रामविलास की 2 पत्नियां, पहले अरेंज मैरिज फिर प्रेम विवाह:परिवार के 6 लोगों को सांसद बनवाया; बेटे को सौंपी विरासत, भाई ने तोड़ी पार्टी

बिहार के ताकतवर राजनीतिक परिवारों की सीरीज ‘कुनबा’ के दूसरे एपिसोड में कहानी, रामविलास के पासवान कुनबे की… बात 2014 की है। एनडीए, नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लोकसभा चुनाव लड़ रही थी। यूपीए में भगदड़ थी। तब बिहार के कद्दावर नेता रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी यूपीए का हिस्सा थी। सीट शेयरिंग को लेकर रामविलास कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ दो मीटिंग कर चुके थे, लेकिन बात नहीं बनी। आखिरकार सोनिया ने राहुल पर फैसला छोड़ दिया। रामविलास और उनके बेटे चिराग तीन महीने तक राहुल से मिलने की कोशिश करते रहे, लेकिन उन्हें एक सेकेंड का भी समय नहीं दिया गया। फरवरी 2014 के पहले हफ्ते में बिहार के कांग्रेस महासचिव सीपी जोशी के घर के बाहर एक सफेद कार आकर रुकी। दरवाजा खुला और रामविलास पासवान अपने बेटे चिराग के साथ गाड़ी से उतरे और घर के अंदर गए। करीब एक घंटे तक सीपी जोशी से ड्राइंग रूम में सीट शेयरिंग को लेकर बातचीत हुई, लेकिन नतीजा नहीं निकला। इसके बाद सीपी जोशी के साथ दो मीटिंग और हुईं, लेकिन बेनतीजा रहीं। पासवान गुस्से में जोशी के घर से निकल आए और माथे का पसीना पोंछते हुए गाड़ी में बैठ गए। चिराग धीरे से पिता से बोले- ‘अब हमें भी एनडीए से बात कर लेनी चाहिए।’ तिलमिलाए रामविलास ने जवाब दिया- ‘मैं जहर पीना पसंद करूंगा, लेकिन बीजेपी के साथ नहीं जाऊंगा।’ सीनियर जर्नलिस्ट शोभना के. नायर अपनी किताब ‘रामविलास पासवान: द वेदरवेन ऑफ इंडियन पॉलिटिक्स’ के पेज 186 पर बताती हैं- इस घटना के कुछ दिनों बाद 24 फरवरी 2014 की दोपहर रामविलास पासवान कमरे में आराम करने जा रहे थे। तभी चिराग ने कहा- ‘चुनाव नजदीक हैं, हमें एनडीए में जाने के बारे में सोचना चाहिए।’ रामविलास कुछ देर सोचकर बोले- ‘मैं तुम्हें 30 दिन देता हूं। तुम अकेले बीजेपी से बात करोगे। जब तक सब तय न हो जाए, तुम पब्लिक में किसी बीजेपी नेता के साथ नहीं दिखोगे।’ उधर, बीजेपी के राजनाथ सिंह को इस पूरे मामले की जानकारी थी। उन्होंने बिहार बीजेपी के तीन नेता शाहनवाज हुसैन, राजीव प्रताप रूडी और रविशंकर प्रसाद को आगे किया। इस तिकड़ी ने चिराग और उनके चाचा पशुपति पारस के साथ गुपचुप कई मीटिंग की। 26 फरवरी को रामविलास पासवान ने दिल्ली में अपने सरकारी बंगले 12, जनपथ पर प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई। वे बार-बार जेब से रूमाल निकाल कर पसीना पोंछते। उनके बगल में बैठे चिराग ने बोलना शुरू किया- ‘मौजूदा गठबंधन में दिक्कतें होने के कारण हम यूपीए से अलग हो रहे हैं।’ अगले दिन यानी 27 फरवरी की दोपहर रविशंकर, शाहनवाज और रूडी सीट शेयरिंग की बात करने रामविलास के घर पहुंचे। चिराग ने 12 सीटें मांगीं, लेकिन 7 ही मिलीं। हालांकि ये सीटें चिराग ने खुद चुनीं। उसके बाद देर रात रामविलास ने बीजेपी के साथ गठबंधन का ऐलान कर दिया। 