सड़क, बिजली-पानी के लिए तरस रहे जमुई के ग्रामीण:आजादी के 78 साल बाद भी अंधेरे में गुजारा, राशन लाने में 200रु लगता है भाड़ा

आजादी के 78 साल बाद भी जमुई का जमुनियाटाड़ गांव अंधेरे में जी रहा है। बरहट प्रखंड के इस सुदूर और पहाड़ी इलाके में करीब 50 घर और 600 की आबादी है। लेकिन न तो यहां बिजली पहुंची है, न पक्की सड़क, न पानी की सुविधा और न ही स्वास्थ्य सेवाएं। दैनिक भास्कर की टीम जब जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर इस गांव में पहुंची, तो यहां की हकीकत ने व्यवस्था की पोल खोल दी। कभी नक्सल प्रभावित रहा यह इलाका अब सरकारी उपेक्षा का शिकार है। यहां के ग्रामीणों की जिंदगी जैसे 1947 में थम गई हो। गांव तक पहुंचने के लिए कच्चे, उबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरना पड़ता है। इन रास्तों में गाड़ियां पलटने का खतरा हमेशा बना रहता है। बरसात में यह गांव पूरे जिले से कट जाता है। बुनियादी सुविधाओं के लिए जूझता गांव गांव की 60 वर्षीय प्रमिला देवी कहती हैं, “बिजली और पानी की बहुत समस्या है। राशन लाने के लिए 30 किलोमीटर दूर बरहट जाना पड़ता है। 5 किलो राशन के लिए 200 रुपए खर्च होते हैं। राशन कार्ड से नाम कट न जाए, इसलिए डर के मारे राशन तो उठाते हैं, लेकिन वह भी मुफ्त नहीं मिलता।” पातों देवी (35) बताती हैं कि सड़क नहीं होने के कारण “बेटा-बेटी की शादी में बहुत दिक्कत आती है। रिश्ता तय करते वक्त लोग कहते हैं कि ये तो जंगली इलाका है, बिजली-पानी नहीं है।” इसी वजह से कई बार शादी टूट जाती है। इलाज के लिए 17 KM दूर अस्पताल 50 वर्षीय रामदेव राय की बात सुनकर आंखें नम हो जाती हैं। वे कहते हैं, “अगर कोई बीमार पड़ जाए तो उसे 17 किलोमीटर दूर लक्ष्मीपुर अस्पताल भाड़े की गाड़ी से ले जाना पड़ता है। गाड़ी समय पर न मिलने से कई मरीजों की मौत हो चुकी है।” 75 वर्षीय मंगल राय कहते हैं, “जिंदगी गुजर गई लेकिन बिजली नहीं देखे। बेटे-बेटी, नाती-पोते की शादी कर दिए लेकिन अंधेरे में ही जी रहे हैं।” गांव में स्कूल है, लेकिन पढ़ाई नहीं गांव में एक स्कूल तो है, लेकिन पढ़ाई सिर्फ कागजों में होती है। नल-जल योजना के तहत लगा सोलर मीनार बरसात में बंद हो जाता है क्योंकि धूप न होने से वह चार्ज नहीं होता। पानी की आपूर्ति ठप हो जाती है।

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