गंगा नदी के किनारे झाड़ियों में छिपकर देसी शराब बेचने वाले गोविंद (बदला हुआ नाम) एक काले रंग की पॉलिथीन लेकर बैठा है। जैसे ही कोई ग्राहक आता है तो शराब का पाउच निकालता है और एक लोटे में डालकर दे देता है। गोविंद कहता है- ‘साहेब, शराबबंदी तो बढ़िया है। पीना नहीं ही चाहिए। हम भी किसी को जबरदस्ती नहीं पिलाते, जो खरीदने आता है, उसी को देते हैं। ये देसी शराब है, इससे आदमी मर भी जाता है, फिर भी लोग पीते हैं।’ गोविंद 3 बार जेल भी जा चुका है। उधर, बिंदू आंखों में आंसू लिए बताती हैं- ‘मायके (छपरा के मशरख) से फोन आया कि भाई जहरीली शराब पीकर मर गया। मेरे पति के साथ रविंद्र के साथ भाई के अंतिम संस्कार में गई थी। पति ने भी घर लौटते हुए 50 रुपए में देशी शराब पी ली। रात में जाकर सोए तो सुबह उठे ही नहीं।’ बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू हुए 9 साल से ज्यादा हो गए। जहरीली शराब से मौतों के केस हर साल सामने आ रहे हैं, हालांकि सरकारी फाइलों में अब तक सिर्फ 190 मौतों का आंकड़ा दर्ज है। आरोप लगते हैं कि बिहार के हर शहर में अंग्रेजी शराब की होम डिलिवरी हो रही है। प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष उदय सिंह शराबबंदी हटाने की बात कर रहे हैं। उनका दावा है कि इससे करीब 28 हजार करोड़ रुपए के राजस्व का घाटा हो रहा है। हालांकि बिहार में अवैध तरीके से बिकने वाली शराब खरीदकर पीने वालों से लेकर बेचने वाले तक शराबबंदी के समर्थन में हैं। क्या इस विधानसभा चुनाव में शराबबंदी कोई मुद्दा है, पढ़िए ग्राउंड रिपोर्ट… शराबबंदी ठीक से लागू होती तो मेरे पति जिंदा होते
सिवान के भगवानपुर इलाके में शराब पीने से 15 अक्टूबर, 2024 को तकरीबन 37 से ज्यादा मौतें हुईं। इनमें बिंदू कुमारी के पति रविंद्र कुमार और भाई भी शामिल थे। रविंद्र राजमिस्त्री का काम करते थे। बिंदू के भाई की मौत के तीन दिन के अंदर ही जहरीली शराब से उनके पति की मौत हो गई। बिंदू शराबबंदी पर कहती हैं, ’भाई की इसी शराब से मौत हुई। मैं वहीं थी और मेरे पति घर लौट गए। यहां आने के बाद तीसरे दिन उन्होंने भी शराब पी ली और उनकी भी मौत हो गई। वो जिस दिन पीकर आए, उस दिन ठीक थे। अगले दिन अचानक शरीर से काफी पसीना निकलने लगा। हम लोग अस्पताल लेकर गए और शाम तक मौत हो गई।’ वो शराबबंदी को लेकर सवाल उठाते हुए कहती हैं, अगर शराबबंदी ठीक से लागू हुई होती तो मेरे पति की जान कैसे जाती और जब बिक ही रही है तो फिर शराबबंदी किस बात की है? महिलाओं के नाम पर कानून लाए, अब सरकार हमें भूल गई