16 मई 2014 को नतीजे आए तो एलजेपी को 6 सीटों पर जीत मिली। इनमें से तीन पर पासवान परिवार के ही उम्मीदवार थे। इस जीत ने चिराग को पिता रामविलास के उत्तराधिकारी की रेस में चाचा पशुपति और पार्टी के तमाम नेताओं से कहीं आगे खड़ा कर दिया। पासवान परिवार में कुल 21 लोग हैं। इनमें से 8 लोग राजनीति से जुड़े रहे। रामविलास 6 बार केंद्रीय मंत्री, करीब 32 साल लोकसभा सांसद, दो बार राज्यसभा सांसद और एक बार विधायक रह चुके। उनके भाई पशुपति एक बार केंद्रीय मंत्री और 7 बार विधायक रहे। वहीं रामचंद्र 4 बार सांसद रहे। रामविलास के बेटे चिराग पासवान अभी लोक जनशक्ति (रामविलास) पार्टी के अध्यक्ष, सांसद और केंद्रीय मंत्री हैं। पशुपति के बेटे यशराज का अभी राजनीतिक डेब्‍यू होना बाकी है, जबकि रामचंद्र के बेटे प्रिंस राज सांसद रह चुके हैं। बिहार में खगड़िया से 30 किलोमीटर दूर शहरबन्नी गांव। पासवान जाति के कबीरपंथी दलित जामुन पासवान और सिया देवी के घर 5 जुलाई 1946 को रामविलास का जन्म हुआ। शहरबन्नी गांव चार नदियों कोसी, कमला, बलान और बागमती से घिरा है। रामविलास बचपन से ही पढ़ाई में तेज थे। उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था, ‘हमारी पढ़ाई के लिए पिता ने कन्हैयालाल नाम के एक मास्टर को घर पर रख लिया था। हम उनके साथ दो नदी पार कर के स्कूल जाते थे क्योंकि शहरबन्नी ज्यादातर महीने डूबा रहता था।’ 1961 में हायर सेकेंडरी पास करने के बाद रामविलास ने बीए के लिए खगड़िया के कोशी कॉलेज में एडमिशन लिया। बाद में लॉ की पढ़ाई के लिए पटना आ गए। जब वो 14 साल के थे तभी उनकी शादी 13 साल की रामकुमारी देवी से हो गई थी। दोनों की दो बेटियां भी हैं उषा और आशा। राजकुमारी देवी आज भी रामविलास के पैतृक गांव शहरबन्नी में रहती हैं। साल 1967 में रामविलास के मामा रामसेवक हजारी विधानसभा चुनाव लड़ रहे थे। तब वो मामा का चुनाव प्रचार करने लगे। ये पहला मौका था, जब वो राजनीति को इतने करीब से देख रहे थे। यहीं से उनकी राजनीति में दिलचस्पी पैदा हुई। चुनाव के बाद पासवान फिर अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो गए। दोस्त के कहने पर डीएसपी की नौकरी छोड़ चुनाव लड़ा 1969 में रामविलास पासवान बिहार लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा पास कर डीएसपी की पोस्ट के लिए सिलेक्ट हुए। जॉइनिंग से पहले वे कुछ दिनों के लिए अपनी बुआ के घर गढ़पुरा गए। वहां पर कई लोगों ने उन्हें राजनीति में आने का सुझाव दिया। गांव के लोगों में उनके चुनाव लड़ने की चर्चा भी होने लगी। हालांकि रामविलास के पिता चाहते थे कि बेटा डीएसपी की नौकरी जॉइन कर ले। रामविलास ने अपने दोस्त लक्ष्मीनारायण से बात की। लक्ष्मीनारायण ने उनसे पूछा- ‘तुम गवर्नमेंट सर्वेंट बनना चाहते हो या खुद गवर्नमेंट? राजनीति में गए और मंत्री बने तो गवर्नमेंट हो, नौकरी की तो गवर्नमेंट के सर्वेंट बनोगे।’ रामविलास को दोस्त की बात समझ आ गई। कुछ दिन बाद रामविलास बुआ के घर से खगड़िया वापस लौटने लगे। अपने दो दोस्तों के साथ ट्रेन में चढ़े तो सामने वाली सीट पर अलौली विधानसभा से कांग्रेस विधायक मिश्री सदा बैठे थे। पासवान ने उन्हें नमस्कार किया और अपनी सीट पर बैठ गए। हालांकि मिश्री सदा, रामविलास को पहचानते नहीं थे। कुछ देर में मिश्री के एक समर्थक ने कहा- ‘इस बार अलौली से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (संसोपा) किसी पासवान नाम के लड़के को टिकट देने वाली है। हाल ही में डीएसपी बना है। कल का लौंडा है और आपको चुनौती दे रहा है।’ मिश्री सदा ने हंसते हुए कहा- ‘चलो पिछली बार 40 हजार वोट से जीते थे, अबकी बार 80 हजार वोट से जीत जाएंगे।’ रामविलास को ये बात चुभ गई और वो खगड़िया से दो स्टेशन पहले ही उतर गए। वो संसोपा के मुंगेर जिलाध्यक्ष रामजीवन सिंह के घर पहुंचे। उनसे मिलते ही बोले- ‘मैं पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ना चाहता हूं।’ रामजीवन ने पूछा- ‘कहां से?’ रामविलास ने जवाब दिया- ‘अलौली से।’ डीएसपी बनने की खुशी में उनके पिता ने रामविलास को 250 रुपए भेजे थे। इस पैसे से उन्होंने एक एवन साइकिल खरीदी और गांव-गांव घूमकर खुद प्रचार करने लगे। चुनाव के नतीजे आए तो पासवान को मिश्री सदा से 700 वोट ज्यादा मिले। रामविलास पहली बार विधायक बने। जेपी ने पोस्टर लगवाए ‘मेरा उम्मीदवार रामविलास पासवान’ 1974 में रामविलास, जेपी आंदोलन में शामिल हो गए। 1975 में उन्हें मीसा कानून के तहत जेल हो गई। 1977 में रिहा हुए और जनता पार्टी से जुड़ गए। इसी साल लोकसभा चुनाव भी हुए। जेपी चाहते थे कि रामविलास जनता पार्टी के टिकट पर हाजीपुर से चुनाव लड़ें, लेकिन पार्टी ने दलित नेता रामसुंदर दास का नाम आगे कर दिया। सीनियर जर्नलिस्ट प्रदीप श्रीवास्तव अपनी किताब ‘रामविलास पासवान: संकल्प, साहस और संघर्ष’ में लिखते हैं- ‘जेपी बहुत गुस्सा थे। उन्होंने रामविलास को दस हजार रुपए दिए और नॉमिनेशन भरने को कहा। फिर अपने निजी सहायक इब्राहिम को बुलाकर जेपी ने एक पन्ने पर लिखवाया- ‘जनता पार्टी का उम्मीदवार कौन है? मैं नहीं जानता, लेकिन जेपी का उम्मीदवार रामविलास पासवान है।’ हाजीपुर के चौक-चौराहों पर हजारों पोस्टर चिपका दिए गए। जनता पार्टी ने रामसुंदर का टिकट काटकर पासवान को दे दिया। रामविलास रिकॉर्ड 4.24 लाख वोटों से जीते। उनकी यह जीत गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हुई। पहली पत्नी के होते हुए दूसरी शादी की जब पासवान पहली बार सांसद बनकर दिल्ली पहुंचे तो उनकी मुलाकात वाणिज्य मंत्रालय के डिप्टी डायरेक्टर गुरबचन सिंह से हुई। जान पहचान बढ़ी तो एक रोज गुरबचन सिंह की बेटी अविनाश कौर से रामविलास की मुलाकात हुई। वो उस समय 19 साल की थी और एयर होस्टेस बनना चाहती थी। वह एअर इंडिया में इंटरव्यू लेवल तक पहुंच गई थी। रामविलास पहली मुलाकात में ही 12 साल छोटी रीना को दिल दे बैठे। धीरे-धीरे दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ीं। 