परिवार के फर्ज की कीमत कभी नहीं चुकाई जा सकती। बच्चा पढ़ाई करता है तो परिवार ही उसे आगे बढ़ाता है। मैं 10वीं में फेल हुआ, पढ़ाई छोड़ दी। आखिर में पिता जी ने ये कहकर स्कूल भेजा कि और मेहनत करो, कामयाबी मिलेगी। फिर मैं उसी कॉलेज का टॉपर बना… यह कहना है IPS घनश्याम चौरसिया का। 1993 बैच के PPS रहे घनश्याम चौरसिया 2015 बैच के IPS अफसर हैं। इस समय यूपी में नेपाल बॉर्डर से सटे श्रावस्ती के SP हैं। उन्होंने काफी दबाव के बाद भी माफिया अतीक अहमद को प्रयागराज की नैनी जेल से 3 साल तक बाहर नहीं निकलने दिया। चंबल के 11 डकैतों को एनकाउंटर में ढेर किया। घनश्याम चौरसिया का बचपन कैसा रहा? वह 10वीं में फेल होने के बाद कैसे स्कूल के टॉपर बने। फिर वर्दी की चाहत में IPS। दैनिक भास्कर की स्पेशल सीरीज खाकी वर्दी में आज घनश्याम चौरसिया की कहानी 6 चैप्टर में पढ़ेंगे… यूपी के अयोध्या में जिला मुख्यालय से 35 किमी दूर गांव पड़ता है मलेपुर बुजुर्ग। यहां के रहने वाले रामेश्वर प्रसार पेशे से किसान रहे। 15 नवंबर 1967 को जन्मे घनश्याम चौरसिया बताते हैं कि मां दुर्गा देवी गृहिणी रहीं। मैं जब छोटा था तो पिता के साथ खेती का काम करता था। मेरी पांचवीं तक की पढ़ाई गांव के सरकारी स्कूल से हुई। फिर पिता जी ने कक्षा 6 में पास के गांव में एडमिशन करा दिया। मैं पढ़ने के लिए 4 किमी पैदल जाता था। 8वीं के बाद मेरा एडमिशन घर से 18 किमी दूर किसान इंटर कॉलेज कल्याणपुर में कराया गया। तभी स्कूल जाने के लिए साइकिल सीखी। 1984 में यूपी बोर्ड से दसवीं की परीक्षा दी। क्लास में 90 छात्र थे। रिजल्ट वाले दिन अचानक मां बीमार हो गईं, पिता इलाज कराने डॉक्टर के पास ले गए। क्लीनिक के बाहर बैठा था तभी अखबार में रिजल्ट देखकर लौट रहे छात्र ये कहते सुनाई दिए कि जब घनश्याम ही फेल हो गया तो हम कैसे पास होते। यह बात पिता ने सुन ली। वह हैरान रह गए, उन्होंने कई छात्रों से पूछा भी कि बेटा किस चीज का रिजल्ट आया है। कुछ छात्रों ने बता भी दिया कि यह घनश्याम के पिता हैं। घर आकर पिता जी ने मुझसे कहा- बेटा कोई बात नहीं, मेहनत की निराश न हो। पता चला है कि सब बच्चे ही हाईस्कूल में फेल हो गए। घनश्याम चौरसिया बताते हैं कि हाईस्कूल में फेल होने के बाद मैंने पढ़ाई छोड़ दी। मां और पिता से कहा कि अब पढ़ने का मन नहीं है, मैं खेती ही करूंगा। अचानक 2 महीने बाद पिता ने कहा कि एक बार और दाखिला ले लो। सबने बताया है कि घनश्याम क्लास में सबसे अच्छा पढ़ने वाला था। पता नहीं रिजल्ट में ऐसा कैसे हो गया। पिता ने कहा कि इस बार और मेहनत करके देख लो, सफलता मिल जाएगी। पिता जी के कहने पर मैंने दोबारा से दाखिला ले लिया। अगले साल इसी स्कूल का यूपी बोर्ड परीक्षा में 62 प्रतिशत अंकों के साथ टॉपर बना। घर में एक अलग ही खुशी का माहौल था। गांव और आसपास के किसान घर पर बधाई देने आए। 