जहानाबाद के कनौदी गांव से इरकी तक 7.48 किलोमीटर लंबी और100 करोड़ रुपये की लागत वाली सड़क देशभर में चर्चा का केंद्र बन गई है। विवाद की जड़ है — सड़क के बीच खड़े पेड़, जिन्हें अब तक नहीं हटाया गया है। हालांकि, मामला तूल पकड़ते देख अब सड़क निर्माण विभाग और प्रशासन ने जन-सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता मानते हुए जरूरी सुरक्षा इंतजाम शुरू कर दिए हैं। यह सड़क, जो बिहार के आधारभूत ढांचे को बेहतर बनाने की दिशा में एक अहम कदम है, अब पेड़ों को हटाने की अनुमति नहीं मिलने पर सुर्खियों में है। लेकिन स्थानीय प्रशासन और पथ निर्माण विभाग (RCD) ने हादसों से बचाव के लिए अल्पकालिक समाधान शुरू कर दिए हैं। निर्माण करने वाली एजेंसी पर FIR दर्ज करीब 100 करोड़ रुपए से 20 पेड़ों के बीच बनी सड़क के मामले में काम करने वाली एजेंसी पर FIR दर्ज की गई है। फिलहाल लोगों की सेफ्टी को लेकर पेड़ों पर ट्री रिफ्लेक्टर लगाए गए हैं। पेड़ों के चारों ओर रेत से भरी बोरियों (सैंड बैग्स) से घेराबंदी की गई है। लेकिन सवाल अब भी यही है कि इस सड़क के निर्माण में बरती गई लापरवाही की जिम्मेदारी किसकी है। पड़ताल में सामने आया कि काम करने वाली एजेंसी, वन विभाग और पथ निर्माण विभाग तीनों ने लापरवाही बरती है। पेड़ नहीं हटे, लेकिन दिखने लगे सुरक्षा इंतजाम प्रोजेक्ट मैनेजर विमला शरण सिंह ने बताया कि जहां-जहां पेड़ों की वजह से खतरा है, वहां ड्रम और बैरिकेडिंग की गई है। साथ ही पेड़ों पर रेडियम रिफ्लेक्टर और “Go Slow” संकेतक लगाए गए हैं, ताकि वाहन चालकों को रात में भी पेड़ों की मौजूदगी नजर आए। 330 मीटर में 31 पेड़ अब भी चुनौती निर्माण एजेंसी के अनुसार, 330 मीटर क्षेत्र में बाईं ओर 12 और दाईं ओर 19 पेड़ अब भी सड़क के बीच बने हुए हैं। डायरेक्टर उपेंद्र कुमार सिंह ने कहा, “वन विभाग से पेड़ों को हटाने की अनुमति नहीं मिली है, इसलिए हमने तत्काल प्रभाव से सुरक्षात्मक उपाय लागू किए हैं।” पेड़ों पर अटकी ‘प्रगति’, जानमाल की सुरक्षा प्राथमिकता पेड़ों पर लगाए गए रेडियम, बैरिकेट भी लगाए स्थानीय लोग प्रशासन की इस पहल को राहत भरा कदम मान रहे हैं। एक स्थानीय दुकानदार ने कहा, “अब रात में पेड़ दिख जाते हैं, और वाहन भी धीमा चलने लगे हैं। इससे हादसे की आशंका थोड़ी कम हो गई है।” सावधानी ही सुरक्षा का उपाय जब तक वन विभाग की मंजूरी नहीं मिलती, तब तक इन पेड़ों को सड़क से नहीं हटाया जा सकता है। ऐसे में अधिकारियों का मानना है कि जब तक पेड़ों को हटाने की प्रक्रिया पूरी नहीं होती, सावधानी ही सुरक्षा का उपाय है। यह मामला एक बार फिर दिखाता है कि विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाना प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती बन चुका है।