25 सीटें-आयोग में पद, क्या है चिराग की प्रेशर पॉलिटिक्स:NDA में सीटों का फॉर्मूला लॉक, दिल्ली में 45 मिनट चली मीटिंग की इनसाइड स्टोरी

NDA में सीट शेयरिंग का फॉर्मूला लगभग तय हो गया है। खबरें थीं कि चिराग पासवान, जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा ज्यादा सीटें मांग रहे हैं। बीते दो दिन में हुई बैठकों में चिराग और मांझी मान गए। उपेंद्र कुशवाहा अभी शांत हैं। आज यानी 8 अक्टूबर को NDA के नेता दिल्ली में फिर साथ बैठेंगे। इसके बाद पटना में प्रेस कॉन्फ्रेंस होगी। इसमें सीट शेयरिंग की घोषणा हो सकती है। NDA में सीटों को लेकर सबसे ज्यादा पेच चिराग पासवान अटका रहे थे। अब उनके साथ भी डील लगभग फाइनल हो गई है। 7 अक्टूबर को दिल्ली में चिराग पासवान के घर BJP के चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान, प्रदेश प्रभारी विनोद तावड़े और पार्टी के सीनियर लीडर मंगल पांडेय की बैठक हुई। बैठक करीब 45 मिनट चली। इसमें लगभग नाराजगी की सभी बिंदुओं पर सहमति बन गई है। सोर्स बताते हैं कि 40 सीटें मांग रहे चिराग 25 सीटों पर मान गए हैं। तय फॉर्मूले के हिसाब से JDU 103, BJP 102, LJP(R) 25, HAM 8 और RLM 5 सीटों पर चुनाव लड़ सकती हैं। धर्मेंद्र प्रधान के साथ मीटिंग में चिराग की तीन बड़ी डिमांड 1. टिकट नहीं तो आयोग या बोर्ड में जगह मिले
पिछली बार चिराग पासवान की पार्टी 135 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। सभी कैंडिडेट आज भी पार्टी में हैं। इस बार सभी को टिकट नहीं मिल पाएगा। उन्हें कहीं और सेट करना होगा। चिराग ने भी कहा है कि जरूरी नहीं कि हम सभी को विधायक ही बनाएं। अभी आयोग, बोर्ड और दूसरे विभागों में नेताओं को जो पद मिलते हैं, वहां छोटी पार्टियों को नजरअंदाज किया जाता है। चुनाव के बाद मेरी पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी जगह दी जाए। 2. किसी खास इलाके में नहीं, पूरे राज्य में सीटें मिले
चिराग सिर्फ एक इलाके में नहीं, राज्य के लगभग सभी इलाकों में सीटें चाहते हैं। खास तौर पर शाहाबाद और मगध के इलाकों के अलावा वैशाली, समस्तीपुर, खगड़िया के उन जिलों में भी, जहां लोक जनशक्ति पार्टी (आर) के सांसद हैं। ऐसा इसलिए ताकि पार्टी का विस्तार पूरे राज्य में हो सके। 3. बड़े नेताओं को उनकी पसंद की सीटें मिलें
चिराग अपनी पार्टी के बड़े नेताओं के लिए उनकी पसंद की सीटें चाहते हैं। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष राजू तिवारी मोतिहारी की गोविंदगंज सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं। इसी तरह कुछ और बड़े नेताओं के लिए फिक्स सीट चाहते हैं। इन सीटों पर अभी BJP या JDU के विधायक हैं। BJP सूत्रों के मुताबिक, चिराग की डिमांड के बाद BJP और JDU की टॉप लीडरशिप के बीच मीटिंग हुई। इसमें चिराग की कुछ डिमांड को मान लिया गया। कुछ मुद्दों पर चिराग भी पीछे हट सकते हैं। इसके बाद आज सीट शेयरिंग का ऐलान हो सकता है। संतोष मांझी बोले- किसे कितनी सीटें, लगभग तय
