112 Km ऊंचा गोवर्धन अब 50 फीट ही बचा:3 करोड़ भक्त कर रहे परिक्रमा, मथुरा में श्रद्धालु बोले- श्रीकृष्ण के दर्शन होते हैं

गोवर्धन पर्वत पर भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। यहां 4 से 10 जुलाई तक मुड़िया पूर्णिमा मेला चल रहा है। 6 जुलाई को एकादशी का पर्व है। इस दिन 1 करोड़ से ज्यादा भक्त गोवर्धन की परिक्रमा करेंगे। 10 जुलाई को गुरु पूर्णिमा है। अनुमान है कि 7 दिन में 3 करोड़ से ज्यादा भक्त पहुंचेंगे। वृंदावन से 23 Km और मथुरा से 21 Km की दूरी पर गोवर्धन पर्वत है। यहां भंडारे चल रहे हैं, गिरिराज की परिक्रमा करने देश-दुनिया से लोग पहुंच रहे हैं। कोई दंडवत कर रहा, कोई पैदल परिक्रमा कर रहा है। गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा का इतना महत्व क्यों है? पर्वत के तिल-तिल घटने की कहानी क्या है? 112 किमी में फैला गोवर्धन 21 किमी में कैसे सिमट गया? इन सवालों लेकर भास्कर ग्राउंड जीरो यानी गोवर्धन पहुंचा। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… मुड़िया मेला और गोवर्धन को समझने के लिए हमने सबसे पहले सेवायत गोस्वामी देवेन्द्र कौशिक से बात की… सवाल- पूरे देश में गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है, यहां मुड़िया पूर्णिमा क्यों मनाते हैं?
गोस्वामी- मुड़िया मेला 468 साल से लग रहा है। पूरा देश गुरु पूर्णिमा मनाता है। हमारे ब्रज में मुड़िया पूर्णिमा मनाते हैं। इसकी कहानी सनातन गोस्वामी से जुड़ी है। उन्होंने अपने शिष्यों के साथ गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा की और उनके निधन के बाद शिष्यों ने सिर मुंडवाकर उनका शोक मनाया और शोभायात्रा निकाली थी। इससे इस परंपरा को ‘मुड़िया’ नाम मिला। सवाल- कहते हैं गोवर्धन पर्वत तिल-तिल कम होता जा रहा?
गोस्वामी- ये पर्वत 7 योजन ऊंचा और 7 योजन चौड़ा था। पूरे ब्रज में इनकी परछाई रहती थी। इनको शाप लगा हुआ है, अब ये बहुत कम हो गए हैं। सवाल- गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा की क्या महत्व है?
गोस्वामी- अपनी मनोकामना लेकर लोग आते हैं। पैदल या दंडवत, परिक्रमा करते हैं। ये गोवर्धन साक्षात श्रीकृष्ण हैं। अब श्रद्धालुओं की बात उज्जैन की दीपाली बोलीं- हम पुण्य कमाने आए
हमने परिक्रमा करने वाले श्रद्धालुओं से बात की। सबसे पहले हमारी मुलाकात उज्जैन से आई दीपाली गुप्ता से हुई। वह अपने परिवार के साथ मुड़िया मेला में आई हैं। उन्होंने कहा- बहुत आनंद का भाव है, हम दूसरी बार यहां आए हैं। वहां (उज्जैन) सब अपनी जिंदगी में बिजी हैं। मगर गोवर्धन आने के बाद जो एहसास हुआ है, वो सबसे अलग है। सबको यहां आकर बांके बिहारी के दर्शन करने चाहिएं। गोवर्धन परिक्रमा करके पुण्य कमाना चाहिए। उनके साथ परिक्रमा कर रही राखी कहती हैं- यहां हम मनोकामना लेकर आए हैं। बता नहीं सकते, यहां आनंद का एहसास हुआ है। ऐसा लगता है कि यही बस जाएं, कहीं वापस न जाएं। ठाकुरजी के बुलाने पर आए हैं, वरना कैसे आ पाते? अब बस वो हमारी सुन भी लें। गुजरात के परमेश्वर बोले- यहां खुद श्रीकृष्ण बसते हैं
गुजरात से आए परमेश्वर द्विवेदी कहते हैं- हम पिछले 5 साल से यहां आ रहे हैं। यहां शांति मिलती है। लगता है कि इस गोवर्धन पर्वत के चारों ओर खुद श्रीकृष्ण बसते हैं। आप जब इसकी परिक्रमा करते हैं, तो थकावट महसूस नहीं होती। शहर में 21 किमी पैदल चल नहीं सकते हैं। लेकिन, यहां देखिए क्या बूढ़ा, क्या बच्चा, सब परिक्रमा कर रहे हैं। बहुत भक्तिमय माहौल रहता है। अब यहां प्रशासन की सुविधाएं भी बहुत बढ़ गई है। अब ब्रजवासियों की बात धर्माचार्य बोले- मुड़िया पूर्णिमा ब्रज का सबसे बड़ा आयोजन
