उत्तर प्रदेश में प्राथमिक स्कूलों के विलय पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में आज बुधवार को दूसरे दिन भी सुनवाई हुई। सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता ने बहस की। उन्होंने स्पष्ट किया कि स्कूलों का विलय सभी नियमों के अनुसार किया गया है। विलय के बाद खाली हुए स्कूल भवनों का उपयोग बाल वाटिका स्कूल और आंगनबाड़ी केंद्रों के रूप में किया जाएगा। मुख्य न्यायमूर्ति अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की खंडपीठ ने सरकार को अतिरिक्त तथ्य प्रस्तुत करने की अनुमति दी। मामले की कल यानी बृहस्पतिवार को भी सुनवाई होगी। इससे पहले मंगलवार को सभी अपीलों पर बहस पूरी करके सरकार का पक्ष सुनना शुरू हुआ था। तीन अपीलों पर हो रही है सुनवाई मामले में तीन अपील डाली गई थीं। मंगलवार काे सभी की सुनवाई पूरी हो गई थी। अब सरकार का पक्ष सुना जा रहा है। इस मामले में एकल पीठ ने फैसला दिया था कि सरकार बच्चों के हित में है। उसी फैसले को डबल बेंच में चुनौती दी गई है। इसी पर सुनवाई चल रही है। एकल बेंच ने कहा था कि ऐसे मामलों में नीतिगत फैसले को चुनौती नहीं दी जा सकती, जब तक कि वह असंवैधानिक या दुर्भावनापूर्ण न हो। सरकार के पक्ष में दिए गए हाईकोर्ट के निर्णय को चुनौती देते हुए 3 विशेष अपीलें दाखिल की गई हैं। ये अपीलें मुख्य न्यायमूर्ति अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध हैं। सरकार का पक्ष सुन रही है पीठ डबल बेंच ने दायर तीनों अपीलों की बहस पूरी कर ली है। पहली अपील में अधिवक्ता लालता प्रसाद मिश्रा 17 बच्चों के अभिभावकों की ओर से बहस में हिस्सा ले रहे थे। डबल बेंच ने अभी उस अपील पर अपना फैसला सुरक्षित रखा है। उसके बाद दूसरी अपील पर सुनवाई शुरू हुई थी। 1 घंटे में इस पर भी बहस पूरी हो गई। यह 5 बच्चों की ओर से दायर की गई है। इसकी बहस में अधिवक्ता गौरव मेहरोत्रा ने भाग लिया था। तीसरी अपील नोटिस के द्वारा बेंच पर लाई गई थी। सभी अपीलों पर बहस के बाद डबल बेंच सरकार का पक्ष सुन रही है। बच्चों के अभिभावकों ने दाखिल की विशेष अपील अपीलकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता गौरव मेहरोत्रा ने जानकारी दी कि प्राथमिक स्कूलों के विलय के खिलाफ दो विशेष अपीलें दाखिल की गई हैं। इनमें एक अपील 5 बच्चों की ओर से जबकि दूसरी 17 बच्चों के अभिभावकों द्वारा दाखिल की गई है। अपीलों में हाईकोर्ट की एकल पीठ द्वारा 7 जुलाई को दिए गए फैसले को रद्द करने की मांग की गई है, जिसमें स्कूलों के विलय को लेकर दाखिल याचिकाएं खारिज कर दी गई थीं। एकल पीठ पहले ही खारिज कर चुकी है याचिकाएं 7 जुलाई को न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने इस मामले में सरकार को राहत देते हुए सीतापुर के 51 बच्चों और अन्य याचियों की याचिकाएं खारिज कर दी थीं। याचिकाओं में बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा 16 जून को जारी उस शासनादेश को चुनौती दी गई थी, जिसके