दैनिक भास्कर ने हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष संतोष मांझी से पूछा कि क्या NDA में सब फाइनल हो गया है? उन्होंने जवाब दिया, ’लगभग सब तय है। जल्द इसकी घोषणा हो जाएगी।’ NDA की अगली मीटिंग पर उन्होंने कहा कि 8 अक्टूबर को बैठक बुलाई गई है। शायद इसमें सब फाइनल हो जाए। पार्टी कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी, संतोष मांझी ने इसका जवाब नहीं दिया। उपेंद्र कुशवाहा खामोश, 12-15 सीटों की डिमांड
NDA की पांचवी पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा के चीफ उपेंद्र कुशवाहा अब तक खामोश हैं। सूत्र बताते हैं कि उपेंद्र कुशवाहा ने धर्मेंद्र प्रधान के सामने 12 से 15 सीटों की मांग रखी है। धर्मेंद्र प्रधान ने कहा है कि इस पर विचार करने के बाद फैसला लिया जाएगा। बैठक के बाद अब तक उपेंद्र कुशवाहा और धर्मेंद्र प्रधान दोनों ने कुछ नहीं कहा है। माना जा रहा है कि राष्ट्रीय लोक मोर्चा को 4-5 सीटें मिल सकती हैं। उपेंद्र कुशवाहा की नई पार्टी पहली बार चुनाव मैदान में उतरेगी। हालांकि, कुशवाहा इससे पहले राष्ट्रीय लोक समता पार्टी बनाकर चुनाव लड़ चुके हैं। 2014 लोकसभा चुनाव में पार्टी ने 3 सीटें जीती थीं। तब वे केंद्र में मंत्री बने। 2015 के विधानसभा चुनाव में पार्टी सिर्फ 2 सीटें जीत पाई थी। JDU ने सहयोगियों को मनाने की जिम्मेदारी BJP पर छोड़ी
JDU ने चिराग पासवान से लेकर जीतन राम मांझी तक सभी को मनाने और उनके साथ डील फाइनल करने की जिम्मेदारी BJP को दे दी है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, JDU ने साफ किया है कि हम बस अपनी सीटों के लिए जिम्मेदार हैं। चिराग पासवान और जीतन राम मांझी कितनी सीटों और इलाकों में लड़ेंगे, ये सब तय करने की जिम्मेदारी BJP की होगी। चिराग और मांझी दोनों को गठबंधन में शामिल कराने में भी BJP की ही भूमिका थी। 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने 135 सीटों पर कैंडिडेट उतारे थे। उन्होंने नीतीश कुमार को 35 सीटों पर नुकसान पहुंचाया था। इससे JDU तीसरे नंबर की पार्टी बन गई थी। बाद में चिराग और नीतीश भले एक गठबंधन में आ गए हों, लेकिन दोनों के रिश्तों में पहले वाली मजबूती नहीं दिखी। पिछले दो महीने तक लगातार चिराग पासवान नीतीश सरकार पर हमलावर रहे। खुद चुनाव लड़ने का ऐलान करके उन्होंने JDU की चिंता बढ़ा दी थी। यही वजह है कि JDU अब तक चिराग के साथ सहज नहीं है। सीनियर जर्नलिस्ट नचिकेता नारायण बताते हैं, ‘चिराग पासवान जो भी कर रहे हैं, वो प्रेशर पॉलिटिक्स है। बहुत कम संभावना है कि वे NDA से अलग होंगे। उनकी रणनीति के पीछे दो मकसद हैं। पहला अपने कार्यकर्ताओं में जोश भरना और बिहार विधानसभा में पार्टी की सम्मानजनक मौजूदगी तय करना।’ ‘चिराग पासवान केंद्र में कैबिनेट मंत्री हैं। यह पद छोड़ने का जोखिम कोई नेता तभी उठा सकता है, जब उसे राज्य में मुख्यमंत्री पद मिल रहा हो। ऐसी संभावना दूर-दूर तक नहीं है। केंद्र में कैबिनेट मंत्री का पद और दर्जा राज्य के मुख्यमंत्री के बराबर होता है। ऐसे में बिहार में उपमुख्यमंत्री का पद स्वीकार करना उनके लिए एक तरह का डिमोशन होगा। इसके लिए वे खुद तैयार नहीं होंगे।’ ‘उनका अभी मकसद विधानसभा में पार्टी का खाता खोलना है। पिछली बार उनका इकलौता विधायक JDU में शामिल हो गया था। अगर चिराग इस बार कुछ सीटें जीत लेते हैं, तो यह उनकी पार्टी की हैसियत को फिर से स्थापित करेगा।’ नचिकेता नारायण के मुताबिक, NDA में सीट बंटवारे का फॉर्मूला लगभग तय हो चुका है। BJP और JDU लगभग बराबर सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। इसके बाद सहयोगियों के लिए सिर्फ 40 सीटें बचती हैं। ये चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा में बंटेंगी। BJP ने बिहार की जिम्मेदारी धर्मेंद्र प्रधान को क्यों दी
