महागठबंधन में सीट शेयरिंग पर जारी खींचतान के बीच एक बड़ी खबर सामने आ रही है। महागठबंधन के सूत्रों की मानें तो तेजस्वी यादव ने मुकेश सहनी को दू टूक कह दिया है कि अगर आपको महागठबंधन से चुनाव लड़ना है तो उनकी शर्तों के साथ ही चुनाव लड़ना होगा। इसके बाद मुकेश सहनी ने फेसबुक अकाउंट से एक तस्वीर जारी की, जिसमें महागठबंधन का कहीं कोई जिक्र नहीं है। जबकि इसी तरह का एक पोस्ट सहनी ने तीन दिन पहले जारी किया था, उसमें महागठबंधन सरकार का जिक्र था। इसके बाद देर शाम तेजस्वी यादव ने इंडियन इंक्लूसिव पार्टी के मुखिया आईपी गुप्ता से मुलाकात की। इस मुलाकात का वीडियो जारी करते हुए आईपी गुप्ता ने एक्स पर लिखा, ‘पहली मुलाकात है, मिला मजबूत साथ है। शाम भी खास है, वक्त भी खास है, मुझको एहसास है। इससे ज्यादा हमें और क्या चाहिए, मैं तेरे पास हूं, तू मेरे पास है।’ हालांकि फेसबुक पोस्ट के 4 घंटे बाद मुकेश सहनी ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट से एक बयान जारी कर कहा है कि ‘महागठबंधन अटूट है। हम लोग महागठबंधन के साथ हैं।’ अब देखिए पोस्टर… सहनी के नेता ने कहा- हमें चुप रहने के लिए बोला गया है दैनिक भास्कर ने जब इस मामले में वीआईपी नेताओं से बात की तो उन्होंने बताया, ‘हमारे हाथ को बांध दिए गए हैं। बहुत कुछ हो रहा है, लेकिन अभी कुछ भी बोलने से मना किया गया है।’ मुलाकात के 2 मायने निकाले जा रहे हैं 1. सहनी अगर साथ छोड़ते हैं, आईपी गुप्ता को ईबीसी चेहरे के तौर महागठबंधन में आगे बढ़ाया जा सकता है।
2. आईपी गुप्ता के नाम पर मुकेश सहनी को हिदायत दी गई है। NDA की इमरजेंसी बैठक महागठबंधन के इस अपडेट के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अपने सहयोगी दलों की एक आपात बैठक दिल्ली में बुलाई। हालांकि इस बैठक में क्या-क्या बात हुई इसकी जानकारी फिलहाल किसी नेता की तरफ से नहीं दी जा रही है। सूत्रों की मानें तो एक चर्चा सहनी के नाम पर ही हुई है। अगर सहनी महागठबंधन का साथ छोड़कर एनडीए में आते हैं तो सभी दलों को अपने-अपने हिस्से की सीटें मुकेश सहनी को देनी होगी। गठबंधन पर दिल्ली में होगा अंतिम निर्णय वहीं बिहार के बाद अब महागठबंधन की फाइनल मीटिंग दिल्ली में होगी। तेजस्वी यादव और लालू यादव रविवार सुबह को दिल्ली के लिए रवाना होंगे। चर्चा इस बात की हो रही है कि बिहार में बात नहीं बनने के बाद अब दिल्ली में कांग्रेस और राजद के टॉप लीडरशिप की एक बैठक होगी। सहनी की ताकत, सीट भले न जीतें, लेकिन वोट दिला सकते हैं 2014 से 2024 तक 10 साल में मुकेश सहनी ने बिहार में खुद को निषाद कम्युनिटी के नेता के तौर पर स्थापित किया है। बिहार में इस कम्युनिटी की आबादी करीब 2.5% है। सीनियर जर्नलिस्ट अरुण पांडेय बताते हैं, ‘मुकेश सहनी भले सीट न जीतें, लेकिन मुजफ्फरपुर, वैशाली, दरभंगा, मधुबनी, खगड़िया और सहरसा यानी मिथिलांचल-कोसी के इलाके की 25 से 30 सीटों पर हार-जीत का बड़ा फैक्टर हैं। यहां निषादों की अच्छी-खासी आबादी है।’ अरुण पांडेय आगे बताते हैं, ‘मुकेश सहनी लगातार चुनाव हार रहे हैं, लेकिन अपनी जाति में उनकी वैसी ही पैठ है, जैसी कुशवाहा समुदाय में RLSP के लीडर उपेंद्र कुशवाहा की है।’ सहनी की वजह से नुकसान और फायदे का गणित 1. अलग हुए तो महागठबंधन में टूट का मैसेज जाएगा
अरुण पांडेय बताते हैं, ’अगर BJP मुकेश सहनी को तोड़ने में कामयाब रहती है तो इसका फायदा NDA को मिलेगा। NDA चुनाव से पहले मैसेज दे सकेगा कि महागठबंधन में एकजुटता नहीं है। ये बिल्कुल वैसा ही झटका होगा जैसा लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार के INDIA गठबंधन छोड़ने से लगा था। नीतीश कुमार ने INDIA बनाने से लेकर विपक्ष को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई थी।’ 2. अति पिछड़ा वर्ग साथ आया, तो NDA का गढ़ मजबूत होगा
