चंडीगढ़-अंबाला और मोहाली के बीच का रेलवे ट्रैक अब मौत का ट्रैक बनता जा रहा है। इस साल ट्रैक पर कुल 112 मौतें दर्ज हुई हैं, जिनमें 54 हादसे और 58 आत्महत्याएं शामिल हैं। यह आंकड़ा पिछले 9 वर्षों में सबसे अधिक है, जिससे रेलवे विभाग में चिंता की लहर है। रेलवे हर साल लोगों को ट्रैक से दूर रहने और सुरक्षित मार्ग अपनाने के लिए जागरूकता अभियान चलाता है, लेकिन इसके बावजूद हादसों और आत्महत्याओं में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। अधिकारी मानते हैं कि ट्रैक के आसपास घर और बस्तियां बढ़ने से भी इन घटनाओं में इजाफा हुआ है। हादसे रोकने में नाकाम जागरूकता अभियान रेलवे विभाग हर साल जागरूकता कार्यक्रमों पर लाखों रुपए खर्च करता है, पोस्टर लगाता है, घोषणाएं करवाता है और स्कूलों में सुरक्षा संदेश पहुंचाता है। लेकिन आंकड़े बताते हैं कि इन अभियानों का प्रभाव जमीन पर दिखाई नहीं दे रहा।विभाग अब इन घटनाओं को रोकने के लिए नई रणनीति और नीति बनाने की तैयारी में है। 50 किमी की रफ्तार पर ब्रेक लगाना मुश्किल एक लोको पायलट ने बताया कि ट्रेन की रफ्तार 15–20 किमी प्रति घंटा हो तो 400 मीटर पहले तक कुछ दिखने पर ब्रेक लगाया जा सकता है, लेकिन जब ट्रेन की स्पीड 50 किमी प्रति घंटा से ऊपर होती है तो पावर ब्रेक लगाना मुश्किल हो जाता है।उन्होंने बताया कि अधिकतर हादसों में शराब के नशे में लोग या प्रेमी जोड़े शामिल होते हैं, जो अचानक ट्रैक पर आ जाते हैं। ऐसे मामलों में हादसे टालना मुश्किल हो जाता है। ट्रैक के पास बढ़ती आबादी रेलवे अधिकारियों का कहना है कि जब यह ट्रैक बनाए गए थे, तब इनके आसपास आबादी बहुत कम थी। लेकिन अब गांव और कस्बों के लोग खेतों में मकान बना रहे हैं और ट्रैक के बेहद पास रह रहे हैं। इस वजह से न केवल हादसे बढ़े हैं बल्कि कई लोग आत्महत्या के लिए भी ट्रैक को चुन रहे हैं। लगातार बढ़ते हादसे और आत्महत्याओं के आंकड़े