चंडीगढ़ पुलिस की अनट्रेस रिपोर्ट कोर्ट ने ठुकराई:3 साल बाद दाखिल, 50 करोड़ की धोखाधड़ी केस, दोबारा जांच के आदेश

चंडीगढ़ सेक्टर-27 स्थित करीब 50 करोड़ रुपए की प्रॉपर्टी में धोखाधड़ी के मामले में चंडीगढ़ पुलिस की जांच पर जिला अदालत ने सवाल खड़े कर दिए हैं। तीन साल तक जांच करने के बाद पुलिस द्वारा दाखिल की गई अनट्रेस रिपोर्ट को अदालत ने नामंजूर कर दिया। कोर्ट ने न केवल फाइल जांच अधिकारी को वापस लौटाई, बल्कि दोबारा जांच कर फाइनल रिपोर्ट पेश करने के स्पष्ट निर्देश भी दिए हैं। इस फैसले से पुलिस की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। यह प्रॉपर्टी रिटायर्ड कर्नल प्यारा सिंह की थी। आरोप है कि कर्नल के निधन के बाद उनके कुछ रिश्तेदारों ने फर्जी वसीयत तैयार कर प्रॉपर्टी हथियाने की कोशिश की। आरोपियों में यमुनानगर निवासी बेटी नीलम सारंग, दामाद विनोद कुमार, बहू प्रोमिला रानी सहित अन्य रिश्तेदार शामिल बताए गए हैं। कर्नल के पोते विक्रम देव सारंग की शिकायत पर पुलिस ने एफआईआर दर्ज की थी। जानिए… कोर्ट ने क्यों की खारिज अनट्रेस रिपोर्ट जिला अदालत ने पुलिस की अनट्रेस रिपोर्ट को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। अदालत का कहना था कि इतने गंभीर आरोपों और करोड़ों की संपत्ति से जुड़े मामले में बिना ठोस निष्कर्ष के केस को बंद नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने पुलिस को दोबारा जांच कर पूरी रिपोर्ट दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। पुलिस ने अपनी अनट्रेस रिपोर्ट में 17 दिसंबर 2017 की विवादित वसीयत को लेकर सेंट्रल फोरेंसिक साइंस लैबोरेटरी (सीएफएसएल) की रिपोर्ट का हवाला दिया। रिपोर्ट में यह स्पष्ट नहीं हो सका कि वसीयत असली थी या जाली। पुलिस का कहना था कि इसी वजह से यह निष्कर्ष नहीं निकल पाया कि धोखाधड़ी हुई या नहीं, इसलिए अनट्रेस रिपोर्ट दाखिल की गई। शिकायत के अनुसार, आरोपियों ने कर्नल की संपत्ति को ट्रांसफर कराने के लिए एस्टेट ऑफिस में वसीयत के आधार पर आवेदन दिया था, जिसे एस्टेट ऑफिस ने खारिज कर दिया। इसके बाद विक्रम देव ने पुलिस में शिकायत दी कि सभी रिश्तेदारों ने मिलकर फर्जी दस्तावेजों के जरिए प्रॉपर्टी हड़पने की कोशिश की है। आरोपियों को बचाने की कोशिश शिकायतकर्ता विक्रम देव सारंग ने पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि पुलिस ने आरोपियों को बचाने के लिए जानबूझकर अनट्रेस रिपोर्ट दाखिल की। विक्रम देव का दावा है कि पुलिस ने पहले हाईकोर्ट में एफिडेविट देकर वसीयत को जाली बताया था और चार्जशीट दाखिल करने की बात भी कही थी। इसके बावजूद अब चार्जशीट दाखिल करने की बजाय केस को अनट्रेस घोषित करने की कोशिश की जा रही है। विक्रम देव ने जांच अधिकारी एएसआई जितेंद्र सिंह के खिलाफ पुलिस विभाग को शिकायत दी है। उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस के पास केस साबित करने के लिए पुख्ता सबूत और अहम गवाहों के बयान मौजूद थे, लेकिन जानबूझकर गवाहों के बयान केस फाइल से हटा दिए गए। अदालत में भी गवाहों के बयान पेश नहीं किए गए। फर्जी वसीयत पर एफआईआर इस मामले में चंडीगढ़ पुलिस ने करीब तीन साल पहले सेक्टर-27 में स्थित प्रॉपर्टी को लेकर 9 लोगों के खिलाफ फर्जी वसीयत तैयार करने के आरोप में केस दर्ज किया था। पुलिस ने आरोपियों पर आईपीसी की धारा 420, 467, 468, 471, 474 और 120-बी के तहत एफआईआर दर्ज की थी। जांच के दौरान पुलिस ने इसे सिविल विवाद करार देते हुए केस बंद करने की सिफारिश कर दी और अदालत में अनट्रेस रिपोर्ट दाखिल कर दी। सीएफएसएल रिपोर्ट में विरोधाभास सीएफएसएल की पहली रिपोर्ट में वसीयत के टाइप किए गए पैराग्राफ में लाइनों के बीच असमान अंतर पाए गए थे। विशेषज्ञ ने आशंका जताई थी कि दस्तावेज के टेक्स्ट को बाद में समायोजित किया गया हो और हस्ताक्षर पहले किए गए हों। बाद में वसीयत को दोबारा जांच के लिए सीएफएसएल सेक्टर-36 भेजा गया। दूसरी रिपोर्ट में कहा गया कि दस्तावेज में किसी तरह की बड़ी काट-छांट या हस्तक्षेप के संकेत नहीं मिले, हालांकि वसीयत के असली या जाली होने पर कोई अंतिम निष्कर्ष नहीं दिया गया।

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