पावापुरी जल मंदिर, फिर लौटेगी संगमरमर की चमक:ओडिशा के शिल्पकारों के हाथों संवर रहा आस्था का केंद्र, बिहार के ‘ताज’ का कायाकल्प

धूल और मौसम की मार से फीकी पड़ चुकी ‘बिहार के ताज’ की संगमरमरी चमक एक बार फिर लौटने वाली है। भगवान महावीर स्वामी के पवित्र जल मंदिर, जो सदियों से आस्था और स्थापत्य कला का अनूठा संगम रहा है, अब अपने खोए हुए वैभव को पुनः प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर है। पावापुरी का यह ऐतिहासिक जल मंदिर, जो एक मनमोहक सरोवर के बीच स्थित है, न केवल जैन समुदाय की आस्था का प्रमुख केंद्र है, बल्कि देश-विदेश के पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का विशेष स्थल रहा है। सफेद संगमरमर से निर्मित इस भव्य मंदिर की वास्तुकला की बारीकियां और शिल्प कौशल देखते ही बनता है, लेकिन बीते वर्षों में प्रदूषण, नमी और प्राकृतिक कारणों से मंदिर का संगमरमर अपनी चमक खो बैठा था, जिससे इसकी दिव्य आभा मद्धिम पड़ गई थी।इसी स्थिति को देखते हुए जैन श्वेतांबर मंदिर प्रबंधन समिति ने मंदिर के जीर्णोद्धार और सौंदर्यीकरण की महत्वाकांक्षी योजना शुरू की है। इस परियोजना के तहत ओडिशा से विशेष रूप से बुलाए गए 21 कुशल कारीगर पिछले 2 महीने से अधिक समय से अथक परिश्रम में जुटे हुए हैं। कुछ दिनों पूरा हो जाएगा काम अनुभवी ठेकेदार तपन कुमार मांझी के नेतृत्व में शिल्पकार पारंपरिक विधियों और आधुनिक रासायनिक मिश्रणों का प्रयोग करते हुए संगमरमर की एक-एक परत को सावधानीपूर्वक साफ कर रहे हैं। श्वेतांबर मंदिर प्रबंधन के सचिव शांतिलाल बोथरा ने बताया कि यह केवल सफाई का काम नहीं है, बल्कि हमारी धरोहर को संजोने और आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखने का प्रयास है। अगले कुछ दिनों में यह कार्य पूर्ण हो जाएगा और भगवान महावीर निर्वाण महोत्सव से पहले मंदिर अपनी संपूर्ण दिव्यता और उज्ज्वलता के साथ श्रद्धालुओं के स्वागत के लिए तैयार होगा। दीवारों और फर्श की भी मरम्मत की जा रही मंदिर समिति के ट्रस्टी सुभाष बोथरा ने इस परियोजना के व्यापक स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए कहा कि केवल मंदिर की बाहरी संरचना ही नहीं, बल्कि परिसर की दीवारों और फर्श की भी व्यापक मरम्मत की जा रही है। उन्होंने कहा कि हमारा उद्देश्य है कि श्रद्धालु यहां एक स्वच्छ, सुंदर और आध्यात्मिक वातावरण में दर्शन कर सकें। यह स्थान केवल पूजा का नहीं, बल्कि शांति और ध्यान का भी केंद्र है। मंदिर प्रबंधन के हेमचंद भूरा ने बताया कि इस नाजुक काम के लिए ओडिशा के कारीगरों को चुनना एक सोचा-समझा निर्णय था। “ओडिशा के शिल्पकार पत्थर और संगमरमर के काम में अत्यंत कुशल हैं। उनकी विशेषज्ञता और अनुभव इस परियोजना की सफलता की कुंजी है। जल मंदिर को ‘बिहार के ताजमहल’ कहा जाना अकारण नहीं है। सरोवर के मध्य श्वेत संगमरमर में निर्मित यह भव्य संरचना दूर से ही अपनी अद्वितीय सुंदरता से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देती है। यह वह पवित्र स्थान है जहां जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी ने निर्वाण प्राप्त किया था। इस कारण यह स्थान जैन समुदाय के लिए सर्वाधिक पूजनीय तीर्थों में से एक है।

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