NDA के लिए अति पिछड़ा वर्ग यानी EBC मजबूत वोट बैंक माना जाता है। EBC-OBC, NDA खासकर नीतीश कुमार का कोर वोट बैंक है। सहनी के आने से NDA का वोट बैंक बढ़ेगा। वैसे भी मुकेश सहनी के असर वाला मिथिलांचल और कोसी का इलाका BJP का गढ़ माना जाता है। मुकेश सहनी साथ आते हैं, तो ये गढ़ और मजबूत हो जाएगा। 3. तेजस्वी का EBC समीकरण बिगड़ेगा
2005 के बाद से नीतीश कुमार कोइरी, कुर्मी और EBC समुदाय के सबसे बड़े नेता हैं। इसी सोशल इंजीनियरिंग के दम पर वे 20 साल से लगातार CM हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद से तेजस्वी इस वोट बैंक में सेंधमारी करने की कोशिश कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने दो प्रयोग किए। पहला: लोकसभा चुनाव में पहली बार RJD और महागठबंधन की तरफ से कुशवाहा समुदाय के 7 कैंडिडेट को टिकट दिया गया।
दूसरा: मुकेश सहनी को अपने साथ जोड़ा। लोकसभा चुनाव के दौरान तेजस्वी यादव ने 250 से ज्यादा सभाएं कीं। सभी में सिर्फ मुकेश सहनी उनके साथ रहे। इस दौरान तेजस्वी और मुकेश सहनी के अलावा महागठबंधन का कोई नेता नहीं रहता था। इससे तेजस्वी ने मैसेज देने की कोशिश की थी कि नीतीश का वोट बैंक अब RJD की तरफ शिफ्ट हो रहा है। मुकेश सहनी का साथ छूटा, तो तेजस्वी यादव की कोशिशों को बड़ा झटका लगेगा। सहनी को महागठबंधन के साथ नुकसान, NDA के साथ फायदा मुकेश सहनी NDA और महागठबंधन दोनों के साथ चुनाव लड़ चुके हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव और 2015 के विधानसभा चुनाव में मुकेश सहनी ने बिना पार्टी के BJP के लिए प्रचार किया था। 2018 में उन्होंने अपनी पार्टी बनाई। 2019 के चुनाव में वे महागठबंधन के साथ थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी 4 सीटों पर लड़ी, लेकिन सभी पर हार गई। 2020 के विधानसभा चुनाव में मुकेश सहनी दोबारा NDA का हिस्सा बने। 11 सीटों पर कैंडिडेट उतारे और 4 सीटें जीतीं। 2024 के लोकसभा चुनाव में वापस वे महागठबंधन के साथ चले गए। पार्टी ने तीन सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन खाता नहीं खोल पाई BJP ने सहनी का करियर बनाया, उसी ने बिगाड़ा
सहनी का करियर बनाने और बिगाड़ने में BJP का अहम रोल रहा है। मुकेश सहनी को BJP ने सबसे पहले 2020 में अपने कोटे से MLC बनाया था। सरकार बनने के बाद उन्हें पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग का मंत्री बनाया गया। दो साल बाद 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में सहनी ने बगावती तेवर दिखाए। BJP ने मुकेश सहनी के सभी विधायकों को तोड़कर अपने पाले में कर लिया। सहनी को मंत्री पद के साथ विधान परिषद से भी इस्तीफा देना पड़ा। मुकेश सहनी के जाने के बाद BJP ने हरि सहनी पर दांव लगाया। इन्हें विधान परिषद सदस्य बनाने के साथ मंत्री का पद भी दिया। इसके बाद लोकसभा चुनाव में BJP ने मुकेश सहनी के ही करीबी रहे राज नारायण निषाद को मुजफ्फरपुर से लड़ाया। चुनाव जीतने के बाद BJP ने उन्हें केंद्र में मंत्री बनाया। फिर भी पार्टी निषाद समुदाय के बीच पैठ नहीं बना सकी है। क्या आप हैं बिहार की राजनीति के एक्सपर्ट? खेलिए और जीतिए 2 करोड़ तक के इनाम बिहार की राजनीति से जुड़े 5 आसान सवालों के जवाब दीजिए और जीतिए 2 करोड़ तक के इनाम। रोज 50 लोग जीत सकते हैं आकर्षक डेली प्राइज। लगातार खेलिए और पाएं लकी ड्रॉ में बंपर प्राइज सुजुकी ग्रैंड विटारा जीतने के मौके। चुनावी क्विज अभी खेलने के लिए यहां क्लिक करें – https://dainik.bhaskar.com/GXiUvc8h3Wb