रविंद्र की मौत पर परिवार को सरकार से 4 लाख रुपए मुआवजे के तौर पर फौरी मदद के रूप में मिले। इसे लेकर बिंदू की बेटी राधिका कहती हैं, ‘पूरे परिवार की नजर मुआवजे में मिले 4 लाख रुपए पर है। घर में ऐसे हालत हैं कि परिवार के लोग भी अच्छे से पेश नहीं आते।’ ’आए दिन बिना किसी बात के भी हमारे यहां झगड़े होते हैं। अपनी जमीन होने के बाद भी हम लोगों को किसी और के खेत में काम करना पड़ता है। पिछले साल मेरा 12वीं का एग्जाम था। पापा की मौत के बाद मम्मी ने स्कूल छुड़वा दिया।’ नीतीश कुमार कहते हैं कि वो महिलाओं के लिए ये कानून लाए हैं। एक बार आकर मेरी मम्मी का और मेरा हाल देखेंगे तो समझ आएगा। सरकार हमें भूल गई है। इस बार विधानसभा चुनाव में किसे वोट करेंगी? इसे जवाब में राधिका कहती हैं कि किसे वोट दें, चुनाव में ऐसा कोई दिख ही नहीं रहा है, जिसे दे सकें। शुरुआत में नीतीश कुमार सरकार शराबबंदी पर बहुत सख्त रही लेकिन बाद में मुआवजे को लेकर वो थोड़ा नरमी आई। 2016 में शराबबंदी लागू होने के बाद वो लगातार दावा करते रहे कि ये ‘समाज सुधार’ का अटल फैसला है। इसे हटाना महिलाओं के विश्वास से धोखा होगा। उन्होंने विधानसभा में साफ कहा था, ‘जो शराब पिएगा, वो मरेगा। मुआवजा किस बात का?’ हालांकि भारी राजनीतिक दबाव के बाद उन्होंने बयान से पलटते हुए अप्रैल 2023 में मृतकों के परिजन को मुख्यमंत्री आपदा राहत कोष से चार लाख रुपए सशर्त मुआवजा देने का ऐलान किया। मुआवजा लेने वाले परिवार को ये शपथ लेनी होगी कि वे शराबबंदी कानून का समर्थन करते हैं और इसे तोड़ने की गलती आगे नहीं दोहराएंगे। लोग चोरी-छिपे शराब पी रहे, इसमें सरकार क्या करे
रविंद्र के पड़ोसी राजेश्वर साहू उनकी मौत से आहत हैं लेकिन शराबबंदी के मुद्दे पर कहते हैं, ‘मैं 75 साल का हो चुका हूं। हमेशा से सड़क हादसे की खबर सुनते आ रहे है कि सड़क पार करते वक्त एक्सीडेंट में मौत हो गई। अब ऐसी खबरें कम आती हैं तो अच्छा महसूस होता है। शराब चालू रहती तो सड़क पर रोज एक एक्सीडेंट होता था।‘ शराब पीकर आपके गांव में ही करीब 12 लोगों की मौत गई, उसका क्या? इस पर वो कहते हैं, ‘सरकार ने तो शराब बंदी कर ही रखी है लेकिन लोग ही नहीं मान रहे हैं। हमारे यहां ही रात को चोरी से पीकर आए और सुबह तक जान चली गई। इसमें सरकार क्या कर सकती है?‘ राजेश्वर साहू की पत्नी रीमा देवी भी शराबबंदी का समर्थन करती हैं और इसे जरुरी बताती हैं। वो कहती हैं, ‘नीतीश जी ने शराब बंद करके अच्छा काम किया है और महिलाएं इससे खुश हैं। आज घर के पुरुष शराब नहीं पीते हैं तो दो पैसे ज्यादा बचते हैं।‘ ‘जो लोग पी भी रहे हैं, वो भी चोरी-छिपे ही पी रहे हैं।‘ शराब बेचने वाले शराबबंदी से खुश, बोले- इसी से घर चल रहा
