मध्य प्रदेश में कथित तौर पर कोल्ड्रिफ कफ सिरप पीने से 20 बच्चों की मौत के बाद पूरे देश में दवाओं की जांच-पड़ताल बढ़ा दी गई है। इसी कड़ी में शहर में भी ड्रग कंट्रोल विभाग ने खांसी के कफ सिरप की गुणवत्ता जांच अभियान शुरू कर दिया है। अधिकारियों ने शहरवासियों को चेतावनी दी है कि केवल मान्यता प्राप्त दुकानों से ही सिरप खरीदें और संदिग्ध उत्पादों का उपयोग न करें। यह कार्रवाई बच्चों की सुरक्षा और दवा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए बेहद जरूरी मानी जा रही है। विशेषज्ञों के अनुसार, बच्चों की खांसी में केवल सही उम्र और प्रमाणित कंपनी की दवा, डॉक्टर की देखरेख में ही असर करती है। गलत दवा स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा भी बन सकती है। ऐसे कई केस सामने आए हैं जहां माता-पिता ने बिना सही जानकारी के दवा दी, जिससे बच्चों की सेहत प्रभावित हुई। खुद से मेडिकेशन खतरनाक -डॉ. कंचन शर्मा, पीडियाट्रिक केमिस्ट की मर्जी से न लें दवा डॉ. नवजोत कलेर, पीडियाट्रिक वो केस जिसमें बिना सलाह दवाई से तबियत बिगड़ी केस 1 : उम्र के हिसाब से गलत सिरप : एक 7 साल के बच्चे को माता-पिता ने खांसी के लिए सामान्य कफ सिरप दिया, जो उसकी उम्र और वजन के हिसाब से सही नहीं था। खांसी में कोई सुधार नहीं हुआ। बाद में विशेषज्ञ डॉक्टर के पास ले जाने पर बच्चे को सही सिरप दिया गया, जिससे दो दिन में ही खांसी में सुधार आया। केस 2 : सही कंपनी का सिरप न मिलने से परेशानी: 5 साल की बच्ची को माता-पिता ने नजदीकी दवा दुकान से सिरप दिया, लेकिन यह सही कंपनी का नहीं था। इससे खांसी में कोई फर्क नहीं आया। डॉक्टर ने सही सिरप सुझाया और कुछ दिनों में हालत में सुधार हुआ। केस 3 : बेवजह एंटीबायोटिक देने से सेहत पर खतरा : 8 साल के लड़के को खांसी के लिए बेवजह एंटीबायोटिक दी गई, जबकि उसकी जरूरत नहीं थी। यह केवल पैसे कमाने के उद्देश्य से दी गई थी और बच्चे की सेहत से खिलवाड़ था। माता-पिता ने बाल रोग विशेषज्ञ के पास जाकर सही दवा करवाई। सैंपल रिपोर्ट एक महीने में, फेल होने पर कंपनियों पर होगी कानूनी कार्रवाई -सुखबीर चंद, ड्रग कंट्रोल ऑफिसर