धर्माचार्य पूरण कौशिक एक वक्त पर गोवर्धन में सबसे बड़ा आयोजन दीपावली पर होता था। लेकिन, आज श्रद्धालुओं की दृष्टि से मुड़िया पूर्णिमा का मेला सबसे बड़ा आयोजन बन चुका है। गिरिराज जी का ये मेला अब राजकीय बन चुका है। इसलिए इसको गुरु पूर्णिमा कहते हैं, क्योंकि श्री वेद व्यास का प्राकट्य आषाढ़ की पूर्णिमा है। व्यास को ही गुरु माना गया है। सारे वेद व्यास ने लिखे हैं। ये मेला कैसे बढ़ा है, इसको ऐसे समझिए। जब हमारे दादाजी थे, तब इसको हजारी मेला कहते हैं। पिताजी के वक्त पर इसको लक्खा मेला कहने लगे। अब तो इसको करोड़ी मेला कहिए। क्योंकि अब तो 7 दिन में 2 से 3 करोड़ लोग पहुंचते हैं। गिरिराज जी की परिक्रमा 21 किमी की है। प्रशासन 5 से 6 किमी पहले ही भक्तों को रोक देता है। यह भी होता है कि गिरिराज तक पहुंचने का एक रास्ता नहीं है। इसलिए संख्या का सिर्फ अनुमान हो सकता है। अब यह मेला सबसे बड़ा आयोजन है। राम पुरोहित बोले- सभी पूर्णिमा की गुरु है ये पूर्णिमा
राम पुरोहित कहते हैं- यह पूर्णिमा सभी पूर्णिमा की गुरु है। इस दिन गुरु की पूजा की जाती है और सबके गुरु गोवर्धन महाराज कहलाते हैं। यहां परिक्रमा के लिए भक्तों का सैलाब उमड़ रहा है। एकादशी से लेकर गुरु पूर्णिमा तक विशाल जन समूह लगता है। गिरिराज जी आने वाले भक्तों के लिए भक्तों की तरफ से भंडारा लगते हैं, प्रशासन की बड़ी व्यवस्था है। गुरु पूर्णिमा पर यहां जो साधु संत रहते हैं, वह गुरु पूर्णिमा के दिन अपना सिर मुड़वाकर मुड़िया निकालते हैं, गुरु की पूजा होती है। अब गोवर्धन पर्वत से जुड़ी कहानियां पढ़िए… काशी में गोवर्धन पर्वत पर होना था तप
मान्यता है कि एक बार पुलस्त्य मुनि धरती की परिक्रमा कर रहे थे। भारत के पश्चिम में मुनि ने हरे-भरे सुंदर गोवर्धन पर्वत को देखा। फिर उसके पिता द्रोणाचल गिरी पर्वत से आग्रह किया कि मैं तुम्हारे बेटे को अपने साथ काशी ले जाना चाहता हूं। वहां सभी मुनि इस पर बैठकर तपस्या करेंगे। शाप के डर से द्रोणाचल मान गए और भारी मन से अपने बेटे को उनके साथ जाने को कहा। भागवत प्रवक्ता पूरण कौशिक ने बताया कि तब गोवर्धन ने मुनि से कहा- मैं 8 गज लंबा, 6 गज चौड़ा और 2 गज ऊंचा (102 किमी लंबा, 76 किमी चौड़ा और 25 किमी ऊंचा) हूं। आप मुझे कैसे ले जाएंगे? मुनि ने कहा कि तपोबल से अपने हाथ पर रख कर ले जाऊंगा। फिर गोवर्धन ने एक शर्त रखी और कहा कि आप मुझे बीच में कहीं भी नहीं रखेंगे। एक बार जहां भी रख देंगे, मैं वहीं स्थापित हो जाउंगा। मुनि ने यह शर्त मान ली। पुलस्त्य के शाप से तिल-तिल घट रहा पर्वत, 30 मीटर बची है ऊंचाई
गोवर्धन को हाथ में लिए पुलस्त्य मुनि ब्रज में पहुंचे। यहां राधा और कृष्ण जन्म लेने वाले थे। दरअसल, गोवर्धन यहीं आने के लिए जन्मे थे। लंबी यात्रा के बाद ब्रज पहुंचते ही उन्होंने अपना वजन बढ़ा लिया। मुनि थक गए और पर्वत को नीचे रखकर लघुशंका करने चले गए। लौटकर आए और पर्वत उठाने की बहुत कोशिश की, लेकिन नहीं उठा पाए। गुस्से में आकर मुनि ने उसे शाप दे दिया कि तू हर रोज तिल-तिल कर घटेगा। तब से लेकर आज तक गोवर्धन पर्वत लगातार घट रहा है। पहली परिक्रमा कृष्ण ने की, तब से अब भक्त परिक्रमा कर रहे
द्वापर में यदुवंशियों के गुरु महामुनि गर्ग ने अपनी संहिता में लिखा है- जब पहली बार गोवर्धन पूजा हुई थी, तब इसकी पहली परिक्रमा श्रीकृष्ण ने की थी। उनके पीछे पूरा ब्रज था। गोवर्धन श्रीकृष्ण का ही रूप हैं। गोवर्धन की परिक्रमा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसकी एक शिला के दर्शन करने से व्यक्ति का दोबारा धरती पर जन्म नहीं होता। उसे मोक्ष मिल जाता है। कृष्ण के समय से लेकर आज तक भक्त लगातार गोवर्धन की परिक्रमा करते आ रहे हैं। ——————— ये खबर भी पढ़ें : यूपी सरकार सख्त- बनकर रहेगा बांके बिहारी कॉरिडोर, गोस्वामी परिवार बोला- सारा पैसा ले लो, हमारे ठाकुरजी हमें दे दो मथुरा के वृंदावन में बांके बिहारी कॉरिडोर बनाने का गोस्वामी परिवार विरोध कर रहा है। धर्मार्थ कार्य विभाग का कहना है कि विरोध की असल वजह सिर्फ गोस्वामी परिवारों के अधिकार का झगड़ा नहीं है। झगड़ा गोस्वामी परिवारों और स्वामी हरिदास ट्रस्ट के बीच हर महीने लाखों रुपए के चढ़ावे की रकम का भी है। पढ़िए पूरी खबर…

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