बनमा ईटहरी प्रखंड क्षेत्र में किसान मक्का की कटाई के बाद खेतों में पराली जला रहे हैं। यह प्रथा किसानों और पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रही है। पराली जलाने पर प्रतिबंध लगाने के बावजूद किसान मनमानी तरीके से मक्के की पराली जला रहे हैं। इससे उनके खेतों की उर्वरक क्षमता पर भी असर पड़ रहा है। पराली जलाने से मिट्टी में मौजूद मित्र कीट नष्ट हो जाते हैं। इससे जमीन की उर्वरा शक्ति कम होती है। अगली फसल पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। किसानों को अधिक मात्रा में खाद का उपयोग करना पड़ता है। साथ ही सिंचाई भी ज्यादा करनी पड़ती है। इन सभी कारणों से फसल की लागत बढ़ जाती है। कृषि सलाहकार रवि कुमार ने बताया कि पराली को जलाने की बजाय मिट्टी में दबाना फायदेमंद है। मिट्टी में दबी पराली सड़कर कार्बनिक खाद बन जाती है। इससे जमीन की उर्वरा शक्ति में वृद्धि होती है। विशेषज्ञों का कहना है कि किसानों को पराली प्रबंधन की उचित विधियों को अपनाना चाहिए।