1987 में किसान इंटर कॉलेज कल्याणपुर से ही 71% अंकों के साथ जिला टॉप किया। घनश्याम चौरसिया बताते हैं कि इंटर में जब 71 प्रतिशत अंक आए तो मनोबल बढ़ गया। उसके बाद पिता जी ने कह दिया कि तुम्हारी पढ़ाई लखनऊ यूनिवर्सिटी से कराऊंगा। लखनऊ यूनिवर्सिटी में स्नातक में दाखिला ले लिया। हबीबुल्लाह हॉस्टल में रहकर पढ़ाई होती थी। पहले यह था कि बस एक बार सरकारी नौकरी मिल जाए। कई बार यूनिवर्सिटी में पुलिस अधिकारी फोर्स के साथ कार्यक्रमों में आते थे। उन्हें देखकर लगता था कि नौकरी हो तो पुलिस अधिकारी जैसी। फिर वर्दी पहनने का शौक होने लगा। मन में आता था कि आर्मी में जाऊं या पुलिस में। उस समय मेरे रुम पार्टनर देवेंद्र कुमार थे, वह बहुत सीनियर थे। IAS की तैयारी करते थे। कई बार वह यूनिवर्सिटी जाते या बाहर जाते तो उनकी किताब चोरी से पढ़ता था। जिसमें यूपीएससी की अलग-अलग तैयारी की किताबें थीं। वह रात में पढ़ाई के दौरान कई-कई घंटे इन किताबों से रजिस्टर में नोट्स बनाते थे। मेरा इन किताबों में मन लगने लगा। वह जब भी रूम से बाहर जाते तो अपनी पढ़ाई के साथ उनकी किताबें पढ़ता था। कई बार उन्हें भी इस बात का पता चल जाता था। लखनऊ यूनिवर्सिटी से बीए की पढ़ाई जब पूरी हुई तब लगा कि आगे पुलिस ऑफिसर ही बनूंगा। उसके बाद प्रयागराज में लॉ में एडमिशन ले लिया। उस समय अरुण प्रकाश (अब IAS) और ज्ञानंजय सिंह (अब SP हापुड़) पहले से तैयारी कर रहे थे। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में उस समय हर हॉस्टल के कमरे में यूपी पीसीएस और यूपीएससी की तैयारी बहुत करते थे। तभी मेरी दोस्ती साथ में पढ़ने वाले रामसुरेश और राजेश कुमार से हुई। इसके बाद दूसरे प्रयास में हम तीनों पीपीएस बन गए और बैच मिला 1993… घनश्याम चौरसिया कहते हैं कि साल 1997 की बात है मैं आगरा में सीओ था। उस समय आगरा का देहात क्षेत्र बहुत बड़ा था। चंबल घाटी में डकैत बड़ी-बड़ी घटनाओं को अंजाम देते थे। खूंखार डकैत गंगनिया हथियार लेकर घोड़े पर चलता था। उस समय अनंत देव भी सीओ थे। वह क्राइम पर बड़ा काम कर चुके थे। उनसे भी बहुत कुछ सीखने को मिला। गंगनिया पर इनाम घोषित था। पुलिस उसे जब भी घेरने का प्रयास करती तो वह सड़क किनारे कुलाबो में अपना घोड़ा लेकर बढ़ जाता था। घोड़ा भी इतना ट्रेंड था कि वह भी कुलाबे में लेट जाता था। पुलिस जब निकल जाती तब फिर घोड़ा निकलता था। कई बार गंगनिया पुलिस पर फायरिंग कर चुका था। हमें हर हाल में उसे पकड़ना था। एक दिन सूचना मिली की डकैत एक गांव में हैं। फतेहाबाद पुलिस को सूचना दी गई। मैं भी अपने साथ 4 सिपाहियों को लेकर निकला। यहां करीब एक घंटे तक दोनों तरफ से फायरिंग हुई। एक बार सिपाहियों को लगा कि साहब हम मारे जाएंगे। मगर मैंने कहा कि अगर पीछे हट गए तो सभी मारे जाएंगे। आखिर में गंगनिया और उसका साथी एनकाउंटर में ढेर हो गया। घनश्याम चौरसिया बताते हैं हैं कि हमारी पुलिस टीम ने लल्ला गुर्जर गैंग का भी खात्मा किया। इस गैंग के एक बदमाश ने एक घटना में धौलपुर में सरेंडर कर दिया। साल 2000 में 25 जनवरी को मुठभेड़ हुई, कुख्यात लल्ला को भी मार गिराया गया। सुबह 26 जनवरी की परेड चल रही थी, तभी जिंदाबाद करते हुए लोग आ गए और अधिकारियों से कहा कि हमें इंसाफ मिल गया। सबसे बड़ा डकैत मारा गया। आगरा के इंडस्ट्रियल क्षेत्र के पास से एक बच्चे का बदमाशों ने अपहरण कर लिया। पता चला कि फिरौती के लिए ऐसा किया गया है। परिजनों को डर था कि बच्चे को मार न दें। इस पर एक थाना प्रभारी को सादे कपड़ों में बच्चे के परिवार के सदस्य के रूप में तैयार किया। उसे लेकर बदमाशों की बताई जगह पर फिरौती की रकम देने के बहाने पहुंचा। जैसे ही बच्चा दिखा, दोनों बदमाशों को ढेर कर दिया। बाद में इस गैंग के तीन और बदमाश मारे गए। आगरा में सीओ रहते हुए चंबल घाटी के 