तहत विद्यार्थियों की संख्या के आधार पर प्राथमिक स्कूलों को उच्च प्राथमिक या कंपोजिट स्कूलों में विलय करने का प्रावधान किया गया है। याचिकाकर्ताओं ने इस आदेश को बच्चों के मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार (RTE) के खिलाफ बताया था। उनका कहना था कि विलय की स्थिति में बच्चों को अपने घरों से दूर स्कूल जाना पड़ेगा, जिससे उनकी पढ़ाई प्रभावित होगी। खासकर छोटे बच्चों के लिए यह स्थिति असुविधाजनक और असुरक्षित साबित हो सकती है। जनहित याचिका भी खारिज हो चुकी है एकल पीठ के फैसले के बाद 10 जुलाई को इस मुद्दे पर दाखिल एक जनहित याचिका को भी खंडपीठ ने खारिज कर दिया था। इसके बावजूद कुछ अभिभावकों ने डबल बेंच में विशेष अपीलें दाखिल कर अपनी आपत्ति दर्ज कराई, जिन पर आज सुनवाई हो रही है। 16 जून को बेसिक शिक्षा विभाग ने दिया था आदेश बेसिक शिक्षा विभाग ने 16 जून, 2025 को एक आदेश जारी किया था। इसमें यूपी के हजारों स्कूलों को बच्चों की संख्या के आधार पर नजदीकी उच्च प्राथमिक या कंपोजिट स्कूलों में मर्ज करने का निर्देश दिया था। सरकार ने तर्क दिया था कि इससे शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार और संसाधनों का बेहतर उपयोग संभव होगा। सरकार के आदेश के खिलाफ 1 जुलाई को सीतापुर जिले की छात्रा कृष्णा कुमारी समेत 51 बच्चों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। एक अन्य याचिका 2 जुलाई को भी दाखिल की गई थी। याचिकाकर्ताओं ने कहा था- यह आदेश मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा कानून (RTE Act) का उल्लंघन करता है। पढ़िए, कोर्ट और याचिकाकर्ता ने क्या कहा था स्कूलों को मर्ज किए जाने के मामले में हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के जस्टिस पंकज भाटिया ने मामले को डिसमिस करते हुए ऑर्डर दिया था। हाईकोर्ट ने कहा- नजदीकी स्कूल न हो तो सरकार परिवहन की व्यवस्था करे। कोई बच्चा शिक्षा से वंचित न हो। हाईकोर्ट ने कहा कि नियम 4(1), 4(2) और 4(3) को पढ़ने पर साफ है कि राज्य सरकार किसी भी बस्ती से निकटतम स्थान पर स्कूल की स्थापना करने के लिए बाध्य है। अगर ऐसा संभव न हो, तो बच्चों के लिए परिवहन सुविधा सुनिश्चित करना उसकी जिम्मेदारी है। NEP 2020 की सराहना, स्कूल पेयरिंग पर कोर्ट संतुष्ट कोर्ट ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP) का जिक्र करते हुए कहा कि इसमें स्कूल पेयरिंग की जो व्यवस्था है, वह प्रशंसनीय है। इसका उद्देश्य सभी बच्चों को प्राथमिक स्तर पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराना है। हस्तक्षेप की जरूरत नहीं कोर्ट ने यह भी कहा था कि याचिकाकर्ताओं ने NEP में स्कूल पेयरिंग से संबंधित किसी दिशा-निर्देश को मनमाना या संविधान के अनुच्छेद 21A के खिलाफ साबित नहीं किया। इसलिए राज्य सरकार के आदेश इसी उद्देश्य की पूर्ति करते हैं, जिनमें हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है। हाईकोर्ट ने अपने ऑर्डर