भोजपुर के खवासपुर पंचायत में उफनाती गंगा को नाव से पार कर शिक्षक पढ़ाने जा रहे हैं। बिना लाइफ जैकेट के टीचर्स रोज इसी तरह से पढ़ाने निकलते हैं। इसी नाव पर गांव वालों के सामान और गाड़ियों को भी लादकर पार कराया जाता है। भास्कर की टीम ने इन शिक्षकों से बात की एक टीचर ने हमें ये कविता सुना दी- वीर तुम बढ़े चलो, सामने पहाड़ हो, सिंह की दहाड़ हो… इस दौरान हमें गांव के कुछ लोग भी मिले। उन्होंने बताया कि बात सिर्फ शिक्षकों की नहीं है, आम आदमी भी आरा मुख्यालय से खवासपुर पंचायत आना जाना करते हैं। आजादी के बाद से अब तक गंगा पर पुल नहीं बन पाया है, जिसकी वजह से हमें अब तक नाव से ही गंगा के उस पार आना-जाना करना पड़ता है। पढ़िए आरा से पूरी रिपोर्ट… 22 पंचायतों के लोग सिर्फ नाव के सहारे सबसे पहले हम खवासपुर पंचायत पहुंचे। भोजपुर जिले के बड़हरा विधानसभा क्षेत्र में 22 पंचायत हैं, जिसमें से खवासपुर पंचायत गंगा नदी के उस पार है। अगर किसी को आरा मुख्यालय से खवासपुर जाना हो तो, उसे नाव से गंगा नदी पार करके जाना होता है। खवासपुर से तीन किलोमीटर आगे उत्तर प्रदेश का बॉर्डर लग जाता है। दरअसल, जिस इलाके की बात हो रही है, उसे महुली-खवासपुर गंगा घाट के नाम से जाना जाता है। घाट पर बारिश के सीजन के अलावा लोग पीपा पुल के जरिए आना-जाना करते हैं, लेकिन बारिश में गंगा का जलस्तर बढ़ने की वजह से पीपा पुल हटा दिया जाता है। मतलब अब गंगा नदी के दूसरी तरफ खवासपुर पंचायत के लोगों को आरा मुख्यालय आने के लिए नाव ही एक मात्र जरिया है। लेकिन जैसे-जैसे गंगा का जलस्तर बढ़ोतरी हो रही है वैसे-वैसे खतरा और भी मंडरा रहा है। गंगा खतरे के निशान से 40 सेंटीमीटर ऊपर बह रही है। घाटों पर ओवरलोड नाव पर बाइक लादकर ले जाते हैं भास्कर की टीम जब महुली-खवासपुर घाट पर पहुंची, तो देखा कि एक-दो नहीं बल्कि कई नाव ऐसी हैं, जो ओवरलोड हैं। नाव पर लोग भी हैं, बाइक भी लदी है। बाइक भी एक दो नहीं बल्कि 10 से अधिक। नाविक (नाव चलाने वाले) अपनी नाव के दोनों ओर बाइक रख देते हैं, इसके बाद करीब 18 से 20 लोगों को बैठा लेते हैं। न कोई लाइफ जैकेट, न ही कोई सुरक्षा के ऊपाय। इसी दौरान खवासपुर पंचायत के सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाली एक टीचर मिली। उन्होंने कहा- ‘नाव जब तक पूरी भर नहीं जाती तब तक खुलती नहीं है। कभी कभी समय पर नहीं पहुंच पाते हैं। अगर मैं स्कूल जाने के लिए समय से पहले भी घाट पर पहुंच जाती हूं, तो घंटों नाव भरने का इंतजार करना पड़ता है। ऐसे में हम लोग अपनी जान जोखिम में डालकर हर दिन नाव से स्कूल पढ़ाने जाते हैं।’ सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाली प्रतिभा सिंह ने कहा कि ‘पीपा पुल खुलने की वजह से काफी परेशानी होती है। नाव के भरने का घंटों इंतजार करना पड़ता है। हम लोग खवासपुर पंचायत में रह भी नहीं सकते हैं, क्योंकि वहां रहने की सुविधा नहीं है। इसके लिए हमें उत्तर प्रदेश में बसा होगा, जो पॉसिबल नहीं है। घर आरा मुख्यालय में हैं, तो यूपी में क्यों रहें।’ नाव पूरी भरकर ही चलते हैं नाविक शिक्षक ज्योति सागर बताती हैं कि ‘पीपा पुल चालू रहता है तो कोई दिक्कत नहीं होती है। हम लोगों को सुबह 9:30 बजे स्कूल पहुंच कर ऑनलाइन अटेंडेंस बनाना होता है। हम लोग गंगा के किनारे 9 बजे पहुंच जाते हैं, लेकिन जब तक नाव ओवरलोड नहीं होता, तब तक इसे खोला नहीं जाता। नाव पर बाइक, कभी भैंस तो कभी बकरियों को भी लोड कर दिया जाता है।’ ‘सीनियर बोलते हैं कि खवासपुर में ही रह जाओ। लेकिन वहां कैसे रहें, ना लाइट, ना ही स्वास्थ्य की सुविधा है। एक मैम अपने बच्चों को लेकर वहां रहती थी, तो उनके बच्चे का तबीयत खराब हो गई थी। जिसकी वजह से ना तो वह ठीक से स्कूल में पढ़ा पा रही थी और ना ही अपने बच्चों को देखभाल कर पा रही थी। हमारे स्कूल से महज 3 किलोमीटर पर उत्तर प्रदेश है।’ कल नाव पलटने वाली थी, बाल-बाल बचे एक महिला शिक्षक नीलम कुमारी बताती हैं कि ‘हमें रोज नाव से ही आना और जाना पड़ता है। कल ही हमारी नाव पलटने वाली थी। लेकिन भगवान की कृपा से नाव पर सवार सभी लोग बच गए। हम लोग बच्चों को पढ़ाते हैं। पूरे मन से पढ़ाते हैं। लेकिन हमें रोज जान का खतरा होता है।’ ‘मैं अपनी बेटी को डेढ़ साल तक लेकर इसी नाव से स्कूल में पढ़ाने गई हूं। सरकार भी हमारे लिए कुछ नहीं कर रही है। सरकार को हमारे लिए नाव की सुविधा करनी चाहिए। नहीं तो हम लोगों का गंगा नदी के इस तरफ ट्रांसफर कर देना चाहिए।’ समय पर नहीं पहुंचने पर कई मरीजों की मौत हो चुकी है ग्रामीण हरे राम सिंह का कहना है कि ‘पीपा पुल खुलने से बहुत परेशानी होती है। आने जाने के लिए नाव के अलावा कोई सुविधा नहीं है। अगर रात में किसी की तबीयत खराब होती है, तो हमें छपरा होकर जाना पड़ता है या तो फिर उसे उत्तर प्रदेश ले जाना पड़ता है। अगर छपरा होकर मरीज को लाते हैं तो 100 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है। बहुत मरीज समय पर इलाज नहीं मिलने की वजह से जान गवां देते हैं।’ ‘गंगा घाट के नजदीक मेरा घर है। बचपन से ये सब देखता आ रहा हूं, तो नाव से आने-जाने की आदत हो गई है, लेकिन मजबूरी भी है, कोई रास्ता नहीं है। अगर किसी का तबीयत खराब होता है तो उत्तर प्रदेश ले जाना पड़ता है। इधर कोई साधन नहीं है। वहीं उत्तर प्रदेश ले जाने में व्यवस्था तो मिल जाती है। लेकिन बहुत परेशानी होती है। साथ ही खर्च भी बढ़ जाता है।’ अब सुनिए, ओवरलोड को लेकर नाविकों का क्या कहना है ओवरलोड नहीं करेंगे तो मेंटेनेंस भी नहीं निकाल पाएंगे नाविक जितेंद्र मांझी का कहना है कि ‘बाबा, दादा, पिता के बाद अब हम लोग नाव चला रहे हैं। बहुत समय से हम लोग नाव चलाते आ रहे हैं और सेवा कर रहे हैं। लेकिन हम लोग के प्रति किसी का ध्यान नहीं है। हम लोग मात्र 4 महीने नाव चलाते हैं। चार महीने में ही नाव के मेंटेनेंस का खर्च निकालना मुश्किल होता है, घर का खर्च तो छोड़ ही दीजिए।’ ‘कई लोगों की हम लोगों से शिकायत होती है कि हम लोग मनमाना किराया वसूलते हैं। मेरे परिवार में पांच बच्चे हैं। इसी नाव को चलाकर सभी को पढ़ाते हैं। 5 से 6 महीना खेती करते हैं और 4 महीना नाव चलाते हैं।’ जितेंद्र बताते हैं- ‘ब्याह के सीजन में पीपा पुल रहता है, लेकिन जब शादी ब्याह का लग्न नहीं होता तो लोग नाव से आना-जाना करते हैं। लेकिन बारिश की वजह से लोग कम ही घर से निकलते हैं। हम लोग चार महीने नाव तो चलाते हैं लेकिन कमाई नहीं होती है। ऐसे में घर परिवार को चलाना मुश्किल होता है।’ RJD नेता बोलीं- 2025 में भी लोग नाव के सहारे हैं राजद नेत्री सोनाली सिंह ने कहा कि ‘बड़ा दुख होता है कि 2025 में हजारों लोग नाव और पीपा पुल के सहारे आना-जाना कर रहे हैं। बड़हरा विधानसभा के एक मात्र गांव जो गंगा पार है, वहां के लोगों के लिए ये सब देखकर बुरा लगता है। खवासपुर पंचायत के साथ अक्सर सौतेला व्यवहार किया जाता है।’ ‘राघवेंद्र प्रताप सिंह वर्तमान विधायक हैं और उनका भाग्य अच्छा है कि वे एक ही विधानसभा से छह बार विधायक चुने गए हैं, लेकिन फिर भी उन्होंने खवासपुर पंचायत के गांव के लोगों के लिए कुछ नहीं किया है। अगर विधायक जी अगर पंचायत के बारे में सोचते तो कुछ विकास का हो जाता, गंगा पर एक स्थायी पुल का निर्माण हो जाता।’ ———————————— ये खबर भी पढ़ें ग्राउंड रिपोर्ट -छाती तक पानी,कंधे पर लाश,77 साल से यहां पुल नहीं:गयाजी में 8 हजार लोग 8 महीने तक शहरों से कट जाते;चिता जलाने की जगह नहीं पुल होता तो शायद मेरे बेटे की जान बच जाती, लेकिन पुल नहीं होने की वजह से मेरे बेटे की मौत हो गई। बारिश के समय नदी में पानी भरा रहता है। सीने तक पानी भरा रहता है, तो उसे इलाज के लिए अस्पताल कैसे ले जाता।’ ये कहना है उस पिता का, जिसके बेटे की हाल ही में बीमारी के बाद समय से इलाज नहीं मिलने के कारण मौत हो गई थी। गयाजी के हेरहंज गांव के 42 साल के निरंजन महतो के पेट में दर्द उठा था, लेकिन बारिश की वजह से नदी में पानी अधिक था। जिस वजह से परिवार वाले उसे अस्पताल नहीं ले जा सके। गांव के ही एक झोलाछाप डॉक्टर से दवा ली, लेकिन कुछ फायदा नहीं हुआ। चार दिन घर में तड़पता रहा और पांचवें दिन उसकी मौत हो गई। पूरी खबर पढ़ें