कैग की रिपोर्ट से बिहार सरकार की पोल खुली, 70 हजार करोड़ के खर्च का हिसाब नहीं नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की ताजा ऑडिट रिपोर्ट ने बिहार प्रशासन की वित्तीय कार्यशैली पर बड़ा सवाल खड़ा किया है। रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार करीब 70,877.61 करोड़ रुपये के खर्च का उपयोगिता प्रमाणपत्र (UC) दाखिल करने में नाकाम रही है। यह राशि विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के लिए आवंटित की गई थी, लेकिन नियमानुसार इसके खर्च का विवरण अब तक जमा नहीं किया गया। कर्ज का बोझ और बढ़ा रिपोर्ट के अनुसार, पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में राज्य की कुल देनदारियों में 12.34 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इससे साफ जाहिर होता है कि सरकार का वित्तीय प्रबंधन कमजोर है और पारदर्शिता के दावों पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। सरकार ने सिर्फ घोटाला ही किया इसे लेकर पूर्व CM राबड़ी देवी ने कहा कि शुरू से सरकार ने सिर्फ घोटाला ही किया है। जब से नरेंद्र मोदी सरकार चला रहे हैं 2014 से तब से सिर्फ घोटाला कर रहे हैं। देश के सभी चीज को तो धीरे-धीरे करके बेच दिया है। 49,649 UC अब तक पेंडिंग यह रिपोर्ट गुरुवार को बिहार विधानसभा में प्रस्तुत की गई। दस्तावेज में कहा गया है कि 31 मार्च 2024 तक महालेखाकार कार्यालय को कुल 49,649 UC पेंडिंग मिले। यह सरकारी नियमों का सीधा उल्लंघन है, क्योंकि किसी भी योजना के तहत आवंटित राशि के उपयोग का प्रमाण तय समय सीमा में देना जरूरी होता है। सालों पुरानी फाइलें अटकीं ऑडिट रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि 14,452.38 करोड़ रुपये की राशि तो 2016-17 या उससे पहले की है, जिसका खर्च का हिसाब आज तक नहीं दिया गया। यह दर्शाता है कि सरकारी महकमों में वित्तीय अनुशासन की भारी कमी है। बजट का भी नहीं हुआ पूरा उपयोग वित्त वर्ष 2023-24 में बिहार का कुल बजट अनुमान 3.26 लाख करोड़ रुपए था, लेकिन राज्य सरकार केवल 2.60 लाख करोड़ रुपए, यानी 79.92 प्रतिशत ही खर्च कर सकी। इसके अलावा, कुल 65,512.05 करोड़ रुपए की बचत में से सिर्फ 23,875.55 करोड़ (36.44 प्रतिशत) ही कोषागार में वापस किए गए।