में कहा- राज्य सरकार पर यह कठोर जिम्मेदारी है कि कोई भी बच्चा उसके किसी निर्णय के कारण शिक्षा से वंचित न हो। बेसिक शिक्षा अधिकारी (BSA) को यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे। इसके लिए समय-समय पर सभी आवश्यक कदम कानून के अनुसार उठाए जाएं। याचिकाकर्ता के वकील उत्सव मिश्रा का कहना है- याचिका खारिज कर दी गई है। ऑर्डर पूरा पढ़ने के के बाद याचिकाकर्ताओं से बातचीत कर आगे का फैसला किया जाएगा। जानते हैं पूरा मामला क्या है? बेसिक शिक्षा के अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार ने आदेश जारी किया कि 50 से कम स्टूडेंट वाले परिषदीय स्कूलों (कक्षा-8 तक) का विलय करने की प्रक्रिया शुरू की जाए। इसके बाद स्कूल शिक्षा महानिदेशक कंचन वर्मा ने सभी बीएसए से 50 से कम छात्र संख्या वाले स्कूलों का ब्योरा मांगा। साथ ही उसके पड़ोस के स्कूल की जानकारी भी मांगी। उन्होंने साफ किया है कि कम छात्र संख्या वाले स्कूल को पड़ोस के किसी स्कूल में विलय किया जाएगा। यह भी देखें कि ऐसे स्कूल के रास्ते में कोई नदी, नाला, हाईवे, रेलवे ट्रैक नहीं होना चाहिए। ऐसा इसलिए, ताकि किसी दुर्घटना की आशंका नहीं रहे। सरकार ने क्या तर्क दिया? सरकार का कहना है कि सभी स्टूडेंट को बेहतर और सुविधापूर्वक शिक्षा देने के लिए ये कदम उठाया जा रहा है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 और राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की रूपरेखा (एनसीएफ) -2020 के तहत स्कूलों के बीच सहयोग, समन्वय और संसाधनों के साझा उपयोग को बढ़ावा देना जरूरी है। जिससे हर स्टूडेंट को सुविधा के साथ बेहतर शिक्षा मिल सके। सरकार की तैयारी क्या है? हर जिले में एक मुख्यमंत्री अभ्युदय कंपोजिट विद्यालय (कक्षा 1 से 8 तक) खोला जा रहा है। प्रदेश सरकार की ओर से इन स्कूलों को आधुनिक इन्फ्रास्ट्रक्चर और शैक्षणिक सुविधाओं से लैस किया जाएगा। हर स्कूल में कम से कम 450 स्टूडेंट के लिए संसाधन उपलब्ध कराए जा रहे हैं। स्कूल बिल्डिंग को 1.42 करोड़ की लागत से अपग्रेड भी किया जा रहा। स्कूलों में स्मार्ट क्लास, टॉयलेट, फर्नीचर, पुस्तकालय, कंप्यूटर रूम, मिड-डे मील किचन, डायनिंग हॉल, सीसीटीवी, वाई-फाई, ओपन जिम और शुद्ध पेयजल की व्यवस्था की जाएगी। इसी तरह सरकार की ओर से हर जिले में एक मुख्यमंत्री मॉडल कंपोजिट स्कूल (कक्षा 1 से 12 तक) की स्थापना की जा रही है। इस पर करीब 30 करोड़ रुपए की लागत आएगी। इन स्कूलों में कम से कम 1500 छात्रों के लिए स्मार्ट क्लास, एडवांस साइंस लैब, डिजिटल लाइब्रेरी, खेल मैदान, कौशल विकास सुविधाओं की स्थापना की जाएगी। कक्षा 11-12 के लिए विज्ञान, वाणिज्य और कला संकाय की अलग-अलग कक्षाओं का भी प्रावधान किया जाएगा। शिक्षक संघ विरोध क्यों कर रहे? उत्तर प्रदेश महिला शिक्षक संघ की अध्यक्ष सुलोचना मौर्य का कहना है कि स्कूलों की संख्या कम करने से बच्चों का नुकसान होगा। अभी एक किलोमीटर की दूरी पर ही बच्चे स्कूल नहीं