राजस्थान सहित पूरे देश में चल रही अरावली बचाओ मुहिम के बीच भिवाड़ी (तिजारा-खैरथल) से झकझोर देने वाली तस्वीर सामने आई है। दिल्ली-NCR रीजन में कहरानी (भिवाड़ी) की पहाड़ियों में इतना खनन हुआ कि अब यहां टावरनुमा नुकीली चट्टानें ही बची हैं। पिछले कुछ सालों में हुई अंधाधुंध खनन के बाद पहाड़ खत्म हो गए। बचे हैं तो 50-50 फीट गहरे गड्ढे। स्थानीय लोगों का दावा है कि एक किलोमीटर तक खोदी गई इसी पहाड़ी से नोएडा और दिल्ली में नया कंस्ट्रक्शन हुआ है। जब से सुप्रीम कोर्ट ने अरावली की नई परिभाषा को मंजूरी दे दी है, शोर मचा हुआ है। इस परिभाषा के अनुसार 100 मीटर या इससे ऊंची पहाड़ी को ही अरावली माना जाएगा। चिंताजनक ये है कि 2010 की फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया रिपोर्ट के मुताबिक करीब 12 हजार पहाड़ियों में करीब 8% ही 100 मीटर से ऊंची हैं। सबसे पहले 2 तस्वीर, जहां पहाड़ की जगह गड्ढे दिख रहे… दिल्ली-NCR के नजदीक अरावली के पहाड़ सबसे अधिक छलनी किए गए दिल्ली से गुजरात तक 670 किलोमीटर में अरावली के पहाड़ हैं। दिल्ली-NCR के नजदीक अरावली के पहाड़ सबसे अधिक छलनी किए गए हैं। कहरानी में भी सिर्फ 10 साल (2002 से 2012 तक) में पहाड़ को इतना काटा गया कि अब टावरनुमा नुकीली पहाड़ी बची है। अकेले इस पहाड़ पर अवैध खनन का एरिया करीब 2.5 वर्ग किलोमीटर है। कहरानी के आसपास के गांव चौपानकी, हसनपुर, उधनवास, तिजारा, टपूकड़ा, किशनगढ़बास, खैरथल, मुंडावर, मालाखेड़ा, जटियाना, राजगढ़, रैणी, थानागाजी, लक्ष्मणगढ़, घाट, प्रतापगढ़, बहरोड़, बानसूर, नीमराणा, शाहजहांपुर सहित करीब 300 स्थानों पर अवैध खनन होता था। वन विभाग ने 50 हजार करोड़ की वन व खनिज संपदा के नुकसान का हवाला दिया था एक्सपट्र्स का दावा है कि इस इलाके में 1 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का खनिज अवैध खनन कर माफियाओं ने बेच डाला है। 2014 में अलवर डीएफओ ने एनजीटी के आदेश पर अवैध खनन से हुए नुकसान का आकलन कराया था। तब डीएफओ ने अपनी रिपोर्ट में 50 हजार करोड़ रुपए की वन व खनिज संपदा के नुकसान का हवाला दिया था। इसके अलावा खनन से प्रकृति को हो रहा नुकसान अलग था। दैनिक भास्कर टीम ने ड्रोन से इन पहाड़ियों का जायजा लिया। ड्रोन से इनकी जमीन से ऊंचाई 70 से 80 मीटर के आसपास निकली। वो भी तब जब यहां 50 फीट जमीन के लेवल से नीचे तक अवैध खनन हो चुका है। कहरानी के निकट जोड़िया गांव के चरवाहे हकमू ने बताया- यहां 2002 से अवैध खनन शुरू हुआ था। करीब 10 साल में पूरा पहाड़ साफ कर दिया। यहां का पत्थर हरियाणा से आगे तक जाता है। यहां जोड़िया, कहरानी, बूडली, चेलाकी, चौपानकी सहित आसपास अन्य जगहों के पहाड़ों में भी जमकर अवैध खनन हुआ है। पहले 24 घंटे अनगिनत डंपर चलते थे। अवैध खनन के समय 15 से ज्यादा लोगों की मौत हकमू बताते हैं- अवैध खनन में 15 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। जमीन के नीचे तालाब बन गए। पानी में डूबने से चार-पांच लोग मरे हैं। अवैध खनन बंद होने से आराम मिला है। अब शोर-शराबा नहीं है। एक्सीडेंट कम हो गए। पहले की तरह मौतें नहीं हो रहीं। गांव के लोग वापस खेती-बाड़ी करने लगे हैं। पहले आसपास के गांवों के लोग दिन रात पहाड़ों में अवैध खनन में लगे रहते थे। यह सही है कि उस समय रोजगार मिला, लेकिन जानें भी गई हैं। वसुंधरा व गहलोत राज में 3 हजार रुपए प्रति डंपर वसूली हुई जोड़िया के बुजुर्ग किसान सराजुद्दीन कहते हैं- वसुंधरा व गहलोत सरकार में जमकर अवैध खनन हुआ है। करीब 10 से 12 साल में पहाड़ ले गए। यहां का पूरा माल हरियाणा, दिल्ली व नोएडा तक गया है। उस समय एक डंपर के 3 हजार रुपए महीना पुलिस लेती थी। दिन-रात में करीब 1000 डंपर निकलते थे। पुलिस-प्रशासन जमकर पैसा खाता था। बाद में कांग्रेस ने अवैध खनन बंद करा दिया था। 2012 के बाद खनन कम हो गया था। अवैध खनन बंद होने से बेरोजगारी चरम पर चौपानकी के साहिल बताते हैं- अवैध खनन बंद होने से बेरोजगारी बढ़ गई। यहां फैक्ट्रियों में लोकल को रोजगार नहीं मिलता है। अब सरकार को लीज जारी करनी चाहिए। ताकि कामकाज मिल सके। गरीबों काे काम नहीं मिल रहा। सरकार भी फैक्ट्रियों में लोकल को रोजगार दिलाने को लेकर एक्टिव नहीं है। कब और कैसे बंद हुआ अवैध खनन साल 2012 में सरकार ने अवैध खनन के खिलाफ सख्ती की तो तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक इंटेलिजेंस टी गुइटे और आईएफएस पी काथिरवेल ने जमकर एक्शन लिया। 200 से अधिक मुकदमे दर्ज किए गए थे। इसलिए माफिया के दबाव में आकर सरकार ने अफसरों को हटा दिया था। उनके रहते हुए 2012 व 2013 में अवैध खनन पर काफी लगाम लगी थी। अलवर और आसपास के इलाकों में अलग-अलग स्तर पर अवैध खनन अब भी जारी है। आगे देखिए ड्रोन से ली गई पहाड़ की PHOTOS… अरावली के पहाड़ क्यों जरूरी? — अरावली से जुड़ी यह खबर भी पढ़िए… अरावली की कौनसी पहाड़ी खत्म होगी, कौनसी बचेगी?:कहां जाएंगे इसमें रहने वाले टाइगर, क्या नापी जा सकती है ऊंचाई, जानें- ऐसे सवालों के जवाब राजस्थान सहित पूरे देश में अरावली बचाने की मुहिम चल रही है। मुहिम की शुरुआत हुई, जब सुप्रीम कोर्ट ने अरावली की नई परिभाषा को मंजूरी दे दी। इस परिभाषा के अनुसार 100 मीटर या इससे ऊंची पहाड़ी को ही अरावली माना जाएगा। पूरी खबर पढ़िए…