गंगा नदी के किनारे झाड़ियों में छिपकर देसी शराब बेचने वाले गोविंद कहते हैं, ‘साहेब, शराबबंदी तो बढ़िया है। किसी को जबरदस्ती नहीं पिलाते, जो खरीदने आता है, उसी को देते हैं। ये देसी शराब है, इससे आदमी मर भी जाता है, फिर भी लोग पीते हैं।’ अवैध शराब का धंधा करने वाले गोविंद सोनपुर के रहने वाले हैं। वो खुलेआम कबूल करते हुए कहते हैं कि ये धंधा उनकी मजबूरी है। वे कहते हैं, ‘क्या करें साहब? पढ़े लिखे नहीं हैं, नौकरी नहीं मिलती। मजदूरी में दिन भर मेहनत करने पर 500 रुपया मिलता है, वो भी रोज नहीं। यहां शराब बेचकर रोज 2500-3000 रुपए तक कमा लेते हैं।’ हमने पूछा देसी शराब कहीं से लाते हैं या फिर बनाते हैं? जवाब में गोविंद कहते हैं, ‘एक तो सप्लाई वाली शराब है, जिसमें सिर्फ स्प्रिट होता है। ये स्प्रिट ज्यादा हो जाए तो जहरीला हो जाता है और लोग मरते हैं। दूसरा, लोग खुद महुआ और गुड़ से शराब बनाते हैं, जिसमें नौसादर या यूरिया डालते हैं। लोग एक साथ 3-4 पॉकेट पी जाते हैं, इसीलिए मरते हैं।’ जब आप जानते हैं कि ये गलत काम है तो फिर छोड़ क्यों नहीं देते? इस पर गोविंद कहते हैं, हम शराब बेचने के चक्कर में 3 बार जेल जा चुके हैं। बेचने में बहुत डर लगता है। बार-बार पुलिस आती है तो अपनी जगह बदल लेते हैं। दो पैसे चाहिए तो ये सब करना ही पड़ता है। आंख की रोशनी गई, सरकार ने हमें बेसहारा छोड़ दिया
सीवान के ही भगवानपुर इलाके के रहने वाले विवेक ने भी रविंद्र और बाकी गांववालों के साथ देसी शराब पी थी। अगले दिन से ही उनकी आंखों की रोशनी कम होने लगी। अभी फिलहाल वो 30% देख पाते हैं। शराबबंदी को लेकर विवेक की राय बाकी सबसे काफी अलग है। वे कहते हैं, ‘मैं रेगुलर शराब नहीं पीता। कभी-कभार चोरी छिपे पी लेता था। उस दिन भी मैंने चोरी से शराब पी और आकर चुपचाप सो गया। सुबह उठते ही पता चला कि गांव में 3 लोगों की मौत हो गई है। मैंने धीरे से छोटे भाई को बताया कि मैंने भी वहीं से शराब पी थी। फिर घरवाले मुझे अस्पताल ले गए। इलाज में चार-पांच लाख रुपए खर्च हो गए। अब मेरी नजर बहुत कमजोर हो गई है। काफी कम दिखता है।‘ गांव के चौराहे पर ही विवेक का सैलून था लेकिन आंख खराब होने के बाद अब बाल नहीं काट पाते। वो कहते हैं, ‘घर में पत्नी, भाई और 3 साल की बेटी है। परिवार का साथ मिलता तो है लेकिन अब जिंदगी बोझ जैसी लगती है। घर पर मुझे कोई कुछ नहीं कहता है लेकिन व्यवहार से समझ में आ जाता है कि लोगों के लिए बोझ हो गया हूं।‘ शराबबंदी पर विवेक कहते हैं, ‘शराब या तो नियम-कायदे से बिके या फिर पूरी तरह बंद हो जाए। किसी को भी जहरीली शराब बेचने का अधिकार कैसे है। मुझे 50 रुपए में ही शराब मिल गई। वही मेरे लिए जानलेवा साबित हो गई। मेरी तो मौत भी नहीं हुई कि घर वालों को चार-पांच लाख रुपए ही मिल जाते। मेरे घर तो आज तक कोई पूछने भी नहीं आया।‘ एक साल बाद भी नहीं मिला मुआवजा