11 बदमाशों को एनकाउंटर में ढेर किया। वहीं, 7 गैंग का पूरी तरह से खात्मा कर दिया। घनश्याम चौरसिया कहते हैं कि 2008 की बात है। यूपी में बसपा की सरकार थी। मैं प्रयागराज में सीओ था। उस समय माफिया अतीक प्रयागराज की नैनी जेल में बंद था। उस पर जो केस दर्ज थे उनमें जमानत हो चुकी थी। एक मुकदमा था, जिसमें 2 दिन बाद उसकी जमानत होनी थी। हमारे लिए यह चैलेंज था कि किसी भी तरह अतीक अहमद जेल से बाहर न आने पाए। क्योंकि अगर वह बाहर आया तो फिर जमीनों, प्रॉपर्टी पर कब्जे और अपराध कराएगा। बाहर से अतीक का भाई अशरफ अपना गैंग चला रहा था। मैंने पूर्व के ऐसे प्रार्थना-पत्र एकत्र किए जो अतीक अहमद के खिलाफ पुलिस को मिले थे। उन सभी की जांच कराई और एफआईआर दर्ज करा दी। जब नए मुकदमे लिखे गए तो अतीक को जमानत नहीं मिल पाई। इसी दौरान अतीक के भाई अशरफ को भी अरेस्ट किया गया। उसने जुर्म कबूला, उसे भी जेल हुई। अतीक पर एक के बाद एक 19 मुकदमे ठोके गए। एक दिन प्रयागराज कोर्ट में अतीक अहमद की पेशी थी। पुलिस की वैन उसे लेने जेल पहुंची। अतीक ने बैरक से निकलने से मना कर दिया। उसने कहा था कि जब तक सीओ घनश्याम अंदर नहीं आएंगे, मैं बाहर नहीं निकलूंगा। दोपहर का एक बजने वाला था, मुझे जेल से बताया गया कि अतीक बाहर नहीं आ रहा। मैं फोर्स लेकर जेल में पहुंचा तो अतीक ने देखते ही कहा कि अच्छा आप ही सीओ घनश्याम चौरसिया हैं। मैंने बोला हां, मैं ही हूं। जब तक प्रयागराज में रहूंगा जेल से बाहर कदम नहीं रखने दूंगा। यह देखते ही अतीक का भाई अशरफ बोला कि मेरे साथ भी इसने बहुत गलत व्यवहार किया है। मैंने अतीक से कहा कि पेशी में चलना है। अतीक ने कहा कि सीओ साहब कौन सी जल्दी है। मैंने कहा कि पुलिस पेशी पर ले जाना भी जानती है। इतना सुनते ही वह चुपचाप पुलिस की वैन में बैठ लिया। मैं तीन साल सीओ सिविल लाइन और सीओ करनैलगंज रहा। अपने पूरे कार्यकाल में मैंने अतीक को जेल से बाहर नहीं आने दिया। दूसरे सर्किल में सीओ डॉ. अखिलेश सिंह थे। एक वकील पर गंभीर धाराओं में केस दर्ज हो गया। वकीलों ने हड़ताल कर दी, जाम लगा दिया। मैंने मौके पर पहुंचकर आश्वासन दिया कि केस वापस हो जाएगा। लेकिन वे नहीं माने। मैंने हड़ताल कर रहे वकीलों से माइक लेकर कहा- आज ही नाम नहीं निकाला तो मैं अपने पद से इस्तीफा दे दूंगा। यह सुनकर वकीलों ने आंदोलन खत्म किया। घनश्याम चौरसिया बताते हैं कि श्रावस्ती के हरदत्त नगर गिरंट थाना क्षेत्र में नकली नोट का मामला सामने आया था। थाना पुलिस को केस में लगाया गया। नेपाल बॉर्डर यहां से नजदीक है। ऐसे में जांच एजेंसी तक भी यह केस पहुंचा। एक दिन मैंने अलग-अलग अधिकारियों से पूछा कि कहीं दूसरी जगह से तो नकली नोट नहीं आ रहे। पता चला कि रात में गरीब लोगों को पांच-पांच सौ के नकली नोट देकर चलाए जा रहे। इससे लगा कि कोई लोकल ही इन्हें छापकर देहात के लोगों में बांट रहा। जांच में सामने आया कि नूरी बाबा नाम का एक मौलाना है। वही घर पर नकली नोट छापता है। पुलिस ने छापा मारा तो मशीन, प्रिंटर और नकली नोट बरामद हुए। पुलिस ने नूरी बाबा को अरेस्ट किया। जांच में सामने आया कि नूरी बाबा से जुड़ा गैंग फर्जी आधार कार्ड भी तैयार करता है। इस गैंग के 5 अन्य लोगों को भी अरेस्ट किया गया। जांच में इसके लिंक मुंबई तक मिले। नूरी बाबा रमजान के महीने में मुंबई जाकर