1983 में राजकुमारी से अलग होकर रामविलास ने अविनाश कौर से शादी कर ली। कौर ने शादी के बाद नाम बदलकर रीना पासवान रख लिया। दोनों के दो बच्चे हैं, निशा और चिराग पासवान। सीनियर जर्नलिस्ट प्रदीप श्रीवास्तव की किताब ‘रामविलास पासवान: संकल्प, साहस और संघर्ष’ में रीना पासवान बताती हैं, ‘जब मेरे ससुर की तबीयत खराब हुई, तब उन्हें दिल्ली लाया गया। वो हमारे साथ ही रहते थे और मैं अक्सर उनके पास बैठती थी। तब बाबूजी मुझे ‘मेम साहेब’ कहकर बुलाया करते थे। छोटे भाइयों को राजनीति में लाए; एक को मैनेजर, दूसरे को बेटा बुलाते 1980 में दोबारा हाजीपुर से सांसद बनने के बाद रामविलास अपने भाइयों को राजनीति में आगे करने लगे। उन्होंने 1983 में पिछड़ी जातियों और दलितों के लिए दलित सेना बनाई, जिसकी जिम्मेदारी अपने भाई रामचंद्र को सौंपी। इसी साल छोटे भाई पशुपति पारस को अलौली से चुनाव में उतार दिया। वो चुनाव जीत भी गए। रामविलास अक्सर पशुपति को अपना ‘मैनेजर’ और रामचंद्र को अपना ‘बेटा’ कहकर पुकारते थे। रामविलास दिल्ली से जब भी अपने घर आते, तो पशुपति तय करते थे कि ‘बड़े साहब’ के लिए क्या पकाया जाएगा? रामविलास के करीबी रहे दीनानाथ क्रांति बताते हैं- ‘पशुपति पारस ने रामविलास का हर हुक्म माना। बिहार में लोग उन्हें रामविलास की मूरत मानते।’ जनता दल से अलग होकर भाइयों के साथ खुद की पार्टी बनाई 1989 में रामविलास दोबारा हाजीपुर से सांसद चुने गए और वीपी सिंह की सरकार में केंद्रीय मंत्री बने। श्रम एवं कल्याण मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली। यह पहला मौका था, जब वे कैबिनेट में शामिल हुए। 1991 में रोसड़ा और 1996 में हाजीपुर से सांसद चुने गए। 1996 से 1998 तक वे रेल मंत्री रहे। 1998 में लोकसभा चुनाव आते-आते जनता दल की हालत खराब हो चुकी थी। इस चुनाव में पार्टी ने 191 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन सिर्फ 6 सीटों पर जीत मिली। बिहार में 35 सीटों में से 27 सीटों पर जमानत जब्त हो गई। केवल रामविलास पासवान जीत पाए थे। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव भी मधेपुरा से चुनाव हार गए थे। दरअसल, उस वक्त बिहार की राजनीति में आरजेडी और एनडीए का दबदबा होने लगा था। एनडीए में समता पार्टी और बीजेपी शामिल थी। समता पार्टी के नीतीश कुमार और आरजेडी के लालू यादव के ही बीच पूरा मुकाबला था। ऐसे में जनता दल की जगह खत्म हो रही थी। सीनियर जर्नलिस्ट शोभना के. नायक अपनी किताब ‘रामविलास पासवान: द वेदरवेन ऑफ इंडियन पॉलिटिक्स’ में लिखती हैं- ‘2000 का बिहार चुनाव रामविलास के लिए अहम था। जनता दल में खासकर शरद यादव की कथित तानाशाही से उन्हें घुटन हो रही थी। पार्टी चलाने के लिए फंड रामविलास