विवेक के गांव से तकरीबन 3 किमी दूर खैरवां गांव की मुसहर बस्ती में एक ही मोहल्ले में 8 मौतें हुईं। बीते साल दिवाली से एक दिन पहले हुईं ये मौतें पूरे बिहार में चर्चा की वजह बनीं। नीतीश सरकार के आदेश के साल भर बाद भी यहां के चार पीड़ित परिवारों को मुआवजा नहीं मिल सका है। उनमें से एक लालमुनिया देवी का परिवार भी है। पति की मौत के बारे में पूछने पर वे कहती हैं, ‘एक दिन पीकर आए, बिना बताए सो गए। सुबह उठते ही उल्टी होने लगी। अस्पताल लेकर गए तो वहां दो दिन रखा, फिर वहीं मौत हो गई। काम में उलझी लालमुनिया ने बिना किसी भाव के ये बातें हमें बता दीं।‘ हमने पूछा कि आप किस हाल में हैं। इस पर वे कहती हैं, ‘ये मक्का साफ कर रहे हैं। इसमें खाने लायक कुछ बचेगा तो बनेगा नहीं तो गांव में जाकर मांगना पड़ेगा। आज कहीं कुछ नहीं मिला तो बिना खाए भी सोना पड़ सकता है।‘ लालमुनिया की बेटी पूजा कहती हैं, ‘हम लोगों को आज तक मुआवजा नहीं मिला। कई बार हम लोगों का नाम लिख कर ले गए और आज तक कोई सुनवाई नहीं हुई। हम लोगों के पास घर तक नहीं है। एक वो ही कमाने वाले थे। ना खेत है, ना रहने की जगह है।‘ अब जानिए बिहार की पॉलिटिकल पार्टियां क्या कह रहीं…
BJP: शराबबंदी की नीति बिहार में सफल
जनता दल यूनाइटेड (JDU) और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का मानना है कि शराबबंदी से महिलाओं और गरीब परिवारों का जीवन सुधरा है। BJP ने जब तक JDU के साथ गठबंधन में सरकार चलाई, आधिकारिक तौर पर शराबबंदी का समर्थन किया। हालांकि कानून के लागू करने में सामने आई खामियों पर पार्टी नेता मुखर रहे। हालांकि अभी वो इसे सफल बता रहे हैं। BJP नेता कुंतल कृष्ण कहते हैं, ‘शराबबंदी की नीति बिहार में बहुत सफल रही। बिहार सरकार का ये बहुत सराहनीय कदम रहा। शराबबंदी से परिवारों के टूटने पर लगाम लग गई है। शराबबंदी जारी रहेगी और ये किस तरह से और प्रभावी ढंग से लागू होगी, हम इसे लेकर गंभीर भी हैं।‘ पिज्जा की तरह घर-घर शराब की डिलीवरी
वहीं कांग्रेस प्रवक्ता ज्ञान रंजन का कहना है कि बिहार सरकार शराबबंदी को पूरी तरह बंद करने में नाकाम है। पिज्जा डिलीवरी की तरह घर-घर शराब पहुंचाई जाती है। ये सब कुछ मीडिया में है और ये कानून फिर भी रिव्यू नहीं किया जाता है। सभी पार्टियों को मिलकर इसका रिव्यू कर लेना चाहिए। …………………..
ये खबर भी पढ़ें… ‘नेपाल न होता तो हम भूखे-प्यासे मर जाते’ रक्सौल का सीवान टोला गांव। नेपाल से इतना करीब कि लोग कमाने भी वहीं जाते हैं। यहां आपस में लोग इतने घुले-मिले हैं कि भारत के दीपनारायण पटेल और नेपाल के लाल बाबू पटेल एक दलान में बैठे मिल जाते हैं। ये सीवान टोला का एक पहलू है। दूसरा पहलू ये कि यहां के लोगों को सरकार से बहुत शिकायतें हैं। गांव की लीलावती कहती हैं, ‘यहां न नाली है, न रोड। हम लोग नेपाल से पानी लाकर पी रहे हैं। पढ़िए पूरी रिपोर्ट…