चंदा इकट्ठा करता था। उसने 5 साल में करीब 70 बीघा जमीन भी खरीदी थी। उस पर गैंगस्टर की कार्रवाई की गई। उसकी संपत्ति की जांच और एनएसए की कार्रवाई अभी भी चल रही है। घनश्याम चौरसिया कहते हैं कि जुलाई 2024 का पहला हफ्ता था। श्रावस्ती में पूरे दिन बारिश हुई थी। वहीं भारी बारिश व नेपाल के पहाड़ी इलाकों से आए पानी से राप्ती नदी का जलस्तर खतरे के निशान को पार कर गया था। कई गांव अचानक से बाढ़ की चपेट में आ गए। देर शाम सूचना मिली कि मोहनपुर भरथा और केवटन पुरवा में पानी में कुछ लोग फंस गए हैं। सूचना पर थाना पुलिस को भेजा, तत्काल डीएम अजय द्विवेदी को जानकारी दी। पीएसी से संपर्क करते हुए तत्काल टीमें बुलाई गईं। रात के करीब 8 बज चुके थे, चारों तरफ अंधेरा था और बाढ़ का एरिया। मैं और डीएम श्रावस्ती अजय द्विवेदी मौके पर पहुंच गए। देखा तो 4 फीट से ऊपर पानी बह रहा था। पीएसी के जवानों ने मना कर दिया कि साहब जान का जोखिम है। पानी की गहराई का पता नहीं चल रहा है। इस पर लाइट के लिए बड़ी-बड़ी टॉर्च की व्यवस्था की गई। देखा गया तो 11 लोगों में पांच महिलाएं और 5 बच्चे थे। पीएसी के जवान पीछे हटने लगे। मैंने और डीएम साहब ने कहा कि हम साथ चलेंगें। सीएमओ और डॉक्टरों की टीम भी बुलाई गई। पीएसी की मोटर वोट में अलग-अलग टीमें भेजी गईं। रात के 9 बजे अभियान शुरू हुआ। उधर लखनऊ से भी मॉनिटरिंग की जाने लगी। जहां रास्ता नहीं था, वहां से 2 किमी दूर जाना पड़ा। रात में 7 से 8 घंटे यह अभियान चलाया गया। सुबह दिन निकलने से पहले सभी 11 लोगों को राप्ती नदी बैराज के गेस्ट हाउस में सुरक्षित लाया गया। पूरे मामले में डीजीपी और मुख्य सचिव और सीएम योगी ने पुलिस प्रशासन की तारीफ की। इसके बाद डीजीपी के प्रशंसा चिन्ह से नवाजा गया। अभियान में शामिल सभी जवानों को भी सम्मानित किया गया। 3 सीएम की सुरक्षा, 18 हजार पौधे लगवाए घनश्याम चौरसिया बताते हैं कि आगरा और जालाैन में सीओ रहने के बाद लखनऊ में तीन मुख्यमंत्रियों की सुरक्षा भी संभाली। मुलायम सिंह यादव, मायावती और सीएम योगी आदित्यनाथ की सुरक्षा संभालने का अवसर मिला। परिवार के बारे में बात करते हुए वह कहते हैं कि पत्नी नीला चौरसिया ने हाल ही में पीएचडी पूरी की है। बेटा 12वीं में पढ़ाई कर रहा है। मैंने अपनी अब तक की पूरी सर्विस में करीब 19 हजार पौधे लगवाए हैं। श्रावस्ती में डेढ़ साल में 3 हजार पौधे लगाए हैं। पुलिस लाइन और कैंपस में डेढ़ साल में हर घर मोरिंगा अभियान चलाया। 2014 में ज्वाइंट कमिश्नर वाणिज्य कर रहते हुए हापुड़ और गाजियाबाद में एक ही दिन में टीम ने 10 करोड़ रुपए का टैक्स पकड़ा। अचीवमेंट्स …………….. ये खबर भी पढ़ें… गठबंधन की मजबूरी या संगठन की रणनीति:’लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ कहने वाली प्रियंका की यूपी से दूरी के मायने 2017 से लेकर 2022 तक यूपी की हर सियासी हलचल में प्रियंका गांधी का चेहरा कांग्रेस की पहचान बन गया था। ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ के नारे से उन्होंने प्रदेश की महिलाओं को खास संदेश दिया। लेकिन आज वही प्रियंका यूपी की सियासत से लगभग गायब हैं। आखिरी बार 2024 लोकसभा चुनाव में अमेठी-रायबरेली में पार्टी की जीत के बाद धन्यवाद सभा में दिखी थीं। उसके बाद प्रयागराज महाकुंभ तक में नहीं आईं। पढ़ें पूरी खबर…