लाते, लेकिन सभी फैसले शरद करते। पदाधिकारी, प्रदेश अध्यक्ष, कैंडिडेट्स वगैरह शरद ही तय करते। बड़ी मुश्किल से रामविलास अपने कैंडिडेट्स को टिकट दिला पाते। नंबर-2 की राजनीति करते-करते वो तंग आ चुके थे। जुलाई 2000 में रामविलास बेंगलुरु गए। एचडी देवगौड़ा, जेएच पटेल और रामकृष्ण हेगड़े से मिले और शरद यादव को पार्टी अध्यक्ष पद से हटाने की सिफारिश रखी। हालांकि उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया गया। तीन महीने बाद रामकृष्ण हेगड़े ने शरद यादव और रामविलास में सुलह कराने की कोशिश की, लेकिन रामविलास अड़े रहे कि जब तक शरद यादव अध्यक्ष रहेंगे, तब तक कोई समझौता नहीं होगा। जब बात नहीं बनी तो रामविलास ने अपनी पार्टी बनाने के बारे में सोचा। 28 नवंबर 2000 को दिल्ली के रामलीला मैदान में रामविलास ने एक रैली की। यहीं उन्होंने अपनी पार्टी का ऐलान कर दिया। नाम रखा- ‘जनशक्ति पार्टी’। बाद में इसमें ‘लोक’ जोड़ा गया, जिससे इसका नाम ‘लोक जनशक्ति पार्टी’ हो गया। नई पार्टी में उन्होंने सबसे ज्यादा भरोसा अपने भाई रामचंद्र और पशुपति पर किया। इनके साथ ही कैप्टन जय नारायण प्रसाद निषाद और कर्नाटक के रमेश जिगजिनागी जैसे कई नेता पार्टी में शामिल हुए। हालांकि कई नेताओं ने कुछ समय बाद ही पार्टी छोड़ दी। वजह- रामविलास और उनके परिवार की पार्टी पर पकड़। मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाने की जिद पर अड़े रामविलास फरवरी 2005, बिहार में विधानसभा चुनाव हो रहे थे। रामविलास की एलजेपी यानी लोक जनशक्ति पार्टी का ये पहला चुनाव था। रामविलास ने यूपीए से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया। एलजेपी ने 178 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, जबकि लालू यादव की आरजेडी ने 210 और कांग्रेस ने 84 सीटों पर दांव लगाया। कांग्रेस के खिलाफ एलजेपी ने कोई उम्मीदवार नहीं उतारा। 27 फरवरी को नतीजे आए। आरजेडी को 75 सीटें मिलीं। कांग्रेस 10 पर सिमट गई। जेडीयू ने 55 और बीजेपी ने 37 सीटें जीतीं। वहीं एलजेपी 29 सीटों पर काबिज हुई। किसी को भी बहुमत नहीं मिला। ऐसे में रामविलास किंगमेकर बनकर उभरे। उन्होंने ऐलान कर दिया- ‘न तो सांप्रदायिक बीजेपी के साथ जाएंगे। न ही भ्रष्ट और जातिवादी आरजेडी के साथ। बिहार के मुख्यमंत्री के लिए मुस्लिम सीएम का समर्थन करेंगे।’ रामविलास की इस शर्त को कोई पूरा नहीं कर पाया और सरकार नहीं बनी। सीनियर जर्नलिस्ट संतोष सिंह अपनी किताब ‘कितना राज, कितना काज’ में लिखते हैं, ‘रामविलास न तो लालू का साथ देना चाहते थे और न ही नीतीश का। ऐसे में उन्होंने अल्पसंख्यकों के दोनों झंडाबरदारों के आगे सेक्युलरिज्म का पांसा फेंका।’ आठ महीने बाद अक्टूबर 2005 में दोबारा विधानसभा चुनाव हुए। इस बार एलजेपी 10 सीटों पर सिमट गई। वहीं जेडीयू ने 88 और बीजेपी ने 55 सीटें जीतीं। नीतीश कुमार सीएम बने। आरजेडी को 54 सीटें मिलीं और 15 साल बाद बिहार में लालू यादव का शासन खत्म हुआ। भाई के बजाय बेटे चिराग को सौंपी पार्टी की कमान रामविलास के बेटे चिराग एक्टर बनने की चाहत में 2011 में मुंबई चले गए। उनकी पहली और आखिरी फिल्म ‘मिलें न मिलें हम’ बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप रही। 2013 में चिराग दिल्ली लौट आए और पार्टी का काम देखने लगे। रामविलास अपने दोनों भाइयों से ज्यादा भरोसा बेटे पर करने लगे। कुछ ही दिनों में चिराग को एलजेपी के पार्लियामेंट्री बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया गया। रामविलास के भाई पशुपति पारस ने एक इंटरव्यू में कहा था- ‘मैं तो टीचर था। बड़े भाई ही मुझे राजनीति में लेकर आए। हर बार अपनी सीट विरासत के तौर पर मुझे दी। चाहे विधानसभा में अलौली हो या लोकसभा में हाजीपुर।’ पार्लियामेंट्री बोर्ड के अध्यक्ष बनने के बाद चिराग पार्टी के हर फैसले में अहम रोल निभाने लगे। चुनावी रैलियों और मीडिया में भी जाने लगे। रामविलास ने एक इंटरव्यू में बताया था- ‘एक बार मैंने अपनी जगह चिराग को न्यूज शो में भेज दिया था। सब उससे इतना प्रभावित हुए कि उसे ही बुलाने लगे।’ 2014 में मोदी लहर आई तो चिराग ने पिता को यूपीए का साथ छोड़कर एनडीए में शामिल होने के लिए मनाया। इसी चुनाव में रामविलास ने चिराग को जमुई सीट से उतारा। उन्होंने आरजेडी के सुधांशु शेखर भास्कर को करीब 85 हजार वोटों से हराया। तभी ये तय हो गया था कि चिराग ही अब रामविलास की विरासत संभालेंगे। 2019 में इसी सीट से चिराग दोबारा सांसद बने। जून 2019 में एलजेपी के राष्ट्रीय महासचिव सत्यानंद शर्मा ने अनिल कुमार पासवान और कोषाध्यक्ष रमेश चंद्र कपूर को साथ लेकर रामविलास से बगावत कर दी। आरोप लगाया कि एलजेपी अब एक ‘प्राइवेट लिमिटेड कंपनी’ है और एक परिवार के कब्जे में है। उन्होंने अलग एलजेपी-सेक्युलर नाम की पार्टी बनाई। 5 नवंबर 2019, दिल्ली में रामविलास पासवान के घर पर एलजेपी की राष्ट्रीय कमेटी की मीटिंग हुई। इसमें चिराग के चाचा पशुपति पारस ने चिराग को अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव रखा। सभी ने हामी भर दी। पशुपति उस समय दलित सेना के अध्यक्ष और हाजीपुर से सांसद थे। मीटिंग के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई। इसमें रामविलास ने कहा, ‘पार्टी की राष्ट्रीय कमेटी ने सर्वसम्मति से चिराग पासवान को लोक जनशक्ति पार्टी का अध्यक्ष चुना है।’ चिराग को अध्यक्ष बनाकर रामविलास ने साफ कर दिया था कि अपनी 5 दशक की राजनीतिक विरासत बेटे को सौंप दी है। शोभना के. नायर ने अपनी किताब में लिखती हैं, ‘प्रेस कॉन्फ्रेंस में पशुपति पारस के चेहरे पर औपचारिक मुस्कान भी नहीं थी। उनसे नए अध्यक्ष को माला पहनाने के लिए कहा गया, ताकि लोगों को लगे कि सत्ता परिवर्तन में उनकी रजामंदी है। 