आते। जब एक ग्रामसभा का स्कूल बंद कर दूसरी ग्राम सभा के स्कूल में बच्चों को मर्ज किया जाएगा, तो स्कूल की दूरी और बढ़ जाएगी। गांव में गरीब माता-पिता बच्चों के लिए वैन नहीं लगा सकते। वह सुरक्षा की दृष्टि से भी बच्चों को दूर स्कूल नहीं भेजेंगे। इससे सबसे ज्यादा नुकसान बच्चों और अभिभावक का होगा। बच्चे पढ़ाई छोड़ देंगे या प्राइवेट स्कूल में एडमिशन लेने को मजबूर होंगे। उत्तर प्रदेश प्राइमरी शिक्षक संघ के अध्यक्ष योगेश त्यागी का कहना है कि सरकार शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 और बाल संरक्षण अधिनियम का खुला उल्लंघन कर रही है। इन आंकड़ों पर भी एक नजर 28 हजार प्राइमरी स्कूल पहले कम हुए साल 2017-18 में बेसिक शिक्षा परिषद के 1.58 लाख से अधिक स्कूल थे। इनमें 1 लाख 13 हजार 289 प्राइमरी स्कूल थे। कंपोजिट विद्यालयों के गठन के लिए कम छात्र संख्या वाले करीब 28 हजार स्कूलों को पड़ोस के स्कूल में मर्ज किया गया। इससे 28 हजार प्रधानाध्यापक के पद सीधे-सीधे कम हो गए। वहीं, छात्र-शिक्षक अनुपात के लिहाज से हजारों टीचर भी सरप्लस हो गए। 70 फीसदी हेड मास्टर स्थायी नहीं जानकार मानते हैं कि परिषदीय स्कूलों में करीब एक दशक से प्रधानाध्यापक के पद पर पदोन्नति नहीं हुई है। 70 फीसदी से ज्यादा स्कूलों में कार्यवाहक हेडमास्टर हैं। कार्यवाहक हेडमास्टरों को कोई अतिरिक्त भत्ता नहीं दिया जाता। 42 लाख छात्र भी कम हो गए बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में 2017-18 में करीब 1.37 करोड़ स्टूडेंट थे। योगी सरकार की ओर से हर साल ‘स्कूल चलो अभियान’ चलाकर नामांकन संख्या बढ़ाई गई। कोरोना महामारी के दौरान जब ग्रामीणों के पास प्राइवेट स्कूलों में फीस जमा करने के लिए पैसे नहीं थे, तो उन्होंने भी अपने बच्चों का सरकारी स्कूलों में दाखिला कराया। 2021-22 में स्टूडेंट की संख्या 1.91 करोड़ तक पहुंच गई। लेकिन, बीते 3 साल में लगातार ये संख्या घटती चली गई। आलम यह है कि अब ये संख्या 1.49 करोड़ रह गई है। जानकार मानते हैं कि करीब 28 हजार प्राथमिक स्कूलों को कंपोजिट स्कूल में तब्दील करने से भी छात्रों की संख्या कम हुई है। महकमे के अधिकारी कहते हैं कि शिक्षकों की ओर से नामांकन बढ़ाने और शिक्षा की गुणवत्ता सुधार में दिलचस्पी नहीं ली जाती है। इस वजह से बच्चे स्कूल छोड़कर चले जाते हैं। जबकि सरकार हर संभव सहायता और सभी सुविधाएं दे रही है। ———————— ये खबर भी पढ़िए… शिवरी प्लांट जिसकी वजह से लखनऊ मुस्कुराया…ड्रोन VIDEO:5 यूनिट, 350 कर्मचारी, 24 घंटे काम; कूड़े का पहाड़ साफ स्वच्छ सर्वेक्षण-2024 में लखनऊ को देश में तीसरा स्थान मिला है। लखनऊ ने सालभर के अंदर इस रैंकिंग में 41 पोजिशन की छलांग लगाई है। 2023 में शहर 44वें नंबर पर था। इतनी लंबी छलांग के पीछे सबसे बड़ा योगदान है, उस प्लांट का जिसने शहर से निकलने वाले कूड़े को खत्म कर दिया। इसी प्लांट की वजह से आज लखनऊ के लोग रैंकिंग देखकर मुस्कुरा रहे हैं। (पूरी खबर पढ़िए)