शिमला में पूर्व डिप्टी मेयर ने सीएम को लिखा पत्र:बाढ़ के लिए प्रशासन को बताया जिम्मेदार, कार्रवाई की मांग की

शिमला के पूर्व डिप्टी मेयर टिकेंद्र सिंह पंवार ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है। उन्होंने हिमाचल प्रदेश में बार-बार आ रही बाढ़ और बढ़ती आपदाओं के लिए प्रशासनिक लापरवाही को जिम्मेदार ठहराया है। पंवार ने आरोप लगाया है कि आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 लागू होने के बावजूद इसका जमीनी स्तर पर प्रभावी प्रवर्तन नहीं हो रहा है। पत्र में कहा गया है कि इसी लापरवाही के कारण नदियों, नालों और प्राकृतिक जल निकासी प्रणालियों में धड़ल्ले से मलबा डंप किया जा रहा है। इससे राज्य को बार-बार भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। नदी-नालों में मलबा फेंकना बाढ़ का कारण पूर्व डिप्टी मेयर ने अपने पत्र में 2023 और 2025 की बाढ़ के बाद तैयार की गई सरकारी रिपोर्टों का हवाला दिया है। इन रिपोर्टों में बताया गया कि नदी-नालों में मलबा फेंकना बाढ़ की तीव्रता बढ़ाने का एक प्रमुख कारण है। इसके बावजूद, इस पर कोई प्रभावी रोक नहीं लगाई गई है। पंवार ने इसे आपदा-पूर्व तैयारी और जोखिम न्यूनीकरण में सीधी विफलता बताया है। धर्मपुर–सबाथू सड़क रास्ते का दिया उदाहरण पत्र में सोलन जिले के धर्मपुर–सबाथू सड़क रास्ते का उदाहरण दिया गया है। वहां बड़े पैमाने पर निर्माण कार्यों से निकलने वाला मलबा सीधे ढलानों से नीचे फेंका जा रहा है। यह मलबा जल निकासी चैनलों के माध्यम से गम्बर नदी और फिर सतलुज नदी तंत्र तक पहुंच रहा है। मलबा प्रबंधन के नियमों की हो रही अनदेखी टिकेंद्र सिंह पंवार ने कहा कि यह स्थिति किसी एक स्थान तक सीमित नहीं है। मंडी, कुल्लू, शिमला, चंबा सहित कई जिलों में भी यही पैटर्न दोहराया जा रहा है।पूर्व डिप्टी मेयर ने आरोप लगाया है कि एनएचएआई, सड़क चौड़ीकरण परियोजनाओं, जलविद्युत परियोजनाओं और निजी निर्माण कार्यों के दौरान मलबा प्रबंधन के नियमों की खुलेआम अनदेखी की जा रही है। मानव-निर्मित बन जाती है आपदा इसके परिणामस्वरूप, बाढ़ का पानी अपने साथ भारी मात्रा में गाद, पत्थर और बोल्डर बहाकर ले जाता है, जिससे तबाही कई गुना बढ़ जाती है। पंवार के अनुसार, यह आपदा केवल प्राकृतिक न रहकर मानव-निर्मित बन जाती है।पत्र में निचले इलाकों की कृषि भूमि और पारंपरिक सिंचाई प्रणालियों पर पड़ने वाले गंभीर प्रभावों का भी उल्लेख किया गया है। प्रशासनिक लापरवाही आपदा का कारण मलबे के कारण ‘कूल’ जैसी पारंपरिक नहरें अवरुद्ध या नष्ट हो रही हैं। इससे धान की खेती, स्थानीय लोगों की आजीविका और खाद्य सुरक्षा पर सीधा संकट खड़ा हो गया है। पंवार ने कहा कि एक सामान्य जल-वैज्ञानिक स्थिति प्रशासनिक लापरवाही के कारण आपदा में बदल रही है।

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