2020 के बिहार चुनाव में चिराग ही पार्टी को लीड कर रहे थे, क्योंकि रामविलास हॉस्पिटल में थे। चुनाव से दो महीने पहले 4 सितंबर को एलजेपी ने दिल्ली के सभी अखबारों में फुल पेज का ऐड दिया। जिसमें नारा था- ‘वो लड़ रहे हैं बिहार पर राज करने के लिए, हम लड़ रहे हैं बिहार पर नाज करने के लिए।’ ऐड में कहीं भी जेडीयू का नाम नहीं था, लेकिन बात साफ थी। रामविलास ने उस दिन कई पत्रकारों को फोन करके उनके रिएक्शन जाने। वे नीतीश के खिलाफ खड़े होने के फैसले का आकलन कर रहे थे। 11 सितंबर 2020 को रामविलास दिल की बीमारी की वजह से दिल्ली के फोर्टिस एस्कॉर्ट्स अस्पताल में भर्ती हुए। अस्पताल से ही उन्होंने ट्वीट किया, ‘मैं चिराग के हर फैसले के साथ मजबूती से खड़ा हूं। मुझे विश्वास है कि अपनी युवा सोच के साथ वो पार्टी और बिहार को नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे।’ लगभग एक महीने बाद 8 अक्टूबर 2020 को अस्पताल में ही रामविलास पासवान का निधन हो गया। वे 11 सितंबर से अस्पताल में भर्ती थे। आखिरी समय तक अपने बेटे के फैसलों का समर्थन करते रहे। पांच सांसदों को तोड़कर चाचा ने चिराग को पार्टी से बाहर किया 2020 में बिहार की 143 विधानसभा सीटों पर चिराग ने कैंडिडेट उतारे, लेकिन जीत सिर्फ एक पर मिली। हालांकि एलजेपी ने जेडीयू को बड़ा झटका दिया। 115 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली जेडीयू केवल 43 सीटें ही जीत पाई। चिराग का तरीका पार्टी के कई बड़े नेताओं को रास नहीं आ रहा था। चाचा- भतीजे के बीच भी विवाद होने लगा था। रामविलास के निधन के 9 महीने बाद 14 जून 2021 को पार्टी में तख्तापलट हो गया। 6 में से 5 सांसदों के साथ पशुपति अलग हो गए। 21 जून 2021 की सुबह लोकसभा सचिवालय ने औपचारिक घोषणा कर दी कि पशुपति अब एलजेपी के संसदीय नेता होंगे। उस दिन चिराग हाथ में कैनुला लगाए खुद कार ड्राइव करके चाचा पशुपति के घर पहुंचे। दरअसल, उन दिनों चिराग को टाइफाइड था। उनका मकसद था इस टकराव को सुलझाना, परिवार और पार्टी को एकजुट रखना, लेकिन उन्हें गेट पर ही रोक दिया गया। करीब 20-25 मिनट तक उन्हें गेट पर ही इंतजार करवाया गया। फिर चिराग अंदर तो गए, लेकिन 90 मिनट तक ड्राइंग रूम में चाचा पशुपति का इंतजार करते रहे। आखिर चाचा उनसे नहीं मिले। 7 जुलाई 2021 को पशुपति पारस, मोदी सरकार में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री बने। ये पशुपति की जीत का सबसे बड़ा सिंबल था। अक्टूबर 2021 में पार्टी के बंटवारे को औपचारिक रूप दे दिया गया। चिराग के गुट को लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) और पशुपति के गुट को राष्ट्रीय लोक जनशक्ति नाम दिया गया। बगावत की तो चाचा के बेटे को पार्टी से सस्पेंड किया रामचंद्र पासवान तीनों भाइयों में सबसे छोटे थे। वे 1999 और 2009 में रोसड़ा से सांसद रहे। इसके बाद 2014 से 2019 तक समस्तीपुर से सांसद रहे। सांसद रहते हुए 21 जुलाई 2019 को उनकी मृत्यु हो गई। इसके बाद उनके बेटे प्रिंस पासवान ने इस सीट से चुनाव लड़ा। वे अक्टूबर 2019 से जून 2024 तक समस्तीपुर से सांसद रहे। 