सुप्रीम कोर्ट 15 अक्टूबर को पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के दोषी बलवंत सिंह राजोआणा की फांसी की सजा मामले में सुनवाई करने वाला है। जिसके चलते पंजाब में केंद्र सरकार की ओर से BSF तैनात की गई है जिससे पंजाब के सिख समुदाय के मन इस बात का डर है कही राजोआणा को फांसी की सजा न सुना दी जाए। इसके चलते आज जालंधर की सिख जत्थेबंदियों और शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) की ओर से देश की राष्ट्रपति दरोपति मुरमुर के नाम मांगपत्र दिया। उन्होंने कहा राजोआणा को तीस साल ज्यादा हो कैद में है। उन्होंने कहा राजोआणा पिछले तीस साल से मानसिक दबा और कैद झेल रहे है। जिसमें उन्होंने मांग की है उनकी फांसी की सजा को माफ किया जाए। उन्होंने कहा कि पंजाब में जो BSF तैनात की है उसको जल्द से जल्द हटाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा भाजपा पंजाब का माहौल जानबूझ कर खराब करना चाहती है। सुप्रीम कोर्ट ने 15 अक्टूबर तक फैसला लेने को कहा था गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या मामले में केंद्र सरकार को बलवंत सिंह राजोआणा की फांसी की सजा पर फैसला 15 अक्टूबर तक लेने की बात कही थी। जिससे पहले आज, सोमवार को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) ने अचानक अंतरिम कमेटी की बैठक को बुलाई। SGPC सहित अकाली नेता लगातार राजोआणा पर एक तरफा फैसला लेने की मांग उठा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट का केंद्र को सख्त निर्देश तकरीबन दो सप्ताह पहले सुप्रीम कोर्ट राजोआणा की मर्सी पिटीशन पर सुनवाई में देरी के आधार पर उसकी मौत की सजा को उम्रकैद में बदलने की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। सुप्रीम कोर्ट ने सख्त शब्दों में कहा था कि राजोआणा को अब तक फांसी क्यों नहीं दी? इसके लिए कौन जिम्मेदार है? कम से कम उन्होंने तो फांसी पर रोक नहीं लगाई। सुप्रीम कोर्ट के इन तल्ख सवालों पर केएम नटराज ने जल्द से जल्द जवाब देने की बात कही। इसके बाद मामले की सुनवाई 15 अक्टूबर तक के लिए टाल दी गई। 29 साल से जेल में है राजोआना बलवंत सिंह राजोआणा की तरफ से सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि राजोआणा 29 साल से अधिक समय से जेल में बंद है। यह व्यक्ति 15 साल से मौत की सजा काट रहा है। इसलिए जब पिछली बार याचिका दायर की गई तो कोर्ट ने कहा कि यह दया याचिका उसने नहीं गुरुद्वारा समिति ने दायर की है। मगर, प्रावधानों के मुताबिक याचिका कौन दायर करता है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। इस पर विचार किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा था कि इतना समय बीत चुका, कभी न कभी इस पर फैसला करना पड़ेगा, इस बात को भी ढाई साल बीत गए। बीती सुनवाइयों के बाद कुछ नहीं हुआ मुकुल रोहतगी ने आगे कहा कि इस पर कुछ नहीं हुआ। इस वजह से उन्होंने 2024 में एक और याचिका दायर की। इस याचिका पर जनवरी में पारित अंतिम आदेश में चीफ जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथन की स्पेशल बेंच ने केंद्र को उसकी दया याचिका पर फैसला करने का आखिरी मौका दिया था। अदालत ने कहा था कि यदि केंद्र ऐसा करने में विफल रहता है तो याचिका पर अंतिम फैसला अदालत द्वारा किया जाएगा।