बिहार में इस साल 17 जून को मॉनसून की एंट्री हुई। मौसम विभाग के मुताबिक, इस साल पूरे सीजन में सामान्य बारिश यानी 1024.3 मिलीमीटर से करीब 11 फीसदी अधिक 1137 मिलीमीटर हो सकती है। लेकिन पहले ही महीने में आंकड़े उम्मीद से उलट रहे। जून में पूरे राज्य में 36 फीसदी कम बारिश दर्ज की गई, जिससे किसानों की चिंता बढ़ गई है। मौसम वैज्ञानिक आशीष कुमार के मुताबिक, जून में औसतन 163.4 मिमी बारिश होनी चाहिए थी, लेकिन इस साल करीब 36 फीसदी कम सिर्फ 104.4 मिमी बारिश रिकॉर्ड हुई। खास बात है कि दक्षिण बिहार के गया, औरंगाबाद, और नवादा में अच्छी बारिश हुई। जहानाबाद, नवादा और नालंदा में तो बाढ़ जैसे हालात बन गए थे। वहीं, गया में पानी के तेज बहाव में 6 लड़कियां बह गईं। उन्हें रेस्क्यू करना पड़ा। जबकि, उत्तर बिहार के ज्यादातर जिलों में बादल नहीं बरसे। गंगा और कोसी के जल स्तर में दो मीटर की बढ़ोतरी हुई है। 38 में से 31 जिलों में औसत से कम बारिश हुई। इनमें सबसे खराब स्थिति सहरसा की रही, जहां औसत 195.6 मिमी के मुकाबले सिर्फ 19.7 मिमी बारिश हुई, यानी 90 फीसदी कम। सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर, मधेपुरा और समस्तीपुर में भी हालात कुछ ऐसे ही रहे। अब सवाल यह है कि जून में मानसून कमजोर क्यों रहा और जुलाई में क्या मौसम का मिजाज बदलेगा? मौसम ऑडिट रिपोर्ट में पढ़िए, कम बारिश के पीछे की वजहें और आने वाले दिनों का पूर्वानुमान…। जून में सामान्य से कम बारिश होने के 3 कारण 1. ट्रफ रेखा का मूवमेंट उत्तर की बजाय दक्षिण की तरफ रहा मानसून के दौरान ट्रफ रेखा उत्तर बिहार से होकर गुजरती है, जिससे राज्य के उत्तरी हिस्सों में अच्छी और नियमित बारिश होती रहती है। यह ट्रफ रेखा बंगाल की खाड़ी से उठने वाली नमी को उत्तर बिहार तक खींच कर लाती है, जिससे वहां लगातार बादल बनते हैं और बारिश होती है। इस साल ट्रफ रेखा का मूवमेंट उत्तर की बजाय दक्षिण दिशा में ज्यादा सक्रिय रहा। झारखंड, ओडिशा और मध्य भारत के हिस्सों में ट्रफ रेखा बनी रही। इसका असर यह हुआ कि उत्तर बिहार के जिलों – जैसे सीतामढ़ी, मधुबनी, सहरसा, सुपौल, अररिया, किशनगंज और आसपास के इलाके मानसूनी बारिश से नहीं भींग पाए। 2. वेदर सिस्टम दक्षिण और मध्य भारत में सक्रिय रहा मानसून के दौरान लो प्रेशर एरिया और डिप्रेशन सिस्टम बारिश कराने में अहम भूमिका निभाते हैं। ये सिस्टम अगर बिहार के ऊपर बनें या इसके पास से गुजरें तो अच्छी बारिश होती है। लेकिन इस बार जून में ऐसे सिस्टम बिहार के ऊपर न बनकर झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ के ऊपर बने। इन राज्यों के ऊपर वेदर सिस्टम के ज्यादा सक्रिय रहने से वहां भारी बारिश हुई। बिहार के दक्षिणी जिलों जैसे गया, नवादा, औरंगाबाद, जहानाबाद में कुछ हद तक बारिश हुई, क्योंकि ये जिले झारखंड के करीब हैं। उत्तर बिहार के हिस्से में बारिश के लिए सिस्टम कमजोर पड़े, जिससे बारिश की मात्रा काफी कम रह गई। 3. मानसून की धीमी रफ्तार मानसून ने 17 जून को बिहार में दस्तक दी, लेकिन इसकी गति और ताकत कमजोर रही। मानसून के शुरुआती दिनों में पश्चिमी विक्षोभ और बंगाल की खाड़ी से नमी लाने वाली हवाओं का तालमेल नहीं बन पाया। इसके कारण बारिश कराने वाले क्लाउड बैंड लगातार नहीं बन पाए, जिससे बारिश की गतिविधियां कमजोर पड़ीं। जुलाई में भी सामान्य से कम बारिश की संभावना मौसम वैज्ञानिक आशीष कुमार ने बताया, ‘राज्य में जुलाई में औसतन 340.5 मिमी बारिश होती है, लेकिन इस साल मानसून का प्रभाव कमजोर रहेगा, जिससे इतनी बारिश होने की संभावना नहीं है।’ उन्होंने बताया, ‘मानसून ट्रफ रेखा उत्तर बिहार की तरफ नहीं पहुंच रही है। वेदर सिस्टम झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ की ओर ज्यादा सक्रिय है। इसका असर यह हो रहा है कि बिहार में बारिश कम हो रही है।’ तापमान रहेगा सामान्य से अधिक, उमस बढ़ाएगी परेशानी मौसम वैज्ञानिक ने बताया, ‘बारिश कम होने के साथ ही इस बार तापमान भी सामान्य से अधिक रहने का अनुमान है। सामान्य तौर पर जुलाई में बिहार का अधिकतम तापमान 32 से 36 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है, लेकिन इस साल कई जिलों में पारा इससे ऊपर जा सकता है।’ वहीं, न्यूनतम तापमान के भी सामान्य से अधिक रहने की संभावना है। जुलाई में न्यूनतम तापमान आमतौर पर 24 से 28 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है, लेकिन इस बार यह आंकड़ा भी ऊपर जा सकता है। इससे किसानों को खेतों में काम करने में मुश्किलें होंगी और आम लोगों को भी भारी उमस भरी गर्मी का सामना करना पड़ेगा। जून में 90 प्रतिशत कम बारिश वाले जिले सहरसा में सामान्य तौर पर जून में 195.6 MM बारिश होनी थी, लेकिन सिर्फ 19.7 MM बारिश ही हुई है। जो 90 प्रतिशत कम है।