विधानसभा चुनाव की घोषणा से एक हफ्ते पहले BJP ने धर्मेंद्र प्रधान को बिहार में चुनाव प्रभारी बना दिया। इसके बाद से धर्मेंद्र लगातार BJP की स्टेट लीडरशिप के साथ बैठक कर रहे हैं। सहयोगी पार्टियों का संभालने की जिम्मेदारी भी उन पर है। उन्होंने अब तक तीन बड़ी बैठकें की हैं। पहले BJP की कोर कमेटी के साथ बैठे। फिर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ 2 दिन तक स्टेट लीडरशिप के साथ बैठक की। इसके बाद चुनाव समिति के साथ बैठक कर BJP कैंडिडेट की लिस्ट फाइनल कर सेंट्रल लीडरशिप को भेज दी। अब धर्मेंद्र प्रधान लगातार दो दिन से NDA के सहयोगियों के साथ बैठक कर सीट शेयरिंग फाइनल कर रहे हैं। हरियाणा में हारी बाजी को जीत में बदला
2024 में हरियाणा का विधानसभा चुनाव BJP के लिए मुश्किल लग रहा था। किसान आंदोलन की वजह से सरकार की छवि खराब हो रही थी। सरकार के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी थी। दो बार के CM मनोहर लाल खट्‌टर को चुनाव से पहले CM पद से हटाना पड़ा था। चुनाव से ठीक पहले दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी ने गठबंधन तोड़ लिया था। ऐसे में केंद्रीय नेतृत्व ने चुनाव की कमान धर्मेंद्र प्रधान को दी। चुनाव के नतीजे आए तो BJP ने लगातार तीसरी बार सरकार बनाई। 40% वोट शेयर के साथ पार्टी ने 48 सीटें जीती थीं। इन राज्यों की जीत में भी भूमिका
1. 2022 में उत्तर प्रदेश में BJP को लगातार दूसरी बार बहुमत से जीत दिलाई
2. 2010 में बिहार BJP के सह-प्रभारी बनाए गए, NDA को जीत मिली
3. 2017 में उत्तराखंड में सह चुनाव प्रभारी बने, पार्टी को जीत दिलाई
4. 2021 में पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में नंदीग्राम सीट के प्रभारी थे, यहां ममता बनर्जी को हार मिली BJP के प्रदेश प्रभारी के साथ नीतीश का बुरा अनुभव
2014 में सत्ता में आने के बाद अमित शाह ने अपने भरोसेमंद भूपेंद्र यादव को बिहार का प्रदेश प्रभारी बनाकर संगठन की जिम्मेदारी दी थी। बिहार संभालते ही उन्होंने संगठन में बदलाव कर दिए। बिहार में गैर यादव-OBC की पॉलिटिक्स करने वाली BJP में अचानक यादव नेताओं को तवज्जो दी जाने लगी। तब कद्दावर नेता रहे सुशील कुमार मोदी को किनारे कर यादव नेता नित्यानंद राय को 2016 में प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया। इतना ही नहीं 2020 के विधानसभा के चुनाव में सबसे ज्यादा 11 यादव कैंडिडेट को टिकट दिया गया। आरोप लगा कि भूपेंद्र यादव संगठन के साथ सरकार में मनमानी करने लगे थे। ये बात नीतीश कुमार को पसंद नहीं आई। उन्होंने स्टेट लीडरशिप को मैसेज दिया और भूपेंद्र यादव की बिहार से छुट्‌टी कर दी गई।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *