जाए और झील की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई हो। लोगों का कहना है कि अगर अब भी सरकार ने ध्यान नहीं दिया तो “डल झील” का नाम आने वाले वर्षों में सिर्फ इतिहास की किताबों में ही मिलेगा।