भारत माता के वीर सपूत परमवीर चक्र से सम्मानित शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता विशाल बत्रा को चंडीगढ़ में एयरफोर्स और एनसीसी की ओर से सम्मानित किया गया। इस दौरान भावुक विशाल बत्रा ने कहा कि उसे अपने बेटे पर गर्व है। मैं तो कहता हूं हर मां-बाप को ऐसा बेटा मिले जो अपने मां-बाप के साथ पूरे देश का नाम रोशन करे। विक्रम बत्रा के पिता विशाल बत्रा ने कहा कि आप भी पूरी मेहनत से काम करें और देश की सेवा करें क्योंकि देश ने हमें बहुत कुछ दिया है और कभी देश के काम आने का मौका मिले तो पीछे नहीं हटना चाहिए। आगे बढ़-चढ़ कर देश पर गंदी नजर से देखने वालों को कभी छोड़ना नहीं है। उन्हें धूल चटा दो। वहीं इस दौरान एयरफोर्स के बड़े अफसर भी मौजूद थे। वहीं एनसीसी के कमांडेंट विक्रम चौहान ने कहा कि विक्रम बत्रा पर पूरे देश को गर्व है। उसने जिस दिन सेना में ज्वाइनिंग की थी, उसी दिन से उसने अपनी ड्यूटी बड़ी ही ईमानदारी के साथ की और वह स्पोर्ट्स भी अच्छा खेलता था। उसे जो भी मिशन दिया गया उसने वह मिशन जब तक पूरा नहीं होता, वह आराम से नहीं बैठा। इस दौरान एनसीसी के काफी छात्र भी सेक्टर 10 स्थित डीएवी कॉलेज में मौजूद थे। बता दें कि शहीद विक्रम बत्रा ने अपनी कॉलेज की पढ़ाई डीएवी सेक्टर 10 कॉलेज में ही पूरी की थी, जिसके चलते कॉलेज की ओर से भी उनके पिता का सम्मान किया गया। इस दौरान जो एनसीसी के बच्चे बैठे हुए थे… जानिए कौन थे विक्रम बत्रा….. शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा की आज जयंती है। 9 सितंबर 1974 को पालमपुर में जी.एल. बत्रा और कमलकांता बत्रा के घर विक्रम का जन्म हुआ था। विक्रम की स्कूली पढ़ाई पालमपुर में ही हुई। सेना छावनी का इलाका होने की वजह से विक्रम बचपन से ही सेना के जवानों को देखते थे। कहा जाता है कि यहीं से विक्रम खुद को सेना की वर्दी पहने देखने लगे। स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद विक्रम आगे की पढ़ाई के लिए चंडीगढ़ चले गए। कॉलेज में वे एनसीसी एयर विंग में शामिल हो गए। कॉलेज के दौरान ही उन्हें मर्चेंट नेवी के लिए चुना गया था, लेकिन उन्होंने अंग्रेज़ी में एमए के लिए दाखिला ले लिया। इसके बाद विक्रम सेना में शामिल हो गए। 1999 में करगिल युद्ध शुरू हो गया। इस वक्त विक्रम सेना की 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में तैनात थे। विक्रम बत्रा के नेतृत्व में टुकड़ी ने हम्प व राकी नाब स्थानों को जीता और इस पर उन्हें कैप्टन बना दिया गया था। श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर महत्वपूर्ण 5140 पॉइंट को पाक सेना से मुक्त कराया। बेहद दुर्गम क्षेत्र होने के बाद भी कैप्टन बत्रा ने 20 जून 1999 को सुबह तीन बजकर 30 मिनट पर इस चोटी को कब्जे में लिया। कैप्टन बत्रा ने जब रेडियो पर कहा- ‘यह दिल मांगे मोर’ तो पूरे देश में उनका नाम छा गया। इसके बाद 4875 पॉइंट पर कब्जे का मिशन शुरू हुआ। तब आमने-सामने की लड़ाई में पांच दुश्मन सैनिकों को मार गिराया। गंभीर जख्मी होने के बाद भी उन्होंने दुश्मन की ओर ग्रेनेड फेंके। इस ऑपरेशन में विक्रम शहीद हो गए, लेकिन भारतीय सेना को मुश्किल हालातों में जीत दिलाई।