NDA में सीट शेयरिंग के बाद से ही सबसे ज्यादा चर्चा चिराग पासवान के स्ट्राइक रेट की है। कहा जा रहा है कि इसी आधार पर उनकी पार्टी LJP(R) को 29 सीटें मिली हैं, जिससे सहयोगी पार्टियों में नाराजगी है। आखिर चिराग पासवान का स्ट्राइक रेट कितना है और उसकी असलियत क्या है; जानेंगे आज के एक्सप्लेनर बूझे की नाहीं में… सवाल-1ः क्या NDA की पार्टियों के बीच नाराजगी है और क्यों? जवाबः अंदरखाने NDA की सभी पार्टियों में नाराजगी है। सीट शेयरिंग के ऐलान के बाद नीतीश कुमार की JDU, जीतन राम मांझी के HAM और उपेंद्र कुशवाहा के RLM में नाराजगी की खबरें आईं… सवाल-2ः NDA में किस पार्टी को कितनी सीटें मिली हैं और विवाद क्या है? जवाबः NDA में 5 पार्टियां हैं- भाजपा, JDU, LJP(R), HAM और RLM। इसमें भाजपा-JDU 101-101, LJP(R) 29, HAM और RLM को 6-6 सीटें मिलीं हैं। खबर है कि NDA के घटक दलों में सबसे अधिक नाराजगी चिराग पासवान की पार्टी को 29 सीट देने को लेकर है। दरअसल, 2024 लोकसभा चुनाव के बाद से सभी मीडिया इंटरव्यू में चिराग पासवान स्ट्राइक रेट का दावा कर रहे हैं। वह कहते हैं- NDA ने लोकसभा चुनाव में हमें 5 सीटें दी थी, सब पर हम जीते। इसलिए मुझे सम्मानजनक सीटें चाहिए। माना जाता है कि उन्होंने लोकसभा चुनाव को ही आधार बनाकर BJP पर दबाव बनाया और उन्हें सीटें मिल गईं। उनके इसी स्ट्राइक रेट के दावे पर बिना नाम लिए गिरिराज सिंह ने निशाना साधा है। सवाल-3ः चिराग पासवान की स्ट्राइक रेट का सच क्या है? जवाबः आंकड़े बताते हैं कि चिराग पासवान की स्ट्राइक रेट तब ही अच्छी रही है, जब उनके साथ नीतीश कुमार रहे हैं। बिना नीतीश चिराग कुछ भी नहीं। इसे आंकड़ों के जरिए समझिए… …और बारीकी से समझिए अब बात 2024 लोकसभा चुनाव की… चिराग की जीती हुई 5 लोकसभा सीटों में विधानसभा की 30 सीटें हैं। इसमें से 2020 में 17 सीटों पर NDA जीता था। एक भी सीट पर चिराग की पार्टी नंबर दो भी नहीं रही थी। सवाल-4ः फिर चिराग पासवान को इतनी तवज्जो क्यों? जवाबः दरअसल, चिराग दलित समाज के पासवान जाति से आते हैं। अक्टूबर 2023 में जारी बिहार जातीय-सर्वे के मुताबिक, राज्य में पासवान/दुसाध की आबादी 5.31% है। माना जाता है कि पासवान/दुसाध विधानसभा की 20 से 25 सीटों पर जीत-हार तय करने में भूमिका निभाते हैं। 2020 चुनाव में LJP को 135 में से 90 सीटों पर 10 हजार से अधिक वोट मिला था। पार्टी को कुल 23,83,457 वोट मिला। 16 अगस्त को एक इंटरव्यू में चिराग ने कहा था, ‘मैं गठबंधन में ‘नमक’ की भूमिका निभाऊंगा। बिना नमक के किसी भी व्यंजन में स्वाद नहीं आता। कुछ लोग 2020 में मेरे अकेले चुनाव लड़ने के प्रदर्शन को कमतर आंकने की कोशिश करते हैं। लेकिन मेरी पार्टी हर महत्वपूर्ण सीट पर 10,000-15,000 वोटों का अंतर पैदा कर सकती है।’ ये तो हुई डेटा और फैक्ट की बात, इसके अलावा चिराग को तवज्जो देने के पीछे एक्सपर्ट 2 बड़े कारण बताते हैं… 1. दलित नेताओं की कमीः बिहार में NDA में दो दलित नेता हैं- चिराग पासवान और जीतन राम मांझी। चिराग के वोट शेयर को देखें तो 20 साल में भले पार्टी का ग्राफ विधानसभा चुनाव में आधा हुआ है, लेकिन उनके पास आज भी साढ़े 5 फीसदी वोट है। सीनियर जर्नलिस्ट सत्यभूषण सिंह कहते हैं, ‘क्लोज फाइट में छोटे-छोटे वोट बैंक भी अहम हो जाते हैं। 2020 विधानसभा चुनाव के डेटा को देखें तो 3 हजार वोटों के अंतर से 35 सीटों पर जीत-हार हुई है। ऐसे में चिराग अहम फैक्टर हो सकते हैं। अगर चिराग 2-4 सीटों के लिए गठबंधन से बाहर जाते तो नुकसान हो सकता था। पिछली बार करीब 30 सीटों पर उन्होंने JDU को हरवा दिया था।’ 2. नीतीश पर भरोसा कमः पॉलिटिकल एनालिस्ट प्रियदर्शी रंजन कहते हैं, ‘भाजपा को नीतीश कुमार पर भरोसा कम है। वह इस बार रिस्क नहीं लेना चाहती थी। इसलिए उसने अपने भरोसेमंद सहयोगी चिराग को ज्यादा सीटें दे दी।’ प्रियदर्शी रंजन कहते हैं, ‘एक और बात का ध्यान रखना चाहिए। इस बार NDA के सीटों का बंटवारा नीतीश कुमार ने नहीं किया है। दिल्ली के नेताओं ने बंटवारा किया है। इसके पीछे नीतीश कुमार का स्वास्थ्य भी कारण हो सकता है। चिराग दिल्ली के नजदीक ज्यादा हैं।’ 4 पॉइंट में नीतीश कुमार पर भरोसा कम क्यों…