चीन मूल के गैंगस्टर भारतीय युवाओं को विदेश में आकर्षक नौकरी का झांसा देकर मानव तस्करी करते हैं और उन्हें म्यांमार जैसे देशों में ले जाकर जबरन साइबर ठगी करवाते हैं। गुरुग्राम साइबर पुलिस द्वारा मानव तस्करी और अंतरराष्ट्रीय साइबर फ्रॉड के मामले में गिरफ्तार दो लोगों ने पुलिस रिमांड के दौरान खुलासा किया कि चीनी मूल के गैंग लीडर प्रति व्यक्ति उन्हें एक हजार से लेकर तीन हजार डॉलर तक का कमीशन देते थे। इस काम में उनके अलावा हरियाणा के कई और युवक भी शामिल हैं। तीन दिन पहले गिरफ्तार भिवानी जिले के गांव बड़वा के रहने वाले दो सगे भाइयों विजेंद्र उर्फ सोनू (23 वर्ष) और जितेंद्र उर्फ मोनू (21 वर्ष) ने रिमांड के दौरान कबूला कि पहले वे दोनों खुद म्यांमार में साइबर फ्रॉड के काम में फंस चुके थे और बाद में चीन मूल के माफिया के लिए एजेंट बन गए। 200 से ज्यादा लोगों को ठगों तक पहुंचाया आरोपियों ने पुलिस को बताया कि वे अब तक 200 से ज्यादा लोगों को चीनी ठगों तक पहुंचा चुके हैं। गुरुग्राम के रहने वाले मंदीप नाम के शख्स को जब धोखाधड़ी से म्यांमार पहुंचाया तो इनकी करतूत का खुलासा हुआ। पीड़ित मंदीप ने 15 नवंबर को गुरुग्राम के साइबर क्राइम साउथ थाने में शिकायत दर्ज कराई। मंदीप ने बताया कि उसकी मुलाकात सोनू से गुरुग्राम में हुई थी। सोनू ने उसे थाईलैंड में अच्छी नौकरी दिलाने का लालच दिया। टिकट के नाम पर 50 हजार लिए मंदीप ने टिकट के नाम पर सोनू को 50 हजार रुपए दिए। 23 मार्च 2025 को जयपुर से थाईलैंड की फ्लाइट ली, लेकिन वहां पहुंचते ही जितेंद्र ने उसे अवैध तरीके से म्यांमार बॉर्डर पार करवा दिया। वहां उसे डाटा ऑपरेटर की नौकरी बताकर अमेरिकी नागरिकों का निजी डेटा चुराने और साइबर ठगी का काम कराया जाने लगा। जब मंदीप ने विरोध किया तो सोनू ने फोन पर जान से मारने की धमकी दी। म्यांमार आर्मी ने रेस्क्यू किया 22 अक्टूबर 2025 को म्यांमार आर्मी ने जिस कंपाउंड में ये लोग थे, वहां पर रेड की। मंदीप समेत कई लोगों को म्यांमार पुलिस ने पकड़ लिया और बाद में 6 नवंबर 2025 को उसे थाईलैंड के रास्ते दिल्ली डिपोर्ट कर दिया गया। जिन 200 से ज्यादा लोगों को भारत भेजा गया, उसमें हरियाणा के 10 लोग शामिल हैं। आरोपियों ने पुलिस को बताई पूरी कहानी………….. साइबर फ्रॉड सेंटर चलाते हैं: पुलिस पूछताछ में सोनू और जितेंद्र ने खुलासा किया कि जनवरी 2025 में जितेंद्र म्यांमार गया था, जहां चीन मूल के गैंगस्टरों से उसका संपर्क हुआ। वे लोग साइबर फ्रॉड सेंटर्स चलाते हैं और भारतीय युवकों को लाकर वहां जबरन काम करवाते हैं। हर युवक को लाने पर एजेंट को 3000 डॉलर और मध्यस्थ को 1000 डॉलर कमीशन मिलता है। बड़े भाई को भी धंधे में उतारा: जितेंद्र ने अपने बड़े भाई सोनू को यह धंधा बताया और दोनों ने मिलकर हरियाणा से करीब 10 युवकों को इसी तरह म्यांमार भेजा। जबकि देश के अलग अलग राज्यों से करीब 200 लोगों को अच्छी नौकरी का झांसा देकर म्यांमार भेजा। पासपोर्ट छीन लेते हैं: आरोपियों ने कबूल किया कि म्यांमार पहुंचने के बाद युवकों के पासपोर्ट छीन लेते हैं और उनके मोबाइल जब्त कर लिए जाते हैं। कोई विरोध करता है तो उसे जान से मारने की धमकी देकर दिन-रात साइबर ठगी करवाई जाती है। बड़े देशों के लोग टारगेट: अधिकतर ठगी अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया के लोगों को टारगेट करके की जाती है। एक कॉलर को टारगेट भी दिया जाता है, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों से मोटी रकम ठगी जा सके। ऐसे चढ़े पुलिस के हत्थे एसीपी साइबर क्राइम प्रियांशु दिवान के नेतृत्व में इंस्पेक्टर नवीन कुमार की टीम ने शिकायत के बाद कार्रवाई शुरू की। इन आरोपियों को डिपोर्ट के बाद दिल्ली पुलिस को सौंपा गया था। 19 नवंबर को दिल्ली की वजीराबाद पुलिस अकादमी से गुरुग्राम साइबर पुलिस टीम ने इन दोनों को गिरफ्तार किया। सैकड़ों युवक अभी भी म्यांमार में हैं एसीपी साइबर प्रियांशु दीवान का कहना है कि यह केवल एक छोटा हिस्सा है, ऐसे सैकड़ों भारतीय युवा अभी भी म्यांमार, कंबोडिया और लाओस के फ्रॉड कंपाउंड्स में फंसे हुए हैं। आम जनता से अपील है कि विदेश में नौकरी के नाम पर कोई भी एजेंट पैसे मांगे या थाईलैंड के नाम पर म्यांमार भेजने की बात करें तो तुरंत साइबर पुलिस से संपर्क करें। इस तरह के रैकेट अब उत्तर भारत के गांव-गांव तक पहुंच चुके हैं और बेरोजगारी का फायदा उठाकर युवाओं को गुलाम बना रहे हैं।