26 अक्टूबर 2019 को उन्हें बिहार एलजेपी का अध्यक्ष बनाया गया था। हालांकि जून 2021 में जब पशुपति पारस ने 5 सांसदों के साथ मिलकर चिराग से बगावत की, तब प्रिंस भी उन 5 सांसदों में से एक थे। तभी चिराग ने उन्हें पार्टी से सस्पेंड कर दिया था। चिराग ने अपनी सीट से जीजा को सांसद बनाया 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए ने चिराग की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को पांच सीटें दीं, जबकि पशुपति के गुट को एक भी सीट नहीं। आखिरकार नाराज होकर पशुपति ने 19 मार्च 2024 को केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। इस चुनाव में चिराग ने सगी बहन निशा के पति अरुण भारती को जमुई से चुनाव लड़ाया और जीतकर वे सांसद बने। अरुण दिल्ली में अपना बिजनेस चला रहे थे, लेकिन चिराग के कहने पर उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ा। हालांकि अरुण का परिवार पहले से ही राजनीति में सक्रिय रहा। उनकी मां ज्योति दो बार बिहार में एमएलसी रह चुकी हैं। साल 2024 के लोकसभा चुनाव में चिराग की पार्टी ने सभी पांच सीटें जीतीं और चिराग खुद हाजीपुर से सांसद बने। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) 29 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। वहीं चिराग के चाचा पशुपति एनडीए से किनारा कर के महागठबंधन से उम्मीदें टिकाए बैठे है। अभी तक सीटों पर सहमति नहीं बन पाई है। हालांकि, 15 अप्रैल 2025, अंबेडकर जयंती के दिन चिराग ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि उनकी पार्टी एनडीए से अलग 243 सीटों पर खुद को मजबूत करेगी। 30 साल से बिहार और झारखंड में पत्रकारिता करने वाले सीनयर जर्नलिस्ट बिनय कुमार बताते है कि चिराग पासवान अपने पिता रामविलास की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। पासवान बोट बैंक के साथ-साथ युवाएं में भी चिराग की खासी पकड़ है। नीतीश कुमार के बाद बिहार में एनडीए का भविष्य चिराग पासवान हैं। 2024 में लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी का स्ट्राइक रेट 100% रहा यानी 5 में से सभी 5 सीटें जीती। इस बार ये पहला विधानसभा चुनाव है जब पासवान और नीतीश कुमार की पार्टी साथ में मिलकर चुनाव लड़ रही। इससे चिराग की पार्टी को फायदा मिलेगा और सीटें बढ़ने की संभावना है। *** स्टोरी संपादन- उदिता परिहार क्या आप हैं बिहार की राजनीति के एक्सपर्ट? खेलिए और जीतिए 2 करोड़ तक के इनाम बिहार की राजनीति से जुड़े 5 आसान सवालों के जवाब दीजिए और जीतिए 2 करोड़ तक के इनाम। रोज 50 लोग जीत सकते हैं आकर्षक डेली प्राइज। लगातार खेलिए और पाएं लकी ड्रॉ में बंपर प्राइज सुजुकी ग्रैंड विटारा जीतने के मौके। चुनावी क्विज अभी खेलने के लिए यहां क्लिक करें – https://dainik.bhaskar.com/GXiUvc8h3Wb

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