महीनेभर से इलाज के लिए लगा रहे गुहार:पीएमसीएच : इलाज के लिए दर-दर भटक रहे लावारिस मरीज, देखने वाला कोई नहीं

पीएमसीएच में लावारिस मरीजों की दुर्दशा है। बेतिया के रहने वाले 21 वर्षीय आशीष रोजी-रोटी की तलाश में पटना आए थे। एक माह पहले वह एक दुर्घटना में बुरी तरह घायल हो गए। घुटना के ऊपर पैर फ्रैक्चर हो गया और मांस बाहर निकल आया। किसी ने बेहोशी की हालत में पीएमसीएच में भर्ती करा दिया। इमरजेंसी में मरहम-पट्टी कर अगले ही दिन वहां से निकला दिया गया। तभी से वह राजेन्द्र सर्जिकल वार्ड के पास घिसट-घिसट कर हर आने-जाने वाले लोगों से इलाज करा देने की गुहार लगा रहे हैं। उनके पास न तो पैसे हैं और न ही वे घर जाने की स्थिति में हैं। यह अकेले आशीष की कहानी नहीं है। पीएमसीएच के इमरजेंसी वार्ड और राजेन्द्र सर्जिकल वार्ड के पास ऐसे कई बेसहारा मरीज इलाज के अभाव में तड़प रहे हैं। पश्चिम बंगाल की सौम्या (30) मुश्किल से सिर्फ अपना नाम बता पा रही है। वह कैसे यहां पहुंची, उसके हाथ-पैर में कैसे चोट लगी, उसे कुछ नहीं पता है। वहीं, एक अन्य अर्द्ध विक्षिप्त महिला राजेन्द्र सर्जिकल के नीचे केनरा बैंक की एटीएम के पास कराह रही है। उसे अस्पतालकर्मियों ने बाहर निकाल दिया है। दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल लावारिस मरीजों को पीएमसीएच में भर्ती लिया जाता है, लेकिन उनका इलाज नहीं हो पा रहा है। उन्हें वार्डों में अलग-थलग छोड़ दिया जाता है। 2013 में लावारिस वार्ड बना, पर नया भवन बनने से वह टूट गया वर्ष 1985 से पीएमसीएच में लावारिस मरीजों की देखभाल करवाने वाले प्रसिद्ध समाजसेवी विजय कुमार ने बताया कि पीएमसीएच में लावारिसों का इतना बुरा हाल कभी नहीं रहा। उन्होंने बताया कि 2013 में आपदा प्रबंधन विभाग के तत्कालीन प्रधान सचिव ब्यासजी ने 3 लाख, 67 हजार रुपए की लागत से छह बेड का वातानुकूलित लावारिस वार्ड बनाया था। बाद में बेड की संख्या बढ़ाकर 14 कर दी गई, लेकिन नए भवन बनाए जाने के दौरान दो-तीन साल पहले लावारिस वार्ड टूट गया। इनके लिए अलग व्यवस्था नहीं की जा सकी। साथ ही समाजसेवी लोगों को अस्पताल परिसर में प्रवेश पर रोक लगा दी गई है। पूर्व अधीक्षक डॉ. लखेंद्र प्रसाद का कहना है कि जब वे पीएमसीएच में थे, उस समय छह बेड का लावारिस वार्ड था। बाद में उसे 14 बेड का बना दिया गया। 2-2 नर्स को नियुक्त किया गया था। अस्पताल प्रशासन बात करने को तैयार नहीं अस्पताल अधीक्षक डॉ. आईएस ठाकुर इस संबंध में बात करने को तैयार नहीं हैं। वाट्सएप पर प्रश्न भेजा गया, पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। अस्पताल के कई चिकित्सक मानते हैं कि बेसहारा के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। इलाज में लापरवाही करने पर हो सकती है कार्रवाई विपीन कुमार देव, वकील, पटना हाईकोर्ट आईपीसी की धारा 336, 337 और 338 के तहत यदि कोई अस्पताल या उसका स्टाफ लावारिस मरीज की देखभाल में लापरवाही करता है तो उसपर कार्रवाई की जा सकती है। एनएचआरसी अधिनियम, 1993 के तहत भी स्वास्थ्य सुविधाओं में लावारिस मरीजों के साथ दुर्व्यवहार पर आयोग स्वतः संज्ञान ले सकता है। राज्य सरकार ने भी सार्वजनिक अस्पतालों में लावारिस मरीजों के लिए अस्पताल में भर्ती करने, उपचार, पहचान और अंतिम संस्कार तक के प्रावधान किए हैं। इनके लिए नि:शुल्क इलाज से लेकर खान-पान, कपड़े, देखभाल हर तरह की व्यवस्था शामिल की गई है। क्या कहते हैं पूर्व अधीक्षक

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