विदेश पहुंचते-पहुंचते खराब हो जा रही है 50 प्रतिशत शाही लीची

मुजफ्फरपुर की शाही लीची की मांग अरब देश में सबसे अधिक है। उद्यान निदेशालय की ओर से छह टन शाही लीची ओमान आैर दुबई भेजी गई है। 50 प्रतिशत तक लीची जाते-जाते खराब हो जा रही है। लीची खराब होने के पीछे सबसे बड़ा कारण है कार्गो में कोल्ड चेन का नहीं रहना। लीची को बिहार से बनारस भेजा जाता है। इस दौरान एयरपोर्ट से कार्गो में ले जाने के दौरान दो-तीन घंटे सामान्य ताप पर बाहर रह जाती है। इसके कारण लीची खराब हो जा रही है। पिछले महीने 4 टन शाही लीची ओमान भेजी गई थी। इसमें 60 प्रतिशत लीची खराब हो गई थी। 4 जून को 2 टन लीची भेजी गई थी। इसमें 40 प्रतिशत लीची खराब हो गई। अब नौ जून को दोबारा 2 टन लीची दुबई भेजी जा रही है। किसानों का कहना है कि पटना से सीधे विदेशों तक उड़ान नहीं रहने के कारण लीची उत्पादकों को नुकसान हो रहा है। लीची अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ विकास दास ने बताया कि लुलु ग्रुप से बात की है। जल्द ही एक एसओपी बनाई जाएगी। इससे लीची को बागीचे से तोड़ने के बाद पूरी तरह कोल्ड चेन में ही विदेशों में पहुंचाने पर काम किया जाएगा। इससे किसानों को लीची की अच्छी कीमत मिल सकेगी। कोल्ड चेन नहीं रहने से लीची खराब होती है और किसानों को इसका खामियाजा उठाना पड़ता है। 3.08 लाख मीट्रिक टन लीची का उत्पादन : राज्य में लीची का उत्पादन 3.08 मीट्रिक टन होता है। मुजफ्फरपुर लीची उत्पादन में पहले नंबर पर है। पूरे देश के लीची उत्पादन का 42 प्रतिशत हिस्सा बिहार से आता है। बिहार में करीब 32 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में लीची की खेती होती है। राज्य के 26 जिलों में लीची की खेती की जाती है। उत्तर बिहार की बूढ़ी गंडक के किनारे वाले मुजफ्फरपुर आैर आसपास के क्षेत्रों में नमी की स्थिति आैर कैल्शियम की अच्छी मात्रा वाली जलोढ़ मिट्टी होने के कारण इन क्षेत्रों में लीची का गुणवत्तापूर्ण उत्पादन सर्वाधिक है। यही कारण है कि मुजफ्फरपुर, वैशाली, पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, समस्तीपुर आैर सीतामढ़ी को लैंड ऑफ लीची के नाम से जाना जाता है।

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