15 साल में 29% घटी JDU की सीटें:लोकसभा चुनाव बना NDA की सीट शेयरिंग का आधार; चिराग के कारण घटी सबकी सीटें

NDA में रविवार को सीटों का बंटवारा कर लिया गया। दिल्ली में हुए इस बंटवारे के तहत पहली बार BJP-JDU न केवल सबसे कम सीटों पर चुनाव लड़ेंगी, बल्कि दोनों बराबर-बराबर सीटों पर चुनावी मैदान में उतरेंगी। NDA के फॉर्मूले में लोकसभा में सीटों के बंटवारे को आधार बनाया गया है। लोकसभा चुनाव में BJP 17 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। जिसमें 104 विधानसभा सीटें आती हैं। आरा और बेगूसराय लोकसभा में 7-7 और बाकी में 6-6 सीटें हैं। जबकि जदयू लोकसभा में 16 सीटें लड़ी थी। इस आधार पर 97 सीटें होती हैं। इनमें नालंदा में 7 और बाकी लोकसभा में 6-6 विधानसभा सीटें हैं। अब सीट शेयरिंग की बात करें तो बीजेपी ने लोकसभा के अनुसार 3 सीटें कम ली हैं, जबकि जदयू को 4 सीटें ज्यादा दी गई है। यानी NDA ने बीच का रास्ता निकाला और दोनों पार्टी 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ने पर सहमत हुई। अब न कोई बड़ा भाई और न कोई छोटा भाई है। लोकसभा चुनाव में चिराग पासवान की पार्टी (LJP-R) ने 5 सीटों पर चुनाव लड़ा। इसी आधार पर उन्हें 29 सीटें मिलीं। जबकि जीतन राम मांझी की HAM और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) लोकसभा में 1 सीट पर चुनाव लड़ी थी। इस आधार पर इन्हें विधानसभा की 6-6 सीटें दी गई हैं। NDA के सीट शेयरिंग में क्या फॉर्मूला चला, जेडीयू की स्थिति क्या रही, बीजेपी कैसे बराबरी पर आई? चिराग कितना पॉवरफुल रहे…माझी और उपेंद्र कुशवाहा को कैसे मनाया गया.. और इस फैसले के मायने क्या हैं? पढ़िए भास्कर एनालिसिस में..। 15 साल में जदयू की 29% सीटें घट गई 2003 में पार्टी बनने के बाद जदयू सबसे पहले चुनाव 2005 में लड़ीं थी। अगर सीट शेयरिंग के फॉर्मूले को देखें तो 2005 के बाद जदयू की सीटें 27 फीसदी घट गई हैं। तब पार्टी 138 सीटें पर चुनाव लड़ी थी। जबकि JDU सबसे ज्यादा 2010 में 141 सीटों पर चुनाव लड़ी। अब 101 पर चुनाव लड़ रही है। 2025 के सीट शेयरिंग के फॉर्मूले के तहत 15 साल में पार्टी की 40 सीटें कम हो गईं। यानी 15 साल में JDU की करीब 29% सीटें घट गईं। जबकि BJP 2005 में भी 101 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और 2025 में भी 101 सीटों पर ही चुनाव लड़ रही है। पहली बार सबसे कम सीटों पर लड़ेगी जदयू और बीजेपी लोकसभा चुनाव में बीजेपी एक सीट ज्यादा पर लड़ी थी। ऐसा माना जा रहा था कि विधानसभा चुनाव में जदयू एक या दो ज्यादा सीटों पर लड़कर खुद को बड़ा भाई साबित कर सकती है, लेकिन बीजेपी लोकसभा में अपनी सीटें और विधानसभा में जदयू से डबल सीटों को आधार बनाते हुए बराबर सीटों के आधार पर फॉर्मूला लॉक करने में कामयाब रही। अगर 2020 के बिहार चुनाव पर नजर डालें तो जदयू 115 सीटों पर लड़ी थी। यानी पिछले बार से 14 सीटें कम हुई हैं। जबकि बीजेपी पिछली बार 110 सीटों पर लड़ी थी। इन्होंने अपनी 9 सीटें कम की हैं। इसके क्या मायने हैं: जेडीयू के बराबर बीजेपी की हैसियत सीनियर जर्नलिस्ट अरुण कुमार पांडेय बताते हैं, ‘ BJP ने सीट शेयरिंग के इस नंबर के आधार पर अपनी हैसियत बराबर की बना ली है। भले ही पार्टी लोकसभा की तरह विधानसभा में बड़ा भाई नहीं बन पाई हो, लेकिन पहली बार बिहार में खुद को जदयू के बराबर खड़ा कर लिया है।’ NDA में चिराग सबसे बड़े बार्गेनर साबित हुए इस सीट शेयरिंग में चिराग पासवान सबसे बड़े बार्गेनर बनकर सामने आए हैं। पिछली बार चिराग पासवान NDA में शामिल नहीं थे। इस बार जब वे NDA का हिस्सा बने तो नीतीश कुमार ने सीधे तौर पर उनसे दूरी बना ली। नीतीश कुमार की तरफ से सीधे तौर पर कह दिया गया था कि चिराग कितने सीटों पर लड़ेंगे ये उनकी समस्या है। इसके बाद चिराग की सीटों को लेकर कई तरह की बातें सामने आईं। पसंद की सीटों से लेकर सीटों की संख्या तक कई दिन तक विवाद खिंचता रहा, लेकिन चिराग अपनी जिद पर अड़े रहे। चिराग अपनी पसंद की सीटों के अलावा अपनी पसंद के नंबर्स लेने में भी कामयाब रहे। इसके मायने क्या: NDA के सबसे बड़े दलित नेता चिराग रहेंगे 2020 विधानसभा के चुनाव में चिराग NDA से बाहर हो गए थे। उन्होंने 135 सीटों पर अपने कैंडिडेट उतार दिए थे। वे भले ही एक सीट पर जीतने में सफल हुए थे, लेकिन इनके कारण नीतीश कुमार की पार्टी जदयू को 30 से ज्यादा सीटों का नुकसान हुआ था। सीनियर जर्नलिस्ट अरुण कुमार पांडेय बताते हैं, ‘अब विधानसभा में चिराग पासवान NDA में सबसे बड़े बार्गेनर उभर कर सामने आए हैं। इसका साफ मैसेज है बिहार में NDA के दलित चेहरे के रूप में चिराग पासवान ही हैं। 