सुप्रीम कोर्ट ने रेप केस में FIR रद्द की:कहा- सहमति से बना रिश्ता शादी में न बदले, तो रेप नहीं; कानून का गलत इस्तेमाल न हो

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि लंबे समय तक सहमति से बना रिश्ता टूट जाए, शादी न हो पाए तो ऐसे हालात में इसे रेप नहीं माना जा सकता। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने कहा कि ऐसे मामलों में कानून का गलत इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। रेप जैसे आरोप तभी लगाए जाएं जब वास्तव में जबरदस्ती, डर, दबाव या सहमति की कमी हो। इस टिप्पणी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला बदलते हुए एक वकील के खिलाफ IPC की धारा 376, 376(2)(n) और 507 में दर्ज FIR और चार्जशीट रद्द कर दी। वकील ने बॉम्बे हाई कोर्ट (औरंगाबाद) के मार्च 2025 के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने अगस्त 2024 में उसके खिलाफ दर्ज FIR को रद्द करने से इनकार कर दिया था। तीन साल चला रिश्ता, शादी नहीं हुई तो रेप का आरोप मामला महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर का है। यहां अगस्त 2024 में एक महिला ने एक वकील के खिलाफ रेप का केस दर्ज कराया था। महिला ने पहले अपने पति के खिलाफ शिकायत की थी और उसके खर्च चलाने के लिए पैसा मांगने का प्रोसेस भी शुरू कर दिया था। इसी दौरान उसकी मुलाकात आरोपी वकील से हुई। जब दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ीं तब आरोपी ने शादी की बात कही, लेकिन महिला ने शुरुआत में मना कर दिया। बाद में महिला प्रेगनेंट हो गई और उसका एबॉर्शन भी हुआ। जब महिला ने शादी के लिए कहा तो आरोपी पीछे हट गया। इसके बाद महिला ने उसके खिलाफ रेप का मामला दर्ज कराया और आरोप लगाया कि आरोपी ने शादी का झांसा देकर संबंध बनाए। सुप्रीम कोर्ट- टूटे रिश्तों को अपराध बनाना गलत, असली पीड़ितों का नुकसान सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि महिला और वकील तीन साल तक रिश्ते में थे और यह रिश्ता पूरी तरह आपसी सहमति से बना था। कोर्ट ने कहा कि ऐसा लंबा और सहमति वाला रिश्ता सिर्फ इसलिए रेप नहीं कहलाता कि वह शादी में नहीं बदल सका। बेंच ने कहा- हमें लगता है कि यह ऐसा मामला नहीं है जिसमें अपीलकर्ता ने शिकायतकर्ता को सिर्फ शारीरिक संबंधों के लिए फुसलाया और फिर गायब हो गया। यह रिश्ता तीन साल तक चला, जो काफी लंबा समय है। कोर्ट ने ये भी कहा कि हाईकोर्ट ने इस बात पर गौर नहीं किया कि FIR में ही लिखा है कि दोनों पक्षों में रिश्ता आपसी सहमति से बना था। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि कुछ मामलों में सचमुच भरोसा तोड़ा जाता है और महिलाओं का नुकसान होता है। ऐसे मामलों में कानून जरूर मदद करेगा, लेकिन आरोप सबूतों पर आधारित होने चाहिए सिर्फ गुस्से या अंदाजे पर नहीं।

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