2011 की जनगणना के आधार पर देखें तो बिहार में दलितों की आबादी लगभग 19 फीसदी है। हर चुनाव में चिराग पासवान को औसतन 6 फीसदी वोट मिलता रहा है। 2014 के लोकसभा चुनाव से चिराग पासवान की जीत का स्ट्राइक रेट 100 फीसदी रहा है।’ मांझी का कद घटा: 15 सीटें मांग रहे थे, 6 मिलीं जीतन राम मांझी लगातार 20-22 सीटों की डिमांड कर रहे थे। वे अपनी पार्टी को राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा दिलाने की बात कह कर अपनी सीटें बढ़ाने की बात कर रहे थे, लेकिन NDA की सीट शेयरिंग में उनकी डिमांड नहीं सुनी गई। उन्होंने आखिरी गुहार लगाई थी कि उन्हें कम से कम 15 सीटें दी जाएं लेकिन सिर्फ 6 सीटें ही मिलीं । इसके मायने क्या हैं: माझी को मैसेज, NDA में ही सम्मान मिलेगा सीनियर जर्नलिस्ट संजय सिंह ने बताया, ‘जीतन राम मांझी का राजनीतिक दायरा अभी भी गया तक ही सीमित है। अगर देखें तो राज्य भर में न इनके वोटर्स हैं और न ही उन पर इनकी पकड़ है। NDA के नेता इस बात को बहुत अच्छे से समझते हैं। चुनाव लड़ने वालों में भी ज्यादातर इनके परिवार के लोग ही शामिल होते हैं। मांझी खुद अभी लोकसभा के सांसद होने के साथ-साथ केंद्र में मंत्री भी हैं। इनके बेटे संतोष सुमन विधान परिषद के सदस्य होने के साथ राज्य सरकार में मंत्री हैं।’ संजय सिंह कहते हैं, ‘मांझी को साथ रखकर NDA ने दो मैसेज दिए हैं। पहला कि NDA पूरी तरह इंटैक्ट है। दूसरा दलित वर्ग का हर वोटर उनके खेमे में हैं। अगर मांझी गठबंधन से अलग होते तो गया के इलाके में NDA को डेंट लग सकता था। यही कारण है कि उन्हें NDA अपने साथ रखी। उपेंद्र कुशवाहा की कोशिश विधानसभा में उपस्थित दर्ज हो NDA में अगर कोई पार्टी सबसे कमजोरी थी तो वो उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा थी। पिछले 10 साल से विधानसभा में उनका एक भी सदस्य नहीं है। आखिरी बार उनकी पार्टी 2015 के विधानसभा चुनाव के दौरान 2 सीटें जीतीं थी। NDA के साथ रहने के बाद भी वे 2024 में काराकाट से लोकसभा का चुनाव हार गए थे। लोकसभा चुनाव हारने के बाद उनकी बार्गेनिंग क्षमता पहले ही घट गई थी। इसके क्या मायने हैं सीनियर जर्नलिस्ट संजय सिंह बताते हैं कि जिस तरीके से महागठबंधन ने NDA के कोर वोट बैंक रहे कुशवाहा में सेंधमारी की है ऐसे में उपेंद्र कुशवाहा का गठबंधन में रहना बेहद जरूरी था। बिहार में कुशवाहा वोटर्स की संख्या लगभग 4.2 फीसदी है। खास कर मगध और शाहाबाद के इलाके की सीटों की जीत-हार में ये अहम फैक्टर होते हैं। यही कारण है कि NDA किसी भी सूरत में उपेंद्र कुशवाहा को बाहर नहीं होने देना चाह रही थी। सीट शेयरिंग से पहले वे 10 सीट पर अड़े हुए थे। दो दिन पहले जब वे पटना से दिल्ली निकल रहे थे तब उन्होंने अपनी सीटों की संख्या पर नाराजगी भी जताई थी। उन्होंने कहा था कि अभी सीट शेयरिंग फाइनल नहीं हुई है। 6 सीटें देकर गठबंधन में उनके सम्मान को बरकरार रखा है। ——————- ये भी पढ़ें बिहार में NDA ने किया सीट शेयरिंग का ऐलान:BJP-101, JDU- 101, चिराग को 29, उपेंद्र कुशवाहा-मांझी को 6-6 सीटें बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर NDA ने रविवार को सीट शेयरिंग की घोषणा कर दी है। बीजेपी 101 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, वहीं जदयू 101 सीटों पर लड़ने जा रही है। जबकि चिराग पासवान की पार्टी LJP (R) 29 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेगी। जीतन राम मांझी की हिंदुस्तान अवाम मोर्चा (HAM) को 6 और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी RLM को 6 सीटें दी गई हैं। पूरी खबर पढ़ें

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